मेंहदी हसन की गई एक बड़ी प्रसिद्द ग़ज़ल
"अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख्यालों में मिलें,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले।"
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले।"
का एक शेर...
=====================================
तू खुदा है न मेरा इश्क फरिश्तों जैसा,
दोनों इंसान हैं तो क्यूँ इतने हिज़ाबों में मिलें।
======================================
तू खुदा है न मेरा इश्क फरिश्तों जैसा,
दोनों इंसान हैं तो क्यूँ इतने हिज़ाबों में मिलें।
======================================
इस शेर को ब्लॉग के सभी साथी याद रखे रहें तो वे आपस में एक दूजे को गाली-गलौज करना बंद कर देंगे, शायद। क्या हमारा सोचना सही है???
(चित्र गूगल छवियों से साभार)
बिल्कुल सही है जी!
जवाब देंहटाएंWAQY ME BAHUT KHUB
जवाब देंहटाएंलेकिन सामने वाला पत्थर लेकर मारने दौड़े तब? लेकिन सद्कामना का स्वागत तो होना ही चाहिये..
जवाब देंहटाएंare sir ji sabhi to ek doosare se apne ko badaa samajh rahe hain to aise men aun aapke sher par dhyan dega......sabhi khuda hain....
जवाब देंहटाएंबात तो सही है अगर कोई समझे और माने तो…………अच्छा प्रयास्।
जवाब देंहटाएंकुमारेन्द्र भाई,
जवाब देंहटाएंअगर मैं गलत नहीं हूँ, तो शायद ये शेर मीनाकुमारी जी का लिखा हुआ है और ये बयां कर रहा है उसके दर्द को. जो अब हमारे समाज में एक सार्थक मिशाल पेश कर सकता है किन्तुकाश ! ऐसा हो सकता?