भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। यह सम्मान राष्ट्रीय सेवा के लिए दिया जाता है। इन सेवाओं में कला, साहित्य, विज्ञान या सार्वजनिक सेवा शामिल है। इस सम्मान की स्थापना २ जनवरी १९५४ में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई थी। अन्य अलंकरणों के समान इस सम्मान को भी नाम के साथ पदवी के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। प्रारम्भ में इस सम्मान को मरणोपरांत देने का प्रावधान नहीं था, यह प्रावधान १९५५ में बाद में जोड़ा गया। बाद में यह ११ व्यक्तियों को मरणोपरांत प्रदान किया गया।
सम्मानित व्यक्तित्व भारत रत्न पदक
क्रम ----- वर्ष ------ नाम
१. १९५४ - डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन
२. १९५४ - चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
३. १९५४ - डॉक्टर चन्द्रशेखर वेंकटरमण
४. १९५५ - डॉक्टर भगवान दास
५. १९५५ - सर डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या
६. १९५५ - पं. जवाहर लाल नेहरु
७. १९५७ - गोविंद वल्लभ पंत
८. १९५८ - डॉ. धोंडो केशव कर्वे
९. १९६१ - डॉ. बिधन चंद्र रॉय
१०. १९६१ - पुरूषोत्तम दास टंडन
११. १९६२ - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
१२. १९६३ - डॉ. जाकिर हुसैन
१३. १९६३ - डॉ. पांडुरंग वामन काणे
१४. १९६६ - लाल बहादुर शास्त्री (मरणोपरान्त)
१५. १९७१ - इंदिरा गाँधी
१६. १९७५ - वराहगिरी वेंकट गिरी
१७. १९७६ - के. कामराज (मरणोपरान्त)
१८. १९८० - मदर टेरेसा
१९. १९८३ - आचार्य विनोबा भावे (मरणोपरान्त)
२०. १९८७ - खान अब्दुल गफ्फार खान प्रथम गैर-भारतीय
२१. १९८८ - एम जी आर (मरणोपरान्त)
२२. १९९० - डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर (मरणोपरान्त)
२३. १९९० - नेल्सन मंडेला द्वितीय गैर-भारतीय
२४. १९९१ - राजीव गांधी (मरणोपरान्त)
२५. १९९१ - सरदार वल्लभ भाई पटेल (मरणोपरान्त)
२६. १९९१ - मोरारजी देसाई
२७. १९९२ - मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (मरणोपरान्त)
२८. १९९२ - जे आर डी टाटा
२९. १९९२ - सत्यजीत रे
३०. १९९७ - अब्दुल कलाम
३१. १९९७ - गुलजारी लाल नंदा
३२. १९९७ - अरुणा असाफ़ अली (मरणोपरान्त)
३३. १९९८ - एम एस सुब्बुलक्ष्मी
३४. १९९८ - सी सुब्रमनीयम
३५. १९९८ - जयप्रकाश नारायण (मरणोपरान्त)
३६. १९९९ - पं. रवि शंकर
३७. १९९९ - अमर्त्य सेन
३८. १९९९ - गोपीनाथ बोरदोलोई (मरणोपरान्त)
३९. २००१ - लता मंगेशकर
४०. २००१ - उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां
४१. २००८ - पं.भीमसेन जोशी
१९९२ में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को इस पुरस्कार से मरणोपरान्त सम्मानित किया गया था। लेकिन उनकी मृत्यु विवादित होने के कारण पुरस्कार के मरणोपरान्त स्वरूप को लेकर प्रश्न उठाया गया था। इसीलिए भारत सरकार ने यह पुरस्कार वापस ले लिया। यह पुरस्कार वापस लिये जाने का यह एकमेव उदाहरण है|
भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री श्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को जब भारत रत्न देने की बात आयी तो उन्होंने जोर देकर मना कर दिया, कारण कि जो लोग इसकी चयन समिति में रहे हों, उनको यह सम्मान नहीं दिया जाना चाहिये। बाद में १९९२ में उन्हें मरणोपरांत दिया गया।
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सचिन की लोकप्रियता और क्रिकेट में उनकी महानता को कम नहीं आँका जा सकता है पर क्या सिर्फ खेल दिखा देना ही देश के सर्वोच्च सम्मान को पाने का हकदार बनता है?
ऊपर पूरी सूची है, इसे देख कर विचार करिए कि देश में अभी और कौन है जो इस सम्मान के लायक हो सकता है। खेलने के कारण सम्मान या फिर क्रिकेट खेलने के कारण सम्मान, यह भी विचारणीय होना चाहिए। यदि खेल को सम्मानित करना है, खिलाडी को सम्मानित करना है तो और भी बहुत खेल तथा खिलाड़ी हैं जिनपर निगाह जानी चाहिए।
चलिए इस बार फिर विवाद होने की सम्भावना बनती है पर हमारा व्यक्तिगत मत है कि यदि सचिन को भारत रत्न मिलता है तो यह इस सम्मान का, देश के तमाम सारे उन वास्तविक लोगों का जो इस सम्मान के लायक हैं, अपमान ही होगा। चयन समिति या मीडिया इस सम्बन्ध में कुछ भी वकालत कर रही हो पर......
भारत रत्न सम्मान प्राप्तजनों के देश के प्रति योगदान को यहाँ क्लिक करके देखा जा सकता है। इसे देख लें और पुनर्विचार करें।
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सम्मानित जनों की सूची विकीपीडिया से साभार तथा चित्र गूगल छवियों से साभार
सम्मानित व्यक्तित्व भारत रत्न पदक
क्रम ----- वर्ष ------ नाम
१. १९५४ - डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन
२. १९५४ - चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
३. १९५४ - डॉक्टर चन्द्रशेखर वेंकटरमण
४. १९५५ - डॉक्टर भगवान दास
५. १९५५ - सर डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या
६. १९५५ - पं. जवाहर लाल नेहरु
७. १९५७ - गोविंद वल्लभ पंत
८. १९५८ - डॉ. धोंडो केशव कर्वे
९. १९६१ - डॉ. बिधन चंद्र रॉय
१०. १९६१ - पुरूषोत्तम दास टंडन
११. १९६२ - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
१२. १९६३ - डॉ. जाकिर हुसैन
१३. १९६३ - डॉ. पांडुरंग वामन काणे
१४. १९६६ - लाल बहादुर शास्त्री (मरणोपरान्त)
१५. १९७१ - इंदिरा गाँधी
१६. १९७५ - वराहगिरी वेंकट गिरी
१७. १९७६ - के. कामराज (मरणोपरान्त)
१८. १९८० - मदर टेरेसा
१९. १९८३ - आचार्य विनोबा भावे (मरणोपरान्त)
२०. १९८७ - खान अब्दुल गफ्फार खान प्रथम गैर-भारतीय
२१. १९८८ - एम जी आर (मरणोपरान्त)
२२. १९९० - डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर (मरणोपरान्त)
२३. १९९० - नेल्सन मंडेला द्वितीय गैर-भारतीय
२४. १९९१ - राजीव गांधी (मरणोपरान्त)
२५. १९९१ - सरदार वल्लभ भाई पटेल (मरणोपरान्त)
२६. १९९१ - मोरारजी देसाई
२७. १९९२ - मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (मरणोपरान्त)
२८. १९९२ - जे आर डी टाटा
२९. १९९२ - सत्यजीत रे
३०. १९९७ - अब्दुल कलाम
३१. १९९७ - गुलजारी लाल नंदा
३२. १९९७ - अरुणा असाफ़ अली (मरणोपरान्त)
३३. १९९८ - एम एस सुब्बुलक्ष्मी
३४. १९९८ - सी सुब्रमनीयम
३५. १९९८ - जयप्रकाश नारायण (मरणोपरान्त)
३६. १९९९ - पं. रवि शंकर
३७. १९९९ - अमर्त्य सेन
३८. १९९९ - गोपीनाथ बोरदोलोई (मरणोपरान्त)
३९. २००१ - लता मंगेशकर
४०. २००१ - उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां
४१. २००८ - पं.भीमसेन जोशी
१९९२ में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को इस पुरस्कार से मरणोपरान्त सम्मानित किया गया था। लेकिन उनकी मृत्यु विवादित होने के कारण पुरस्कार के मरणोपरान्त स्वरूप को लेकर प्रश्न उठाया गया था। इसीलिए भारत सरकार ने यह पुरस्कार वापस ले लिया। यह पुरस्कार वापस लिये जाने का यह एकमेव उदाहरण है|
भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री श्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को जब भारत रत्न देने की बात आयी तो उन्होंने जोर देकर मना कर दिया, कारण कि जो लोग इसकी चयन समिति में रहे हों, उनको यह सम्मान नहीं दिया जाना चाहिये। बाद में १९९२ में उन्हें मरणोपरांत दिया गया।
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सचिन की लोकप्रियता और क्रिकेट में उनकी महानता को कम नहीं आँका जा सकता है पर क्या सिर्फ खेल दिखा देना ही देश के सर्वोच्च सम्मान को पाने का हकदार बनता है?
ऊपर पूरी सूची है, इसे देख कर विचार करिए कि देश में अभी और कौन है जो इस सम्मान के लायक हो सकता है। खेलने के कारण सम्मान या फिर क्रिकेट खेलने के कारण सम्मान, यह भी विचारणीय होना चाहिए। यदि खेल को सम्मानित करना है, खिलाडी को सम्मानित करना है तो और भी बहुत खेल तथा खिलाड़ी हैं जिनपर निगाह जानी चाहिए।
चलिए इस बार फिर विवाद होने की सम्भावना बनती है पर हमारा व्यक्तिगत मत है कि यदि सचिन को भारत रत्न मिलता है तो यह इस सम्मान का, देश के तमाम सारे उन वास्तविक लोगों का जो इस सम्मान के लायक हैं, अपमान ही होगा। चयन समिति या मीडिया इस सम्बन्ध में कुछ भी वकालत कर रही हो पर......
भारत रत्न सम्मान प्राप्तजनों के देश के प्रति योगदान को यहाँ क्लिक करके देखा जा सकता है। इसे देख लें और पुनर्विचार करें।
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सम्मानित जनों की सूची विकीपीडिया से साभार तथा चित्र गूगल छवियों से साभार
सहमत नहीं हूँ आपसे , सचिन कि बिल्कुल खेल रत्न सम्मान मिलना चाहिए उन्होंने खेल से भारत का नाम रोशन किया है । जैसे अन्य नें अपने क्षेत्र में उत्कृषट योगदान दिया है वैसे ही सचिन ने क्रिकेट में योगदान मिलना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंSahmat hoon.
जवाब देंहटाएंमेरे विचार में सचिन को भारत रत्न दिए जाने में कोइ बुराई नहीं है.. मैं एक उदाहरण दूँगा.. जब मैं विभिन्न देशों से आये अपने मित्रों से बातचीत करता हूँ तो मदर टेरेसा, अमर्त्य सेन पं. रविशंकर जैसे कुछ नामों को छोड़कर अधिकाँश को लोग नहीं जानते हैं.. पर सचिन का नाम अधिकाँश विदेशी एक भारतीय के रूप में गौरव से लेटे हैं... चाहे किसी भी क्षेत्र में हो भारत का नाम ऊँचा करने में सचिन के योगदान को नकारा नहीं जा सकता.. और अगर खेल खेलने वालों को यह पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए तो फिर कोइ यह भी कह सकता है कि नाचने-गाने वालों को क्यों दिया जाये हैं तो आखिरकार दोनों मूल रूप से मनोरंजन के साधन ही...
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....
जवाब देंहटाएं---------
हिन्दी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले ब्लॉग।
Savaal yah bhi poochha ja sakta hai ki.....
जवाब देंहटाएंरवि शंकर, लता मंगेशकर, बिस्मिल्ला ख़ां, भीमसेन जोशी ko bhi kyon diya?
aakhir inhone bhi gaane bajane ke alava zindgi me kiya kya hai?
इस बहस को किसी मंच पर किया जाए तो बेहतर है, वर्ना लोग भारत-रत्न का मूल्य इतनी आसानी से नहीं समझने वाले. बेशक सचिन एक बहुत ही बेहतरीन क्रिकेटर एवं इंसान हैं और उनका मैं सम्मान भी करता हूँ लेकिन क्यों ये भुला दिया जाता है कि आज भी क्रिकेट सिर्फ एक कोलोनिअल खेल है जो कि सिर्फ ब्रिटेन के गुलाम रहे देशों में ही खेला जाता है, इसके अलावा विश्व में इसको कभी भी कहीं भी एक सर्वव्यापी खेल की तरह नहीं देखा गया और इसीलिए क्रिकेट को अब तक ओलम्पिक्स में शामिल नहीं किया गया. तो फिर इसके खिलाड़ी विश्व के हर कोने तक भारत की चमक को कैसे बिखेर सकते हैं? इंग्लैण्ड, जहाँ कि क्रिकेट का जन्म हुआ वहाँ भी आज क्रिकेट को इतनी तवज़्ज़ो नहीं देते जितनी कि दक्षिण एशियाई देशों में. कोई ये बता दे मुझे कि है कहाँ क्रिकेट, अमेरिका में, चीन में, रूस में, फ्रांस में, जर्मनी में या मिस्र में.. छोटे देशों की तो बात ही छोड़ दीजिये.
जवाब देंहटाएंये कोई फर्जी महाशय पंडित रविशंकर, लता जी और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की तुलना सचिन से कर रहे हैं.. वाह जी कमाल है!!! शायद आप भूल गए कि संगीत जीवन का अहम् हिस्सा है क्रिकेट नहीं. संगीत आपकी देह से लेकर आत्मा तक को आनंदित महसूस कराता है, यह जीवन के रसों में से एक है और यह किसी देश तो छोड़िये किसी प्राणिमात्र से अछूता नहीं है. संगीत बिना जीवन नीरस है पर क्रिकेट बिना ऐसा कुछ नहीं है.
रही बात खेल के लिए भारत-रत्न देने की तो ठीक है सचिन को दिया जा सकता है लेकिन अभी नहीं... और तब तक नहीं जब तक कि सचिन भारत और भारतीयों के मन में खेल देखने नहीं बल्कि ऐसे खेल खेलने के लिए रूचि जगाते हैं जो तन और मन दोनों को ही चुस्ती-फुर्ती प्रदान करे. तब तक जब तक भारत को खेलप्रधान देशों में नहीं शामिल कराते, जब तक क्रिकेट और अन्य खेलों के लिए अकादमियां नहीं बनवाते. सचिन एक महान क्रिकेटर हैं पर अभी तक क्रिकेट खुद में ही महान खेल नहीं हो सका है इस बात को नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते. यहाँ इंग्लैण्ड के कान से लगे आयरलैंड में ही सचिन को कोई नहीं जानता जबकि वहाँ से तो क्रिकेट की टीम भी है और वैसे ही किसी अन्य देश में जहाँ क्रिकेट नहीं है उन्हें वहाँ कोई नहीं जानता लेकिन हाँ भारतीय संगीत और उनके महान संगीतकारों को लोग दिल से मानते हैं और उनके साथ-साथ भारत का भी सम्मान करते हैं. पंडित रविशंकर ही नहीं यहाँ लोग पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, पंडित विश्वमोहन भट्ट, शिव कुमार शर्मा को भी सचिन से ज्यादा जानते हैं.
इसके अलावा कोई कैसे भूल सकता है कि शूमाकर द्वारा उपहार में डी गई फेरारी के आयात कर में भी छोत पाने के लिए सचिन ने कितनी कोशिश नहीं की थी.. अभी वक़्त लगेगा सचिन को भारत-रत्न बनने में, सनद रहे कि भारत-रत्न देने से नहीं होने से होते हैं. इसलिए इस सम्मान की कीमत समझिये, ये कोई चोकलेट नहीं जो जब चाहे जिसको चाहें बाँट दें.
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जवाब देंहटाएं.
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रवि शंकर, लता मंगेशकर, बिस्मिल्ला ख़ां, भीमसेन जोशी जी को भी तो महज गायन-वादन की दम पर ही भारत रत्न दिया गया है... तो किसी खिलाड़ी को क्यों नहीं... यह अलग बात है कि सचिन से पहले विश्वनाथन आनंद का हक बनता है मेरे विचार से...
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