जनलोकपाल विधेयक को लेकर समूचे देश में एक प्रकार का अजीब सा वातावरण बना हुआ है। जिसे देखो वो या तो अन्ना टीम के विधेयक के पक्ष में अथवा सरकार के विधेयक के पक्ष में खड़ा दिखाई दे रहा है। सभी के अपने-अपने तर्क-वितर्क हैं। कुछ ने इस पर अपनी ही अलग राय बना रखी है तो कोई इस पर दलगत सोच से प्रभावित विचार व्यक्त कर रहा है। कुल मिलाकर सभी जगह पर विचार-विमर्श का दौर चल रहा है।
हमारे शहर उरई में भी इस पर सरगर्मी देखने को बराबर से मिल रही है। आज भी एक बैठक हुई, जिसको प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से आयोजित किया गया था। उस बैठक में विभिन्न दलों के, विभिन्न वर्गों के, विभिन्न क्षेत्रों के कुछ लोगों की उपस्थिति विचारों की सशक्तता के साथ दिखाई दी।
दोनों ओर के विधेयकों को लेकर, सरकार के और अन्ना के रुख को लेकर, लोकपाल के अधिकारों को लेकर जिस तरह से चर्चा हुई उससे एक अनुमान हमने ये लगाया कि सरकार जानबूझ कर विधेयक के प्रति टालमटोल का रवैया अपनाये हुए है। इसके पीछे जो कारण समझ आया वो यह कि इससे जनता में आया जोश ठंडा पड़ेगा और जनता में आपस में ही वैचारिक टकराव की स्थिति बनने लगेगी। ऐसे हालात में सरकार को अपनी मनमानी करने का पूरा मौका मिल जायेगा।
अन्ना की, सरकार की अन्तिम परिणति क्या होती है, यह अलग बात है किन्तु जिस तरह से देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहिम चालू हुई है, जिस तरह से जनता जागरूक होकर आन्दोलित हुई है उस आग को बराबर जलाये रखने की आवश्यकता है। लोकपाल आकर क्या करेगा, क्या नहीं यह तो बाद की बात है पहले विचार इस पर हो कि यदि इस विधेयक से भ्रष्टाचार पर कुछ भी लगाम लगती है तो इस विधेयक को अवश्य ही आना चाहिए और जल्द से जल्द आना चाहिए।
आमीन।
जवाब देंहटाएंआपकी बात से सौ फ़ीसदी सहमत हैं कुमारेन्द्र जी , जाने लोगों को ये क्यों बताया समझाया जा रहा है कि इन जनांदोलनों से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है और ये सब भी शायद पिछले साठ सालों में हुए किसी अन्य जनांदोलनों जैसे ही हैं । चलिए अगर एक पल के लिए मान भी लिया जाए कि सच में ही उतना सब कुछ नहीं हासिल हो पाएगा जितने की उम्मीद जताई जा रही है तो भी क्या सच में इससे रत्ती भर भी फ़र्क नहीं पडने वाला जनता के तेवर में और सत्ता के डर में । मुझे नहीं लगता कि सब कुछ वैसा का वैसा ही रहेगा ,अबकि बार ये आंधी , तूफ़ान या सैलाब का रूप ले ले तो कोई आश्चर्य नहीं ।
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