राजनीति के इस दौर में अच्छा काम भी लोगों को राजनीति से प्रेरित लगता है। आप सभी को पता ही है कि उरई शहर के जागरूक और उत्साही युवा राकेश चौहान द्वारा दिनांक-13 मई 2011 से तहसील गेट पर आमरण अनशन की शुरुआत की गई थी। उनका मुद्दा था कि देश में आरक्षण का आधार जातिगत न होकर आर्थिक हो। उनका मानना था कि गरीबी किसी की जाति देखकर नहीं आती है। बहुत से प्रतिभाशाली बच्चे इसी कारण से उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं जो अपनी गरीबी के कारण पढ़ाई का खर्च नहीं उठा पाते हैं।
देखा जाये तो यह एक और अलग विषय हो सकता है कि आरक्षण की व्यवस्था लागू रहे भी अथवा नहीं पर यह अवश्य विचार अब होना चाहिए कि आरक्षण का आधार अब भी क्या जातिगत ही रहना चाहिए? बहुत से परिवार ऐसे हैं जिनकी आर्थिक स्थिति वाकई में बहुत खराब है किन्तु सामान्य वर्ग में शामिल होने के कारण वे शिक्षा, रोजगार से वंचित हैं। उत्तर प्रदेश में ही एक जाति है खंगार, बहुधा बुन्देलखण्ड में पाई जाती है। इनकी आर्थिक स्थिति विकट तरीके से खराब है किन्तु सामान्य वर्ग में शामिल किये जाने से ये प्रत्येक प्रकार की सुविधा से वंचित हैं।
इस तरह की और भी जातियां होंगी जो आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं हैं किन्तु अपने सामान्य वर्ग में होने का खामियाजा उठा रही हैं। इसी तरह की विसंगति को दूर करने के लिए राकेश चौहान तथा उनके साथियों ने इस प्रकार का कड़ा कदम उठाया। सोचा जा सकता है कि 43 डिग्री की गरमी और लू के थपेड़ों के बीच बिना कुछ खाये-पीये सारा दिन और सारी रात बैठना कितना कठिन रहा होगा। इस पर विद्रूपता यह कि प्रशासनिक स्तर पर कोई भी अधिकारी वहां नहीं आया, किसी भी चिकित्सक के द्वारा शारीरिक परीक्षण की औपचारिकता का निर्वाह भी नहीं किया गया।
इसके बाद भी राकेश अपनी उत्साही प्रवृत्ति और साथियों के सहयोग से आज शाम तक पूरे दो दिनों तक अनशन पर बैठे रहे। शाम को 6 बजे के आसपास सदर एस0डी0एम0 के आने और आर्थिक आधार पर आरक्षण सम्बन्धी मांग को शासन स्तर तक सकारात्मक रूप से पहुंचाने के आश्वासन के बाद राकेश ने अपने अनशन को समाप्त किया।
राकेश के अनशन में दो दिनों में लगभग 600-700 लोगों का सहयोग प्राप्त हुआ, तमाम सारे राजनैतिक दलों को समर्थन भी मिला सिवाय सत्ता पक्ष के। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे को समर्थन देना तो दूर की बात चर्चा इस बात की करनी शुरू कर दी कि विपक्षी दलों द्वारा सरकार को बदनाम करने की साजिश की जा रही है। एक ओर देश में महिला सशक्तीकरण की लहर दिखाई दे रही है, सामाजिक रूप से राजनीति में भी बदलाव दिख रहे हैं, दशकों पुरानी अवधारणायें जमींदोज हो रही हैं और उत्तर प्रदेश के जातिगत संकीर्णता में बंधे नेता अभी भी वहीं घिसा-पिटा पुराना राग अलाप रहे हैं कि ये विपक्षियों की साजिश है, सरकार को बदनाम करने की।
अब देश का, प्रदेश का युवा जागरूक हो चुका है और वह दिन दूर नहीं जब एक-एक युवा आंधी-तूफान की तरह उठकर समूचे देश से विसंगतियों को दूर कर देगा। समय कितना भी लगे पर ऐसा होगा और जरूर होगा, इंतजार करिये, समय का इंतजार करिये।
चित्र गूगल छवियों से साभार
उस दिन का इन्तजार करेंगे....प्रार्थना है जल्दी आये.
जवाब देंहटाएंआर्थिक आधार पर आरक्षण है तो ठीक पर यह तभी लागू हो सकता है जिस दिन ब्राहमण अपनी बेटी को अछूत से ब्याहने खुशी खुशी चल दे...
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन तो युवा कर रहा है मगर नतीजे उसके क्या होंगे ये ऊपरवाला ही जानता है।
जवाब देंहटाएंऔर रामलाल जी यदि आप ब्राह्मण होते और आपको अपनी बेटी अछूत से ब्याहनी पड़ती तब पता चलता। बड़े आय बड़ी बड़ी बातें करने वाले। शटप।
parivartan ke liye yuvaon ko aur aage aana hoga
जवाब देंहटाएंराम लाल जी, अभी अछूतों में अपना खुद का छुआ-छूत मिटा नहीं है, आज भी मेहतर, पासी, बसर, चमार जातियों में रोटी-बेटी का रिश्ता नहीं है. वे भी एक दूसरे के हाथ का छुआ पानी नहीं पीते हैं फिर आप लोग हमेशा सामजिक समानता के लिए ठाकुर-ब्राह्मणों का अछूतों की बेटियों के साथ सम्बन्ध क्यों जोड़ने लगते हैं? बात समानता की हो रही है या असमानता की ये बात अलग है पर विचार आप खुद करिए कि जातिगत आधार पर आरक्षण का लाभ अछूतों के समाज में कितनों को मिल रहा है.....
जवाब देंहटाएंहमारे पास आंकड़े हैं कि महज चार फ़ीसदी अछूतों ने आरक्षण का लाभ पाया है>>>बाकी 96 को कौन लाभ देगा....ब्राह्मण से अछूत कन्या का विवाह इन 96 फ़ीसदी को लाभान्वित कर देगा?
(ध्यान रखियेगा कि यदि किसी कारणवश अछूत कन्या का विवाह सवर्ण लड़के से हो गया तो उस बेचारी की औलादें तो आरक्षण के लाभ से वंचित रह जायेंगीं)