हमारे लिए कितना आसान होता है किसी भी बात पर विवाद पैदा कर देना। कभी हम विवाद पैदा करते हैं धर्म के नाम पर तो कभी क्षेत्र के नाम पर। कभी हमारा विवाद बहुत ही छोटी-छोटी बातों पर होता है। कभी तो ऐसी बातों पर जिनका कोई आधार ही नहीं होता है।
व्यवसाय के क्षेत्र में भी विवाद देखने को मिलते हैं तो इसी क्षेत्र में समन्वय की भावना दिखाई देती है। हम अकसर कहते भी हैं कि व्यवसाय करने वाला हमेशा अपना लाभ देखता है और इसी लाभ के लिए वह समन्वय की भावना को अपनाये रखता है।
व्यावसायिक रूप में इस समन्वय की भावना को हमने अभी एक-दो दिनों पूर्व देखा। समन्वय की यह भावना हमने अद्भुत रूप में देखी। दो-चार दिनों पूर्व एक कार्यक्रम के सिलसिले में बाहर जाना हुआ। वहां से लौटते हुए रास्ते में एक हाथ ठेला पर हमारी निगाह गई।
जैसा कि लेखक होने के कारण साथ ही साथ मीडिया से जुड़े होने के कारण बाल की खाल निकालने की कोशिश करते रहते हैं। इसके अलावा छीछालेदर रस की व्याख्या करते रहने के कारण भी राह चलते, बात करते हुए, इधर-उधर आते जाते समय ऐसी बातों पर अपनी निगाह जरूर दौड़ा लेते हैं।
इस कारण से भी इस हाथ ठेला पर टंगा बोर्ड और उस बोर्ड पर लिखी इबारत देखकर मजा आ गया। मजा इस रूप में आया कि एक कम पढ़े-लिखे व्यक्ति ने किस तरह से अपने दिमाग का इस्तेमाल किया और किसी न किसी रूप में पढ़े-लिखों को बेवकूफ बना रहा है।
वह व्यक्ति अपने हाथ ठेला में अंडे बेच रहा था। अंडे बेचना कोई विशेष समन्वय बनाने वाली बात तो हुई नहीं। ऑमलेट भी बना रहा था, उबले अंडे भी बेच रहा था, कच्चे भी बेच रहा था, भुजिया भी बना रहा था और भी कई तरह से अंडों को बेच रहा था। अंडे बेचना कोई विशेष बात तो हुई नहीं और किसी विशेष तरह से भी बेचना भी कोई खास बात नहीं हुई।
खास बात तो यह लगी कि उसके हाथ ठेले पर टंगे बोर्ड पर एक ओर लिखा था ‘मां रतनगढ़ वाली की जय’ और दूसरी ओर टंगे बोर्ड पर लिखा दिखा ‘ख्वाजा पीर नवाज’।
इसमें शायद कुछ विशेष न दिख रहा हो किन्तु समझने की बात यह है कि हाथ ठेले वाला बेच रहा था अंडे और बोर्ड पर जो लिखा था वह आपको बता ही चुके हैं। देखने समझने की बात है कि उसके हाथ ठेले पर हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग अंडे खाने आते होंगे किन्तु किसी ने भी इस पर आपत्ति नहीं की कि अंडे वाले के हाथ ठेले पर मां रतनगढ़ वाली की जय और ख्वाजा पीर नवाज लिखा हुआ है।
हमारा मकसद इस पोस्ट को लगाने का यह नहीं था कि इसी बात पर विवाद होकर उस अंडे वाले का व्यवसाय बन्द करवा दिया जाये। आप स्वयं अनुमान लगाइये कि जरा-जरा सी बात पर विवाद पैदा करने वाले यहां शान्ति धारण कैसे रखे रहे।
हम तो देखकर चले आये और लिख बैठे एक पोस्ट मां की जयकार, ख्वाजा का दरवार और अंडों का व्यापार।
चित्र गूगल छवियों से इस कारण से लेना पडा क्योंकि उस समय अपना कैमरा चालू न कर पाने के कारण उस हाथ ठेले वाले की फोटो न ले सके।
:-)
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति भले लोगों से अत्याचारियों का युद्ध था कर्बला…हमारी ओर से भी श्रद्धांजलि……एस एम् मासूम
जवाब देंहटाएं