03 सितंबर 2012

सोशल मीडिया के संभावित खतरों को भी समझना होगा


असम में फैली हिंसा के बाद देश के कुछ राज्यों में उसकी आड़ में फैलाई गई अफवाह के बाद की स्थिति वाकई चिन्तनीय कही जा सकती है। शासन-प्रशासन ने अपने-अपने स्तर पर इससे निपटने के प्रयास भी किये और हालात पर किसी तरह से नियन्त्रण किया गया। सरकारों द्वारा, चाहे वो केन्द्र की सरकार रही हो अथवा राज्य सरकारें सभी ने असम हिंसा के बाद बिगड़े हालातों के लिए सोशल मीडिया को जिम्मेवार ठहराया। दोषारोपण, आरोप-प्रत्यारोप के इस बीच में ही एक अहम खुलासा हुआ कि पाकिस्तान से अफवाह फैलाने वाला संदेश भारत भेजकर व्यापक रूप से उपद्रव को फैलाने की साजिश की गई। इसी के साथ इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सोशल साइट्स पर भी चित्रों को, वीडियो आदि को कुछ फेरबदल के साथ भी भावनाओं को भड़काने का कार्य किया गया। इस तरह के कुछ तथ्यों के सामने आने के बाद से एक बार फिर सोशल साइट्स को प्रतिबन्धित करने की कवायद सरकारी स्तर पर होने लगी है और तमाम सारे सामाजिक बुद्धिजीवियों द्वारा भी इन पर प्रतिबन्ध लगाये जाने की माँग उठाई जाने लगी है।

यहाँ सवाल सोशल साइट्स द्वारा उपद्रव फैलाने की साजिश करने अथवा न करने का नहीं है, सोशल साइट्स पर प्रतिबन्ध लगाने अथवा न लगाने का नहीं है, सवाल इनकी उपयोगिता का, इनकी आड़ लेकर किये गये कुत्सित प्रयासों की और भविष्य में इन सोशल साइट्स के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था को पंगु बनाये जाने का है। वर्तमान हालातों को ही यदि गौर से देखा जाये तो असम हिंसा के बाद पूर्वोत्तर राज्य के लोगों का पलायन, देश के अन्य शहरों में उपद्रवों का होना, व्यापक स्तर पर तोड़-फोड़ करना, नागरिकों को परेशान करना आदि ऐसी घटनायें हैं जो महज एक संदेश के फैलने भर का अथवा सोशल साइट्स पर कुछ फोटो के भ्रामक रूप से लगाने का परिणाम रहीं। कहीं न कहीं इस तरह की घटनाएँ सोशल साइट्स की ताकत अथवा कमजोरी को प्रदर्शित करती हैं; इंटरनेट के, मोबाइल के सम्भावित खतरों की ओर इशारा भी करती हैं।

इस बात में कोई दोराय नहीं कि असम हिंसा साम्प्रदायिक कतई भी नहीं थी। दरअसल बांग्लादेश के घुसपैठियों द्वारा असम के स्थानीय लोगों के संसाधनों, कारोबार, हितों, रोजगार आदि पर अनाधिकृत रूप से कब्जा कर लिया गया है और इसी को पुनः वापस पाने की जद्दोजहद का परिणाम हिंसा के रूप में सामने आया। इस बात को किसी भी सोशल साइट्स द्वारा, किसी भी मीडिया द्वारा, किसी भी मोबाइल संदेश के द्वारा प्रचारित नहीं किया गया बल्कि इसके उलट ऐसा दिखाने की कोशिश की गई मानो असम की हिंसा हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक हिंसा हो। इसी तरह से पाकिस्तान से आये एक संदेश ने असम हिंसा के बाद के उपद्रव की जमीन तैयार की और अफवाहों का बाजार गर्म करके देश के अधिसंख्यक हिस्सों में भय का वातावरण निर्मित किया।

सरकार द्वारा ऐसे हालातों को देखने के बाद ही अपनी हताशा को मिटाने के लिए, नाकामी को छिपाने के लिए, अपने आपको कार्यवाही में सक्षम दर्शाने के लिए सोशल साइट्स पर प्रतिबन्ध लगाने की ओर कदम बढ़ाना शुरू किया। इसी के एक प्रयोग के रूप में मोबाइल पर प्रतिदिन में भेजे जाने वाले संदेशों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से कटौती कर दी। अब भले ही सोशल साइट्स पर लगातार सक्रिय रहने वालों द्वारा, अपनी सक्रियता के द्वारा सामाजिक परिवर्तन करने का दम भरने वालों द्वारा प्रतिबन्ध लगाने की सोच को अलोकतान्त्रिक कदम बताया जा रहा हो किन्तु एक बात तो स्पष्ट रूप से सामने आई है कि पूर्ण स्वतन्त्रता ने कहीं न कहीं भावनाओं को भड़काने का कार्य किया है, लोगों को अपमानित करने का कार्य किया है, विचाराभिव्यक्ति को, भाषाभिव्यक्ति को अशालीन बनाने का काम किया है। देश में पूर्व में हुए विभिन्न दंगों, उपद्रवों, हिंसात्मक गतिविधियों आदि के समय भले ही फेसबुक, ट्विटर आदि न रहा हो किन्तु वर्तमान समय में इनका उपयोग करने वाले इस बात से इंकार नहीं करेंगे कि तकनीकी में परिवर्तन के साथ विरोधियों द्वारा मार करने की स्थितियों में, तरीके में भी परिवर्तन होता रहता है। किसी जमाने में तलवार, भाले, कटार, डंडे आदि से लड़े जाते युद्ध वर्तमान में अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों तक आ पहुंचे हैं और इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि भविष्य में साइबर युद्ध के द्वारा देशों की व्यवस्था को, शासन-प्रशासन को पंगु बनाये जाने का कार्य किया जाये।

यदि सोशल साइट्स का उपयोग करने वाले अपने आपको बुद्धिजीवी मानते हैं, खुद को व्यापक सामाजिक परिवर्तन लाने वाला समझते हों, देश हित-समाज हित की बात करते हों, सोशल साइट्स को बदलाव लाने का माध्यम मानते हों, स्वतन्त्र देश में इसे विचाराभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के रूप में परिभाषित करते हों तो उन्हें इसके सम्भावित खतरों को भी देखना-परखना होगा। कहीं ऐसा न हो कि जिस स्वतन्त्रता को, सोशल मीडिया को हम सामाजिक परिवर्तन लाने में सक्षम बता रहे हैं वही भविष्य में हमारी सुरक्षा के लिए, हमारे शासन-प्रशासन के लिए खतरा बन जाये।


चित्र गूगल छवियों से साभार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें