17 मई 2010

यौन शिक्षा - चुनौतीपूर्ण किन्तु आवश्यक प्रक्रिया - (भाग - 6)

(समापन किस्त)

यौन शिक्षा - चुनौतीपूर्ण किन्तु आवश्यक प्रक्रिया

डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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(6) दायित्व क्या हो हम सभी का
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‘यौन शिक्षा’ के द्वारा सरकार, समाज, शिक्षकों, माता-पिता का उद्देश्य होना चाहिए कि वे एक स्वस्थ शारीरिक विकास वाले बच्चों, युवाओं का निर्माण करें। ‘यौन शिक्षा’ के एक छोटे भाग यौनिक अंगों की जानकारी, गर्भधारण की प्रक्रिया, प्रसव प्रक्रिया, गर्भपात आदि से अलग हट कर ‘यौन शिक्षा’ के द्वारा समाज में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की स्वीकार्यता, उसकी संस्कारिकता, उसके पीछे छिपे मूल्यों, शारीरिक विकास के विविध चरणों, शरीर के अंगों की स्वच्छता, अनैतिक सम्बन्धों से उपजती शारीरिक बीमारियाँ, यौनजनित बीमारियों के दुष्परिणाम, स्त्री-पुरुष सम्बन्धों (माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहिन, मित्रों आदि) की आन्तरिकता एवं मर्यादा की जानकारी, उनके मध्य सम्बन्धों की मूल्यता, वैवाहित जीवन की जिम्मेवारियाँ, इनके शारीरिक एवं आत्मिक सम्बन्धों की आवश्यकता, आपसी सम्बन्ध और उनमें आदर का भाव आदि-आदि अनेक ऐसे बिन्दु हो सकते हैं जो ‘यौन शिक्षा’ के रूप में समझाये जा सकते हैं। इन मूल्यों, सम्बन्धों, आन्तरिकता, पारिवारिकता, सामाजिकता, शारीरिकता आदि को समझने के बाद यौनजनित बीमारियों, एच0आई0वी0/एड्स आदि भले ही समाप्त न हो सकें पर इनके रोगियों की संख्या में बढ़ते युवाओं की संख्या में अवश्य ही भारी गिरावट आयेगी।

‘यौन शिक्षा’ को लागू करने, इसको देने के विरोध में जो लोग भी तर्क-वितर्क करते नजर आते हैं उनको भी सामाजिक-पारिवारिक-शारीरिक कसौटी पर कसना होगा। यह कहना कि ‘यौन शिक्षा’ तमाम सारी समस्याओं का हल है, अभी जल्दबाजी होगी पर यह कहना कि ‘यौन शिक्षा’ से विद्यालय, समाज एक खुली प्रयोगशाला बन जायेगा, एक प्रकार की ‘ड्रामेबाजी’ है। आज बिना इस शिक्षा के क्या समाज, विद्यालय और तो और परिवार भी क्या शारीरिक सम्बन्धों को पूर्ण करने की प्रयोगशाला नहीं बन गये हैं? जो कहते हैं कि पशु-पक्षियों को कौन सी ‘यौन शिक्षा’ दी जाती है पर वे सभी शारीरिक सम्बन्ध सहजता से बना लेते हैं, अपनी प्रजाति वृद्धि करते हैं, वे लोग अभी ‘यौन शिक्षा’ को मात्र शारीरिक सम्बन्धों की तृप्ति को समझने का एक माध्यम मान रहे हैं। ‘यौन शिक्षा’ का तात्पर्य अथवा उद्देश्य केवल स्त्री-पुरुष के यौनिक अंगों की जानकारी देना, यौनांगों के चित्र दिखाना, शारीरिक सम्बन्धों की क्रिया समझाना, गर्भधारण-प्रसव की प्रक्रिया समझाना मात्र नहीं है। समाज में शारीरिक सम्बन्धों को पवित्रता प्राप्त है जो सिर्फ पति-पत्नी के मध्य ही स्वीकार्य हैं और उनका उद्देश्य शारीरिक सुख-संतुष्टि के अतिरिक्त संतानोत्पत्ति कर समाज को नई पीढ़ी प्रदान करना भी है।

कहीं न कहीं ‘यौन शिक्षा’ की कमी ने पश्चिमी खुले सम्बन्धों को भारतीय समाज में पर्दे के पीछे छिपी स्वीकार्यता दी और पति-पत्नी के विश्वासपरक, पवित्र रिश्ते से कहीं अलग शारीरिक संतुष्टि की राह अपनायी। परिणमतः टीनएज प्रेगनेन्सी, बिन ब्याही माँएँ, यौनजनित बीमारी से ग्रसित युवा वर्ग, बलात्कार, बाल शारीरिक शोषण, गर्भपात, कूड़े के ढ़ेर पर मिलते नवजात शिशु, आत्महत्याएँ आदि जैसी शर्मसार करने वाली घटनाओं से हम नित्य ही दो-चार होते हैं। अन्त निष्कर्षतः एक वाक्य से कि मेरी दृष्टि में ‘यौन शिक्षा’ के स्वरूप, उद्देश्य, शैली के अभाव ने ही परिवार नियोजन के प्रमुख हथियार ‘कण्डोम’ को अनैतिक सम्बन्धों के, यौनजनित रोगों के, समय-असमय शारीरिक सुख प्राप्ति के, यौनाचार के सुरक्षा कवच के रूप में सहज स्वीकार्य बना दिया है। अच्छा हो कि ‘कण्डोम, बिन्दास बोल’, ‘आज का फ्लेवर क्या है?’, ‘कन्ट्रासेप्टिव पिल्स’ जैसे विज्ञापनों से शिक्षा लेते; महानगरों के सुलभ शौचालयों एवं अन्य सार्वजनिक स्थलों पर लगी ‘कण्डोम मशीनों’ पर भटकते; पोर्न साइट, नग्न चित्रों में शारीरिक-यौनिक जिज्ञासा को शान्त करते बच्चों, युवाओं को सकारात्मक, उद्देश्यपरक, संस्कारपरक, मूल्यपरक ‘यौन शिक्षा’ से उस वर्जित विषय की जानकारी दी जाये जो मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होने के बाद भी किसी न किसी रूप में प्रतिबंधित है।


(समाप्त)
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4 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लगा पढ़ना , पिछला भाग न पढ़पाने का मलाल है ।

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  2. achchha likh rahe hain sir...
    badhai..jaroori lekh ko umda tareeke se pesh karne ke liye

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  3. ‘यौन शिक्षा’ के द्वारा सरकार, समाज, शिक्षकों, माता-पिता का उद्देश्य होना चाहिए कि वे एक स्वस्थ शारीरिक विकास वाले बच्चों, युवाओं का निर्माण करें। ‘यौन शिक्षा’ के एक छोटे भाग यौनिक अंगों की जानकारी, गर्भधारण की प्रक्रिया, प्रसव प्रक्रिया, गर्भपात आदि से अलग हट कर ‘यौन शिक्षा’ के द्वारा समाज में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की स्वीकार्यता, उसकी संस्कारिकता, उसके पीछे छिपे मूल्यों, शारीरिक विकास के विविध चरणों, शरीर के अंगों की स्वच्छता, अनैतिक सम्बन्धों से उपजती शारीरिक बीमारियाँ, यौनजनित बीमारियों के दुष्परिणाम, स्त्री-पुरुष सम्बन्धों (माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहिन, मित्रों आदि) की आन्तरिकता एवं मर्यादा की जानकारी, उनके मध्य सम्बन्धों की मूल्यता, वैवाहित जीवन की जिम्मेवारियाँ, इनके शारीरिक एवं आत्मिक सम्बन्धों की आवश्यकता, आपसी सम्बन्ध और उनमें आदर का भाव आदि-आदि अनेक ऐसे बिन्दु हो सकते हैं जो ‘यौन शिक्षा’ के रूप में समझाये जा सकते हैं।
    एक-एक बात सच लिखी है आपने.. काश हमारी सरकार के कानों तक ये आवाज़ पहुँच सके और वो इस पर अमल कर सकें.. उपसंहार उतना ही सुन्दर बन पड़ा है जितनी कि प्रस्तावना थी. एक संग्रहनीय आलेख के लिए आभार चाचा जी.

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  4. `एक अच्छा सिलेबस सुझाया है आपने ...शुक्रिया !

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