27 अप्रैल 2010

प्रेरणादायक --- बच्चों की निस्वार्थ सेवा से बची कुत्ते की जान




हमारे मोहल्ले के कुछ बच्चों ने कल वो काम करके दिखाया जिसको करने से पहले नेता, मंत्री मीडिया का सहारा लेते हैं, दस बार सोचते हैं।

दोपहर को लगभग एक बजे का समय होगा। घर के पास ही कुत्ते का बच्चा सड़क पर धूप में पड़ा था। घर की गली से निकलने वाले दो-चार लोगों ने उसे देखा और अनदेखा सा करके निकल गये।


(चित्र गूगल छवियों से साभार)

हमारी गली में चार-पाँच कुत्ते मोहल्ले वालों के सहारे से पल रहे हैं और उनके बच्चे भी इधर-उधर डोलते दिखते हैं। कोई किसी के बरामदे में पड़ा होता है तो कोई किसी की सीढ़ियों पर। वह पिल्ला धूप में इस तरह से पड़ा था मानो जान नहीं हो।

बगल के बच्चों ने जो आपस में भाई-बहिन हैं उस पिल्ले को उठाकर छाँह में लिटाया और फिर उसको ठंडे पानी से खूब जमकर नहलाया। पिल्ले के साथ लगभग एक घंटा तक मेहनत करने के बाद बच्चों ने उसे आराम करने दिया। लगभग आधा घंटे के बाद उसके शरीर का गीलापन समाप्त हुआ और उसमें कुछ हरकत दिखाई दी।

ऐसा देखते ही बच्चों ने उसको थोड़ा-थोड़ा पानी पिलाया। चार-चार, पाँच-पाँच मिनट के अन्तराल से पानी पिलाने के कारण से पिल्ले की प्यास भी बुझी और वह एकदम भला चंगा हो गया।

दोपहर को चूँकि हम उस पिल्ले की हालत देख चुके थे। शाम को उठकर हमने सबसे पहले उस पिल्ले के बारे में पूछा तो मालूम पड़ा कि वह घूम रहा है। पिल्ले की हालत को दोपहर में देखने से लग ही नहीं रहा था कि यह एक-दो घंटे भी जीवित रह पायेगा पर बच्चों की कुछ घंटों की मेहनत ने उसको नया जीवन दे दिया।

हमारे मोहल्ले के ये बच्चे राजा, चंचल और रंगोली हैं इनकी निस्वार्थ भाव से सेवा का परिणाम है कि एक मूक जानवर भीषण गरमी के कारण अपनी जान गँवाने से बच गया। पशु-पक्षियों के नाम पर सेवाभाव का ड्रामा रचने वाले नेताओं, मंत्रियों और समाजसेवियों को इन बच्चों से कुछ सीखना चाहिए।

आज की यह पोस्ट इसी कारण से लिखी गई है कि बाघ को बचाने, गौरैया को बचाने के आन्दोलन में लगे लोग अपने आसपास के जानवरों को ही बचाते रहें, (निस्वार्थ भाव से) तो समझो कि प्रत्येक जानवर बच जायेंगे।

बच्चों को आशीर्वाद।


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