पांच सितम्बर को पूरे देश में यथासम्भव पूरी धूमधाम से शिक्षक दिवस मनाया गया। जगह-जगह चले विभिन्न आयोजनों में सेवानिवृत्त शिक्षकों को और वर्तमान में कार्यरत शिक्षकों को उनके अतुलनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया। प्रत्येक कार्यक्रम में शिक्षकों को सम्मानित करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों का, नेताओं का जमावड़ा होता ही है और ये सभी अपने-अपने मुखारविन्द से शिक्षकों के सम्मान में बातों के सुन्दर-सुन्दर बताशे फोड़ते दिखते हैं।
शिक्षकों के सम्मान की आयोजना, प्रशासनिक अधिकारियों और विभिन्न नेताओं द्वारा उनके सम्मान में दिये गये वक्तव्य पूरे वर्ष में मात्र एक दिन के लिए ही होते हैं। इस एक तिथि के गुजर जाने के बाद सेवानिवृत्त शिक्षक अपने ही विभाग के बाबुओं के चक्कर लगाता है और अपनी पेंशन के तथा विभिन्न मदों में जमा अपनी ही धनराशि के लिए गिड़गिड़ाते घूमता है। ऐसी स्थिति में न तो उस प्रशासनिक अधिकारी का सहयोग मिलता है जो अभी कुछ दिन पहले ही उसी शिक्षक को माला-अंगवस्त्र पहना कर सम्मानित कर रहा था और नेताओं से तो किसी भी सहायता की उम्मीद रखना ही बेमानी है।
ठीक इसी तरह से विद्यार्थियों का भी हाल है। पूरे वर्ष भर अपने शिक्षक की बेइज्जती करने के बाद वे भी पश्चाताप करने जैसे भाव न रखने के बाद भी शिक्षकों को सम्मान देते दिखाई देते हैं। यहां पांच सितम्बर गुजरी नहीं कि इन विद्यार्थियों के मन से अपने शिक्षक के प्रति सम्मान का भाव भी तिरोहित हो जाता है। एक दिन के सम्मान के बाद विद्यार्थी अत्यधिक श्रद्धा के भाव से समस्त प्रकार के श्रद्धाभाव को भुलाते हुए कक्षा में मोबाइल की रिंगटोन के सुर छेड़ता है तो गानों के द्वारा रसमय वातावरण का सृजन करता है। किसी भी विद्यार्थी को इस तरह की किसी भी प्रकार की उद्दण्डता को रोकने, परीक्षा में नकल न करने देने की हिमाकत यदि कोई शिक्षक कभी कर भी जाता है तो उसे विद्यालय से बाहर देख लेने का प्रस्ताव भी सुना दिया जाता है। और भी कुछ ऐसे धर्मकार्य विद्यार्थियों के द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं जिनका जिक्र करना यहां ठीक नहीं।
बात थी शिक्षक की और उसके सम्मान की, दिवस की और शिक्षक दिवस की। तो यह बात तो सत्य है कि हम सभी एक दिन अपने-अपने तरीके से शिक्षकों को सम्मान देकर वर्ष भर उनके प्रति किये गये असम्मानपूर्ण रवैये का, कार्यों का एक प्रकार से पश्चाताप सा कर लेते हैं और वह भी मन में किसी प्रकार के पश्चाताप का भाव लाये बिना। इसी बात पर जोर से बोलिये शिक्षक....जिन्दाबाद!!! अरे! शिक्षक दिवस तो निकल गया....कोई बात नहीं फिर ये बोलो, शिक्षक...अमर रहे!!!
आप कि बात से सहमत हूँ| धन्यवाद|
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