07 मार्च 2010

भारतीय हाकी मैदान पर तो हारी किन्तु दर्शकों का स्नेह, विश्वास जीती

हाकी में भारत की पाकिस्तान पर विजय के बाद लगातार तीसरी हार हुई। हम हारे और सेमीफाइनल में पहुँचने के रास्ते भी बन्द करवा बैठे। इंग्लैण्ड के हाथों मिली हार के बाद निराश हुआ जा सकता है किन्तु यदि इस पूरे आयोजन को गहराई से देखें तो हमें बहुत वर्षों बाद भारतीय हाकी की विजय दिखाई देगी।


जी हाँ, यह सही है कि टूर्नामेंट के स्कोर-बोर्ड पर हम अवश्य ही हार चुके हैं किन्तु राष्ट्रीय खेल को स्थापित करने की भावना में हम विजयी अवश्य और अवश्य ही हुए हैं। अरसे बाद देश की जनता को क्रिकेट के बाद पहली कार किसी अन्य खेल के लिए स्टेडियम में इकट्ठा होते और चिल्लाते देखा है। इस तरह की खेल भावना को देखकर लगा कि शायद राष्ट्रीय खेल हाकी पुनः जीवन पा सके?

हमारी याददाश्त में यह पहला मौका है जब कि खिलाड़ियों के अलावा फिल्मी हस्तियों, नामचीन व्यक्तित्वों ने हाकी मैच को देखने और भारतीय हाकी टीम का समर्थन करने की अपील की है। इस कारण से या फिर कोई अन्य दूसरे कारण रहे हों किन्तु दर्शक टी0वी0 पर भी जुटे और स्टेडियम पर भी धमाल मचाने पहुँचे। यह वाकई बहुत बड़ी विजय है।

मैदान पर हम हारे हैं, इसका गम तो है किन्तु दर्शकों के स्नेह और उत्साह को बरकारार रखना होगा ताकि हमारा राष्ट्रीय खेल हमें बापस मिल सके।

एक निवेदन उन सभी से जो गला फाड़-फाड़ कर बाघ बचाने की, कागज बचाने की, पानी बचाने की अपील कर रहे हैं, कि वे अब देश के राष्ट्रीय खेल के लिए उठी जनता के विश्वास और स्नेह को बचाने के लिए भी अपना आन्दोलन चलाने लगें। हो सकता है कि उनको इस आन्दोलन मे मुनाफा न हो किन्तु देश हित में कभी कोई काम बिना मुनाफे की आशा के भी करना चाहिए।

बाघ बचाने वालों ने तमाम सारी अपीलों के बाद लेख पर लेख लिखकर एक दो बाघ तो बचा ही लिये होंगे? तो फिर आइये, अब हम जैसे छोटे से ब्लागर और एक आम भारतीय की छोटी सी बिना मुनाफे वाली अपील पर भारतीय हाकी को, उसकी खोई हुई इज्जत को बचाने के लिए छोटा सा, थोड़ा सा प्रयास करना शुरू कर दें। हो सकता है कि आप सभी के प्रयासों से हम पुनः हाकी ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता हो सकें, विश्व कप विजेता बन सकें?

क्या हम आशा करें कि आप सब हाकी को बचाने के लिए प्रयास करेंगे?

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चित्र गूगल छवियों से साभार

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