21 सितंबर 2010

एक ग़ज़ल --- हमारे साहित्यिक ब्लॉग पर




इन दिनों देश में वातावरण संशय भरा दिख रहा है। कोई अयोध्या को लेकर भयग्रस्त है तो कोई आतंकी हमलों को लेकर परेशान है। इस परेशानी में हम भी रहे। हमारी परेशानी इन सब बातों को लेकर नहीं रही वरन् समस्या इस बात को लेकर रही कि इन सब पर लिखा जाये या नहीं। यदि लिखा भी जाये तो क्या और कितना।


चित्र गूगल छवियों से साभार

इन सबके बीच समस्या रही तो हमने एक ग़ज़ल लिख मारी, अरे भाई लिखी तो काफी पहले थी किन्तु आज ब्लॉग पर पहली बार लिखी है। अपने इस ब्लॉग पर नहीं पोस्ट की वरन् उस ब्लॉग पर पोस्ट की है जिसके नाम को लेकर आप सभी से राय भी मांगी थी।

आप चाहें तो हमारे उस साहित्यिक ब्लॉग पर जाकर उस ग़ज़ल का आनन्द ले सकते हैं। इस ब्लॉग पर उस रचना को इस कारण से पोस्ट नहीं कर रहे हैं क्योंकि हमारा विचार है कि अब कुछ दिनों उसी साहित्यिक ब्लॉग पर अपनी साहित्यिक रचनाओं को पोस्ट किया जाये।

आप सभी का ध्यान वहां भी चाहेंगे।


5 टिप्‍पणियां:

  1. वहाँ हो कर आ गए ...वहाँ वर्ड वेरिफिकेशन हटा लीजिए ..

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  2. achchhi ghazal likhi hai aapne. badhaii
    Rakesh Kumar

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  3. achchhi ghazal likhi hai aapne. badhaii
    Rakesh Kumar

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  4. लेट लतीफी की माफी के साथ कुमारेन्द्र जी !

    तुम जियो हजारों साल
    और ऐसे ही माँ का भाल
    तुम्हारी बिंदी रूपी ज्वाल
    लगाये सब को करे निहाल

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