14 जनवरी 2013

अब वार्ता नहीं, युद्ध हो अंतिम विकल्प



            पाकिस्तानी सेना का जो कुकृत्य अभी हाल में दिखा, उसमें चौंकाने वाली बात कम दिखी। उस देश का जन्म और तन्त्र, दोनों ही नफरत पर आधारित रहे हैं। ऐसे में उनसे अमन की, भाईचारे की, सौहार्द्र की आशा करना अपने आपमें बेमानी है। राजनैतिक रूप से, कुटनीति के रूप में भी उस ओर से कभी भी सकारात्मक माहौल बनता दिखा नहीं है, जो भी, जितने भी कदम उस ओर से उठाये गये हैं वे कहीं न कहीं एक प्रकार का दिखावा ही साबित हुए हैं। पाकिस्तान का मूल स्वरूप देखकर उससे प्रत्येक पल में ऐसे ही कुकृत्य की आशा रहती है। इससे पहले एक-दो बार नहीं, कई-कई बार उसने तमाम सारे नियमों, संधियों का उल्लंघन करके भारतीय सीमा में प्रवेश किया है, हमारी धरती को रक्तरंजित किया है। उसको अपने इस रक्तरंजित कारनामें में हमारे सैनिक का सिर काट ले जाने जैसा वीभत्स पहलू और जोड़ना था सो उसने जोड़ लिया। हालांकि इससे पूर्व कारगिल युद्ध के दौरान भी उसने हमारे एक पायलट सैनिक के साथ वहशियाना सूलुक किया था किन्तु इस बार तो उसने सारी बर्बतओं की हद ही पार कर डाली। 
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            पाकिस्तान का हाल जो है, जैसा है, अपने आपमें घनघोर रूप से निन्दनीय है किन्तु इस घटना के तथा अन्य कई दूसरी आतंकी घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में हमारे देश की सरकार का हाल भी काबिले-तारीफ नहीं रहा है। हमारी सीमा में घुसकर हमारे सैनिकों की हत्या और उसके बाद बर्बरतापूर्ण हरकत भले ही पाकिस्तान की पहली घटना हो किन्तु हमारे देश में उसकी ओर से अराजकता फैलाने की यह कोई पहली घटना नहीं है। दो-दो, चार-चार युद्धों, अनगिनत आतंकी घटनाओं के साथ अनेकानेक छुटपुट वारदातों के द्वारा पाकिस्तान समय-समय पर देश को अस्थिर करने की कोशिश करता रहा है। इन सबके बाद भी हमारे देश के केन्द्रीय सत्ताधारी लोगों के द्वारा सिर्फ और सिर्फ मुंह चलाने के और कुछ भी नहीं किया गया। हर घटना के बाद सबूतों को एकत्र करने की नौटंकी होने लगती है और उसके बाद दोनों देशों का आपसी वार्तालाप का, क्रिकेट खेलने का क्रम चलने लगता है। देखा जाये तो अब जो हालात दोनों देशों के मध्य बन चुके हैं उनमें वार्ता, क्रिकेट किसी भी रूप में कोई हल नहीं है।
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            यह कहना आसान है कि एक युद्ध सारी समस्याओं को समाप्त कर देगा, वास्तविकता इसके कहीं उलट भी है। इसके बाद भी अंतिम विकल्प के रूप में पाकिस्तान को समझाने का एकमात्र तरीका युद्ध ही है। हमारी सरकार हमारे ही धन का उपयोग सीमा-सुरक्षा के लिए करती है और इसके बाद भी हमारे सैनिकों को कहीं न कहीं हताशा और निराशा ही हाथ लगती है। यह सत्य है कि युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं किन्तु पाकिस्तान जैसे देशों को समझाने का एक और एकमात्र रास्ता युद्ध ही है। यदि आकलन किया जाये तो हमारे देश का केन्द्रीय नेतृत्व जितनी धनराशि सीमाओं की सुरक्षा में, सीमा पर शांति बनाये रखने में खर्च करती है उसके एक छोटे से हिस्से को खर्च करके पाकिस्तान को हमेशा-हमेशा के लिए समझाया जा सकता है। सारी वास्तविकता को समझने के बाद, पाकिस्तान की करतूतों को जानने के बाद, इन हरकतों के अंतिम परिणाम को पहचानने के बाद भी यदि हमारा केन्द्रीय नेतृत्व मौन है तो इसे उसकी भलमानसता नहीं, कायराना हरकत ही कहा जायेगा। पाकिस्तान की ओर से आये दिन होती इस तरह की हरकतों से जनाक्रोश बहुत है, साथ ही सैनिकों में भी निराशा का वातावरण घर करता है।
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            ऐसे हालातों में भी केन्द्रीय नेतृत्व को भली-भांति ज्ञात होता है कि भारतीय नागरिक किसी भी मुद्दे पर क्रान्ति करने की क्षमता नहीं रखते हैं। पाकिस्तान ही क्या, किसी के द्वारा भी कितने जुल्म सैनिको पर क्या, आम नागरिकों पर भी किये जायें इसके बाद भी यहां का आम नागरिक कुछ पल को उफ करके, कुछ मोमबत्तियां जलाकर खामोश हो जाता है। ऐसे में केन्द्रीय नेतृत्व अपने आपको विश्व समुदाय की दृष्टि में शान्तिप्रियता का, सौहार्द्र का, भाईचारे का प्रतीक बनाकर खड़ा कर देता है, भले ही इसके पीछे कितनी-कितनी जानों, कितने-कितने परिवारों की कुर्बानियों को ही क्यों न देना पड़े। इसके बाद भी सिर्फ और सिर्फ यही कहा जा सकता है कि अब पाकिस्तान से वार्ता नहीं युद्ध ही एकमात्र विकल्प है और इसे वर्तमान हालातों में अंतिम विकल्प मानकर इस्तेमाल कर लेना चाहिए।
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1 टिप्पणी:

  1. काश यह बात ... सरकार भी पूरी तरह से समझ जाये !


    चल मरदाने,सीना ताने - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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