02 अप्रैल 2010

कितने अधिकार से पूर्ण होगा शिक्षा का अधिकार....




देश के सभी बच्चे अब आपको कुछ सालों बाद शिक्षा लेते दिखाई पड़ेंगे। जी हाँ, ये कोई सपना नहीं, हकीकत में होने वाला है। शिक्षा लेने सम्बन्धी अधिकार बना दिया गया है और इसके अनुसार देश में 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है। पहल अच्छी है और इस अच्छी पहल को अच्छा ही बने रहना चाहिए।


(चित्र गूगल छवियों से साभार)

इससे पहले भी सरकारी स्तर पर बहुत ही अच्छे-अच्छे प्रयास हुए हैं जिसमें बच्चों के लिए बेहतर तरीके खोजे गये थे। सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की कम से कम होती जा रही संख्या को देखकर सरकार ने मिड डे मील जैसा कार्यक्रम लागू किया। इस कार्यक्रम में अपने आपमें किसी तरह की बुराई नहीं दिखती थी किन्तु जब इसके क्रियान्वयन की बारी आई तो इसमें खामियाँ ही खामियाँ दिखाई देने लगीं।

इन खामियों की चर्चा करने से बेहतर है कि हम कल पारित हुए शिक्षा के अधिकार की चर्चा कर लें। इसका हाल किस तरह का होगा ये तो अभी पता नहीं पर विवादों की शुरूआत होने लगी है। निजी शिक्षण संस्थानों ने तो खुलकर इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। इस अधिकार में प्रावधान किया गया है कि निजी संस्थाओं को अपने यहाँ 25 प्रतिशत सीटों को इसी के अन्तर्गत भरना पड़ेगा।

यहाँ समझ में नहीं आता कि जब सरकार के पास स्कूलों के नाम पर अपना पूरा का पूरा नेटवर्क बना हुआ है तो उसे निजी स्कूलों की ओर ताकने की आवश्यकता क्यों है? अब यदि इसी सवाल को सरकारी मशीनरी से पूछा जाये तो उसके पास बगलें झाँकने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं है। सरकारी विद्यालयों की स्थिति क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है। कहना तो यह चाहिए कि दुर्गति बनी हुई है। नाम के लिए इन स्कूलों का संचालन किया जा रहा है।

एक-एक स्कूल की अंदरूनी स्थिति को देखा जाये तो सरकारी दावों की पोल खुल जाती है। बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों की घनघोर कमी है और जहाँ शिक्षक हैं भी वे या तो स्कूल से सम्बन्धित कागजातों को भरने में लगे रहते हैं, मिड डे मील को पूरा करवाने के लिए लगे रहते हैं अथवा अपने उच्चाधिकारियों की खुशामद में ही कार्य सिद्ध किये रहते हैं। इसे अन्यथा न लिया जाये क्योंकि हमारे घर-परिवार-मित्रों में अधिसंख्यक लोग प्राथमिक विद्यालयों की सेवा में लगे हैं। (सेवा??????????)

इस दृष्टि से जब कि देश में प्राथमिक शिक्षा की दुर्गति बनी हुई है तो शिक्षा के अधिकार का हाल भगवान भरोसे से अधिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों के भरोसे है जो सरकारी योजनाओं में आवंटित बजट की गणना करने में और उसी को खपाने में अपना समय पूरी तन्मयता से लगा देते हैं।