एक कार्टून का सामने आना और उसके बाद से एक अनाम से कार्टूनिस्ट को देशव्यापी पहचान मिलना सिर्फ और सिर्फ एक जल्दबाजी भरे कदम के कारण हुआ। असीम की गिरफ्तारी के बाद से देश में उतना हंगामा नहीं हुआ जितना कि सोशल मीडिया ने दिखा दिया। तमाम सारे ऐसे लोग भी असीम के समर्थन में, सरकार के समर्थन में; असीम के विरोध में, सरकार के विरोध में दिखे जिन्होंने अपने इस समर्थन/विरोध करने तक की समयावधि में असीम के बनाये उस कार्टून को देखा तक नहीं था।
सोशल मीडिया में और इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लोगों द्वारा समूची घटना को और कार्टूनिस्ट असीम को इस तरह से प्रचारित किया गया जैसे कि उस कलाकार ने बहुत महान कार्य किया हो और महाराष्ट्र पुलिस ने घनघोर अपराध कर दिया हो। एक पल को इस बात को स्वीकारा भी जाये कि महाराष्ट्र पुलिस ने उस व्यक्ति पर राष्ट्रद्रोह जैसा केस बनाने की अतिवादिता की तो भी इस बात से इंकार नहीं किया जाना चाहिए कि असीम के द्वारा राष्ट्रीय चिन्ह से खिलवाड़ किया गया है। असीम के समर्थन में खड़े उन तमाम लोगों की समझ पर तरस आना चाहिए जो उसके बनाये कार्टून को व्यवस्था के विरोध में एक आम आदमी की हताशा, उसका आक्रोश बता रहे हैं। आखिर अपना विरोध प्रकट करने के लिए क्या राष्ट्रीय प्रतीकों को विकृत कर देना सही ठहराया जाना चाहिए?
इस तरह के सवाल पर बहुत से सोशल मीडिया पहरुआ और मीडिया के सामने अपना चेहरा दर्शाकर दो-चार बाइट्स देने वाले असीम के विरोध में आये लोगों को समझा रहे हैं कि उस कार्टून के पीछे की मानसिकता को देखा जाना चाहिए। चलिए, एक पल को इस बात पर सकारात्मक रूप से विचार भी कर लिया जाये कि कार्टून के पीछे की मानसिकता सरकार की अव्यवस्था के प्रति विद्रोह है, तमाम सारे राजनैतिज्ञों के घोटालों से उपजी हताशा है तो क्या ऐसी किसी अन्य सकारात्मक मानसिकता के लिए देश के किसी अन्य राष्ट्रीय प्रतीक से खिलवाड़ को सहज स्वीकार किया जाना चाहिए? यदि इसका जवाब भी हां है तो हमें अपने राष्ट्रगान को भी जैज, पॉप आदि धुनों में ढालकर उसे संगीत के क्षेत्र में दिये जाने वाले विश्वस्तरीय ग्रेमी एवार्ड के लिए भेजना चाहिए। शादी, डिस्कोथिक में, पब आदि में उसे बजवाकर युवाओं को थिरकने का मौका देना चाहिए। लोगों में देशभक्ति की भावना जगाने के लिए हमारे राष्ट्रीय ध्वज को वस्त्रों के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए।
जिस तरह से और जिस केस में असीम की गिरफ्तारी हुई है उसका विरोध होना चाहिए किन्तु असीम का भी विरोध इस बात के लिए होना चाहिए कि उसने कहीं न कहीं हमारी, इस देश की भावना को ठेस पहुंचाई है। सम्भव है कि व्यापक जनविरोध के चलते महाराष्ट्र सरकार असीम को रिहा कर दे किन्तु उसका यह कहना कि वह बार-बार ऐसा करता रहेगा, कहीं न कहीं उस अतिवादिता को दर्शा रहा है जो उसके पूर्ववर्ती अपनी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर दर्शा चुके हैं। यदि असीम को उसके इस अक्षम्य कृत्य के लिए क्षमा कर दिया जाता है तो हम आने वाले दिनों में भारतमाता के, हिन्दू देवियों के नग्न चित्रों को उसकी कलम से बना हुआ देखेंगे; उसके द्वारा तिरंगे का अपमान होता हुआ भी देखेंगे; राष्ट्रगान को डिस्कोथिक, पब में बजता हुआ देखेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें