कल टीवी चैनल आईबीएन7 पर अचानक निगाह थम गई जब वहाँ प्रसिद्ध गायक अभिजीत को जज्बाती होते देखा। उनके विचार पाकिस्तानी गायकों और पाकिस्तान के प्रति कुछ कटु नजर आये। इस घटना को महाराष्ट्र विशेष रूप से मुम्बई में चल रहे विवादों के मध्य स्वयं को स्थापित बनाये रखने का शिगूफा कहा जा सकता है।
मुम्बई में जो कुछ हो रहा है उसे सिवाय विवाद कहने के कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। उत्तर भारतीयों को लेकर हो रही बयानवाजी के बीच शाहरुख खान के पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों के प्रति दिये गये समर्थनपूर्ण बयान से भी बवाल मच उठा।
पाकिस्तान के खिलाड़ी आईपीएल के कर्ताधर्ताओं की समझ में नहीं आये तो इसमें किसी का क्या दोष है? कहते हैं कि बाप के करतूतों की सजा बेटे-बेटियों को भी भोगनी पड़ती है। यही बात बहुत हद तक पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ियों पर भी लागू होती दिखी है।
पाकिस्तान की हरकतें भारत के प्रति उसके जन्म से किस प्रकार की हैं ये किसी को समझाने की आवश्यकता नहीं है। इसके बाद भी भारत की ओर से हमेशा प्रयास रहता है कि उसके प्रति सकारात्मक रवैया बनाये रखा जाये। लाख प्रयास किये गये कि पाकिस्तान अपनी हरकतों को सुधारे किन्तु उसका तो वही हाल है कि भैंस के आगे बीन बजाये, भैंस खड़ी पगुराये।
इस विषय पर बहुत कुछ कहा जा चुका है और आगे भी कहा जाता रहेगा। मूल में यह है कि जब तक पाकिस्तान का रवैया अच्छा नहीं होता तब तक भारत को भी अपने रवैये को बदलना पड़ेगा। वह दिन दूर हो गये जब कला, संस्कृति, गायन, खेल को आपसी मनमुटाव दूर करने का साधन माना जाता था। अब तो इन सबमें भी प्रतिद्वंद्विता इतनी बढ़ गई है कि आपस में बिना गाली-गलौज के कोई भी कार्यक्रम पूरा नहीं होता है। ऐसे में विवाद और मनमुटाव और बढ़ता है, कम नहीं होता है।
भारत सरकार को चाहिए कि वह पाकिस्तान की लल्लो-चप्पो को छोड़कर अपने देशवासियों की भावनाओं का ख्याल करें और उन्हें सम्मान दे। देशवासियों के अपनों की कुर्बानियों को सरकार यूँ ही व्यर्थ न जाने दे।
पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने से पहले सरकार अब तक भारत की अस्मिता पर होते आये हमलों को एक बार सोच ले, इन हमलों में मारे गये अपनों की लाशें गिन ले। यदि इसके बाद भी लगता है कि पाकिस्तान ऐसे किसी भी कदम के लायक है तो सरकार के प्रत्येक कदम का स्वागत है।
हर बार पिटने के बाद, घाव सहने के बाद भी हम पाकिस्तान के प्रति प्रेम का राग अलापते पाये जाते हैं। शायद इसी को कहा जाता है कि सौ-सौ जूता खायें, तमाशा घुस कर देखें।
मुम्बई में जो कुछ हो रहा है उसे सिवाय विवाद कहने के कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। उत्तर भारतीयों को लेकर हो रही बयानवाजी के बीच शाहरुख खान के पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों के प्रति दिये गये समर्थनपूर्ण बयान से भी बवाल मच उठा।
पाकिस्तान के खिलाड़ी आईपीएल के कर्ताधर्ताओं की समझ में नहीं आये तो इसमें किसी का क्या दोष है? कहते हैं कि बाप के करतूतों की सजा बेटे-बेटियों को भी भोगनी पड़ती है। यही बात बहुत हद तक पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ियों पर भी लागू होती दिखी है।
पाकिस्तान की हरकतें भारत के प्रति उसके जन्म से किस प्रकार की हैं ये किसी को समझाने की आवश्यकता नहीं है। इसके बाद भी भारत की ओर से हमेशा प्रयास रहता है कि उसके प्रति सकारात्मक रवैया बनाये रखा जाये। लाख प्रयास किये गये कि पाकिस्तान अपनी हरकतों को सुधारे किन्तु उसका तो वही हाल है कि भैंस के आगे बीन बजाये, भैंस खड़ी पगुराये।
इस विषय पर बहुत कुछ कहा जा चुका है और आगे भी कहा जाता रहेगा। मूल में यह है कि जब तक पाकिस्तान का रवैया अच्छा नहीं होता तब तक भारत को भी अपने रवैये को बदलना पड़ेगा। वह दिन दूर हो गये जब कला, संस्कृति, गायन, खेल को आपसी मनमुटाव दूर करने का साधन माना जाता था। अब तो इन सबमें भी प्रतिद्वंद्विता इतनी बढ़ गई है कि आपस में बिना गाली-गलौज के कोई भी कार्यक्रम पूरा नहीं होता है। ऐसे में विवाद और मनमुटाव और बढ़ता है, कम नहीं होता है।
भारत सरकार को चाहिए कि वह पाकिस्तान की लल्लो-चप्पो को छोड़कर अपने देशवासियों की भावनाओं का ख्याल करें और उन्हें सम्मान दे। देशवासियों के अपनों की कुर्बानियों को सरकार यूँ ही व्यर्थ न जाने दे।
पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने से पहले सरकार अब तक भारत की अस्मिता पर होते आये हमलों को एक बार सोच ले, इन हमलों में मारे गये अपनों की लाशें गिन ले। यदि इसके बाद भी लगता है कि पाकिस्तान ऐसे किसी भी कदम के लायक है तो सरकार के प्रत्येक कदम का स्वागत है।
हर बार पिटने के बाद, घाव सहने के बाद भी हम पाकिस्तान के प्रति प्रेम का राग अलापते पाये जाते हैं। शायद इसी को कहा जाता है कि सौ-सौ जूता खायें, तमाशा घुस कर देखें।
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