सर्वप्रथम तो अपने सभी उन शुभेच्छुओं का आभार जिन्होंने हमारे जन्मदिन पर हमें किसी भी रूप में अपनी शुभकामनाएँ हम तक पहुँचाईं। इनमें हमारे परिवारीजनों के साथ-साथ हमारे मित्र, हमारे नगर के कुछ परिचित, ब्लॉग के साथी और दूर बैठे वे मित्र-बंधुजन भी हैं जिन्होंने फोन, मैसेज के द्वारा, ई-मेल के द्वारा, फेसबुक, ऑरकुट के द्वारा अपनी शुभकामनाएँ भेजीं।
इस पोस्ट को कई दिनों से लिखना चाह रहे थे पर समयाभाव के कारण नहीं लिखना हो सका। एक तो चुनावी भागदौड़ और उस पर कुछ इधर-उधर के काम। आज फुर्सत निकाल ही ली, कुछ तो अपने जन्मदिन के कारण मन किया कि घर पर ही रहा जाये, दूसरा कारण कि रविवार होने के कारण चुनावी प्रचार भी नहीं होना था। (इसका कारण यह है कि हमारे मतदाता शिक्षक हैं जो विद्यालयों में ही एकसाथ मिल सकते हैं और रविवार होने के कारण.......) इसके बाद भी सोचा कि जिनसे घर पर मिला जा सकता है मिल आयें तो प्रकृति ने नहीं जाने दिया। सुबह से लगातार हो रही बारिश के कारण घर पर ही बन्द रहना पड़ा।
इस मौके का लाभ अब जाकर रात को मिल पाया। वैसे सुबह अपने मित्र से इस विषय पर लम्बी चर्चा हुई। विषय आज के संदर्भ में देश में सबसे गर्म विषय है। हाँ जी, अयोध्या विवाद से भी ज्यादा गर्म। कश्मीर के वर्तमान हालातों को इस विषय के रूप में देखा जा सकता है।
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दृष्टि दौड़ाई जाये तो पता चलेगा कि हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं और केन्द्र कुछ भी कदम उठाने से हिचक रही है। समझ नहीं आता कि हम किससे डर रहे हैं अथवा किसके सामने अच्छा बनने के ढोंग में शान्त हैं। हो सकता है कि वहाँ के हालातों में हम बाहर और दूर रह रहे लोग कुछ भी आकलन सही रूप में नहीं कर पा रहे हों पर इतना तो समझ में आ ही रहा है कि कहीं कुछ सही नहीं हो रहा है।
महात्मा गाँधी के अहिंसा और शान्ति की चादर को स्वार्थ और तुष्टिकरण के द्वारा तार-तार करने के बाद भी हम लपेटे हुए घूम रहे हैं। हमारी फौजें वहाँ हाथ बाँधे कश्मीर के आततायी युवाओं के सामने लाचारी से खड़ी हैं। नेता चुपचाप बयानबाजी करके अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में लगे रहते हैं। किसी को इस बात की चिन्ता नहीं है कि ये हालात किसी न किसी दिन कश्मीर को तो हमसे दूर करेंगे ही साथ ही देश के बहुत से हिस्सों को भी हमसे बेगाना बना देंगे।
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ऐसे हालातों में जबकि चर्चा होनी चाहिए कि इस विकट समस्या से कैसे निपटा जाये चर्चा हो रही है कि अयोध्या के फैसले पर विवाद और दंगे की स्थिति को कैसे रोका जाये। चर्चा का विषय यह है कि राहुल बाबा कहाँ और किन जगहों की सैर करके वोट बैंक को बढ़ा रहे हैं। बहस इस बात पर हो रही है कि कैसे राष्ट्रकुल खेलों के आयोजन में हम अपनी नाक को बचा सकें। बात इसकी हो रही है कि मँहगाई मुद्दा है अथवा छठवाँ वेतन आयोग की रिपोर्ट के बाद बढ़ा हुआ वेतन।
इसके अलावा हमारी मीडिया तो पूरी तरह से नतमस्तक है या तो बॉलीवुड की चमक-धमक को दिखाने में या फिर किसी भी विषय को लेकर हिन्दुओं की छीछालेदर करने में। उसको तो जन समस्याओं से भी कोई लेना-देना नहीं और फिर कश्मीर के हालात तो देशव्यापी समस्या है, इस पर कौन बोले।
इधर एक और प्रकार का विकार लोगों में आ गया है। जब भी आप देश की, किसी एक प्रान्त की चर्चा करो तो आधुनिकतावादी सवालिया निगाह चेहरे पर दाग कर ग्लोबलाइजेशन का तर्क देकर ‘थिंक ग्लोबली’ का जुता सा जड़ देते हैं। उनके लिए करोड़ों को पैकेज और विदेश का नौकर बनना ही सही मायनों में जिन्दगी का अर्थ है। ऐसी पीढ़ी से तो देशहित की बात करना नादनी ही होगी।
जो भी अपने आपको देशहितार्थ समझता है वह इस चर्चा को किसी न किसी रूप में आगे बढ़ाये और कश्मीर के हालात पर जनता को जगाये। यह हालात आज कश्मीर के हैं और अभी न सँभले तो यही हालात पूरे देश के होंगे। जवानों को नपुंसकों की भाँति चुप रहने का आदेश देने वाले नेताओं को चेताना होगा क्योंकि देश के लिए जान न्यौछावार करने वाले वीर-बाँकुरों का लाचार खड़े रहना किसी भी भारतीय को पसंद नहीं आना चाहिए।
सँभलो हिन्दुस्तानियो, सँभालो हिन्दुस्तान।
सभी चित्र गूगल छवियों से साभार लिए गए हैं
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इस पोस्ट को कई दिनों से लिखना चाह रहे थे पर समयाभाव के कारण नहीं लिखना हो सका। एक तो चुनावी भागदौड़ और उस पर कुछ इधर-उधर के काम। आज फुर्सत निकाल ही ली, कुछ तो अपने जन्मदिन के कारण मन किया कि घर पर ही रहा जाये, दूसरा कारण कि रविवार होने के कारण चुनावी प्रचार भी नहीं होना था। (इसका कारण यह है कि हमारे मतदाता शिक्षक हैं जो विद्यालयों में ही एकसाथ मिल सकते हैं और रविवार होने के कारण.......) इसके बाद भी सोचा कि जिनसे घर पर मिला जा सकता है मिल आयें तो प्रकृति ने नहीं जाने दिया। सुबह से लगातार हो रही बारिश के कारण घर पर ही बन्द रहना पड़ा।
इस मौके का लाभ अब जाकर रात को मिल पाया। वैसे सुबह अपने मित्र से इस विषय पर लम्बी चर्चा हुई। विषय आज के संदर्भ में देश में सबसे गर्म विषय है। हाँ जी, अयोध्या विवाद से भी ज्यादा गर्म। कश्मीर के वर्तमान हालातों को इस विषय के रूप में देखा जा सकता है।
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दृष्टि दौड़ाई जाये तो पता चलेगा कि हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं और केन्द्र कुछ भी कदम उठाने से हिचक रही है। समझ नहीं आता कि हम किससे डर रहे हैं अथवा किसके सामने अच्छा बनने के ढोंग में शान्त हैं। हो सकता है कि वहाँ के हालातों में हम बाहर और दूर रह रहे लोग कुछ भी आकलन सही रूप में नहीं कर पा रहे हों पर इतना तो समझ में आ ही रहा है कि कहीं कुछ सही नहीं हो रहा है।
महात्मा गाँधी के अहिंसा और शान्ति की चादर को स्वार्थ और तुष्टिकरण के द्वारा तार-तार करने के बाद भी हम लपेटे हुए घूम रहे हैं। हमारी फौजें वहाँ हाथ बाँधे कश्मीर के आततायी युवाओं के सामने लाचारी से खड़ी हैं। नेता चुपचाप बयानबाजी करके अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में लगे रहते हैं। किसी को इस बात की चिन्ता नहीं है कि ये हालात किसी न किसी दिन कश्मीर को तो हमसे दूर करेंगे ही साथ ही देश के बहुत से हिस्सों को भी हमसे बेगाना बना देंगे।
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ऐसे हालातों में जबकि चर्चा होनी चाहिए कि इस विकट समस्या से कैसे निपटा जाये चर्चा हो रही है कि अयोध्या के फैसले पर विवाद और दंगे की स्थिति को कैसे रोका जाये। चर्चा का विषय यह है कि राहुल बाबा कहाँ और किन जगहों की सैर करके वोट बैंक को बढ़ा रहे हैं। बहस इस बात पर हो रही है कि कैसे राष्ट्रकुल खेलों के आयोजन में हम अपनी नाक को बचा सकें। बात इसकी हो रही है कि मँहगाई मुद्दा है अथवा छठवाँ वेतन आयोग की रिपोर्ट के बाद बढ़ा हुआ वेतन।
इसके अलावा हमारी मीडिया तो पूरी तरह से नतमस्तक है या तो बॉलीवुड की चमक-धमक को दिखाने में या फिर किसी भी विषय को लेकर हिन्दुओं की छीछालेदर करने में। उसको तो जन समस्याओं से भी कोई लेना-देना नहीं और फिर कश्मीर के हालात तो देशव्यापी समस्या है, इस पर कौन बोले।
इधर एक और प्रकार का विकार लोगों में आ गया है। जब भी आप देश की, किसी एक प्रान्त की चर्चा करो तो आधुनिकतावादी सवालिया निगाह चेहरे पर दाग कर ग्लोबलाइजेशन का तर्क देकर ‘थिंक ग्लोबली’ का जुता सा जड़ देते हैं। उनके लिए करोड़ों को पैकेज और विदेश का नौकर बनना ही सही मायनों में जिन्दगी का अर्थ है। ऐसी पीढ़ी से तो देशहित की बात करना नादनी ही होगी।
जो भी अपने आपको देशहितार्थ समझता है वह इस चर्चा को किसी न किसी रूप में आगे बढ़ाये और कश्मीर के हालात पर जनता को जगाये। यह हालात आज कश्मीर के हैं और अभी न सँभले तो यही हालात पूरे देश के होंगे। जवानों को नपुंसकों की भाँति चुप रहने का आदेश देने वाले नेताओं को चेताना होगा क्योंकि देश के लिए जान न्यौछावार करने वाले वीर-बाँकुरों का लाचार खड़े रहना किसी भी भारतीय को पसंद नहीं आना चाहिए।
सँभलो हिन्दुस्तानियो, सँभालो हिन्दुस्तान।
सभी चित्र गूगल छवियों से साभार लिए गए हैं
कौन संभाले और कौन संभले ये भी सब जानते हैं.
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की शुभकामनाएं
आशीष
कौन संभाले और कौन संभले ये भी सब जानते हैं.
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की शुभकामनाएं
आशीष
लो जी इनकी तरफ से भी बधाई और शुभकामनये
जवाब देंहटाएंapki fir se ek sarthak post, badhai.
जवाब देंहटाएंkashmir mudda ab kendra ke bekabu hai, kuch karna chahiye. sena bhi pareshan hai.
Sir ji Sahi kaha aapne par kon kya krega.
जवाब देंहटाएंRakesh Kumar
Sir ji Sahi kaha aapne par kon kya krega.
जवाब देंहटाएंRakesh Kumar
भाईजी आपकी पोस्ट आज ही देखि, अच्छी है.
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की फिर से शुभकामनाएं.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंराष्ट्र को एकत्र करने के लिए फिर से एक विष्णुगुप्त चाहिए .... फिर से एक सरदार पटेल चाहिए...
जवाब देंहटाएंकैसे गूंगा भारत महान जिसकी कोई राष्ट्रभाषा नहीं ?
मेरी दो कविताएँ हमारी मातृभाषा को समर्पित :
१. उतिष्ठ हिन्दी! उतिष्ठ भारत! उतिष्ठ भारती! पुनः उतिष्ठ विष्णुगुप्त!
http://pankaj-patra.blogspot.com/2010/09/hindi-diwas-rashtrabhasha-prakash.html
२. जो मेरी वाणी छीन रहे हैं, मार डालूं उन लुटेरों को।
http://pankaj-patra.blogspot.com/2010/09/hindi-diwas-matribhasha-rashtrabhasha.html
– प्रकाश ‘पंकज’