दीपावली की शुभकामनाओं के आदान-प्रदान के साथ एक और पर्व की
समाप्ति हो गई। तमाम सारी औपचारिकताओं के साथ आज बहुत सारे कार्यों का निर्वहन
किया जा रहा है, ठीक उसी तरह से पर्वों, रिश्तों का निर्वहन होने लगा है। भारतीय समाज में अनेक ऐसे
त्यौहार हैं जिनका आयोजन, हर्षोल्लास के साथ उनको मनाये जाने का उपक्रम कई-कई दिनों
पूर्व से होने लगता है। एक-दूसरे से मिलना, कार्यक्रम को खुशी-उमंग से मिल-जुल कर मनाये जाने की
तैयारियां, खाद्य-पदार्थ-मिठाइयां आदि के बनाये जाने की उपक्रम,
रिश्तेदारों-मित्रों से मिलने-जुलने का कार्यक्रम आदि की
तैयारियां करते-करते कब त्यौहार सम्पन्न हो जाता, पता ही नहीं चलता।
इसके विपरीत आजकल स्थिति यह है कि त्यौहार,
पर्व आदि तमाम औपचारिकताओं के साथ ही मनाये जाते हैं। पूरी
तरह से इनको व्यावसायिकता ने, बाजारवाद ने घेर लिया है। आत्मीयता के स्थान पर दिखावे का
जोर बहुत ज्यादा हो गया है। आपसी मिलने-जुलने के स्थान पर फोन का उपयोग,
एसएमएस का प्रयोग किया जाने लगा है। तड़क-भड़क के द्वारा अपनी
शानो-शौकत को प्रकट करने का तरीका खोजा जाने लगा है। ऐसे तमाम कदमों के द्वारा
समाज में जबरदस्त रूप से भाईचारे में कमी देखने को मिली है।
इस दीपावली पर ही इस तरह के नजारे देखने को मिले जिन्हें
देखकर लगा कि आज की चकाचौंध भरी दुनिया में, दिखावे की दुनिया में, स्वार्थपरक सम्बन्धों में ये त्यौहार एक प्रकार की
औपचारिकताओं के साथ निर्वहन किये जा रहे हैं। रिश्तों की गर्माहट,
सम्बन्धों की मिठास कहीं दूर खो गई है। सुधार कितना होगा,
किस तरह होगा, किसके द्वारा होगा, ये कहना बहुत ही कठिन है किन्तु एक बात स्पष्ट रूप से समझ
आती है कि यदि आने वाले दिनों में समाज के इस तरह के औपचारिक व्यवहार को समाप्त
नहीं किया गया तो जीव-जन्तुओं की अनेक विलुप्त होती प्रजातियों की तरह ही अनेक
भारतीय त्यौहार-पर्व भी विलुप्त होने की श्रेणी में शामिल हो जायेंगे।
वर्तमान की तमाम विसंगतियों के बीच अच्छी सोच और
सकारात्मकता की उम्मीद के साथ सभी को दीपावली की शुभकामनायें।
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