आज शाम को मौका मिला कि नेट को चला सकें तो बैठ गये। सोचा था कि बुन्देलखण्ड पर कुछ लिखकर लगायेंगे। उससे पहले इधर-उधर की दौड़ लगाते रहे। कुछ पढ़ा, कुछ पर टिप्पणी भी की और शब्दकार की कुछ पोस्ट को सही भी किया।
इधर-उधर की दौड़ा भागी में दो-चार पोस्ट ऐसी दिखीं जिनको पढ़ने के बाद समझ नहीं आया कि किया क्या जाये? लिखने वाले भी ऐसे नहीं कि ये कहा जाये कि नाम के लिए लिख रहे हैं। नाम भी ऐसे नहीं कि जिनसे लड़कपन की महक उठ रही हो। इसके बाद भी ऐसी पोस्ट से लगा कि अपनी स्थिति को समझना अभी बहुत-बहुत बाकी है।
इधर-उधर की दौड़ा भागी में दो-चार पोस्ट ऐसी दिखीं जिनको पढ़ने के बाद समझ नहीं आया कि किया क्या जाये? लिखने वाले भी ऐसे नहीं कि ये कहा जाये कि नाम के लिए लिख रहे हैं। नाम भी ऐसे नहीं कि जिनसे लड़कपन की महक उठ रही हो। इसके बाद भी ऐसी पोस्ट से लगा कि अपनी स्थिति को समझना अभी बहुत-बहुत बाकी है।
नाम नहीं लिखेंगे क्यों कि संदर्भ ऐसे हैं जिनके कारण आसानी से समझ आ जायेगा कि किस पोस्ट की चर्चा हो रही है। एक तो अलबेला खत्री के चयन को लेकर, सम्मान को लेकर सवाल उठाये गये हैं। ऐसा किसी एक ही पोस्ट पर नहीं है, दो एक पोस्ट और भी दिखीं। बहरहाल, हमारे लिए इस विषय पर कुछ भी कहना सूरज को रोशनी दिखाना हो जायेगा क्योंकि स्वयं अलबेला खत्री जी और अविनाश वाचस्पति जी काफी कुछ कह चुके हैं। अविनाश जी को पढ़ा तो लगा कि यही सही है और जब अलबेला जी की पोस्ट देखी तो वह सही दिखे। (परेशान हम क्योंकि हम तो कतार में हैं।)
सवाल यह नहीं कि नाम किसके हैं, यह आयोजक की मर्जी है। हमने अलबेला जी की पोस्ट पर टिप्पणी देते हुए कहा भी था कि देश में आयोगों और समितियों के द्वारा कितना काम हुआ है यह सभी जानते हैं। अरे भई कम से कम इस तरह की वोटिंग से सभी को मौका मिला है चयन का, ये बात अलग है कि नेताओं की तरह इसमें भी गलत ब्लागर का चयन हो जाये। (नामांकित ब्लागर माफ करेंगे, इस बात के लिए)
यदि चयनित ब्लागरों के नामों पर विचार किया जाये तो हम अकेले ही ऐसे हैं जिन्हें अपने नामांकन पर बहुत ही आश्चर्य हुआ था। आप स्वयं विचार करिए जहाँ अजित वडनेकर जी हों, आशीष खण्डेलवाल जी हों, अविनाश जी का नाम हो, काजल कुमार की सटीक दृष्टि हो, निर्मला कपिला की कलम की सार्थक अभिव्यक्ति हो, संगीता पुरी जी का ज्ञान हो, बी0एस0 पावला जी की बहुमुखी प्रतिभा हो, पं0 डी0के0शर्मा ‘वत्स’ जैसा नाम हो, राज भटिया, जी0के0अवधिया जैसी सक्रियता हो और उनके साथ प्राण शर्मा, रूप सिंह चन्देल, रवीन्द्र प्रभात, ओम आर्य जैसे धुरन्धर ब्लोगरों के नाम दिख रहे हों वहाँ कुमारेन्द्र सिंह सेंगर लिखा दिखना ही अपने आप में सम्मान है। (टीका टिप्पणी आयोजन पर नहीं, सवाल जीतने का है!!!)
एक-दो और पोस्ट पढ़कर कुछ अलग सा लगा। पोस्ट टिप्पणी को लेकर थीं, तब लगा कि क्या मात्र टिप्पणी लिखने के लिए ही किसी अन्य की पोस्ट पर टिप्पणी करनीं चाहिए?
यही पोस्ट कुछ ज्यादा बड़ी लग रही है। टिप्पणी पर टिप्पणीधारी पोस्ट कल।
इधर कुछ दिनों से चिट्ठाजगत के धड़ाधड़ महाराज अपना काम नहीं कर रहे हैं। क्या कोई निदान है किसी के पास इस समस्या का?
एक खुशनुमा सूचना (स्वयं को खुश करवाने वाली)
हमारे ब्लाग के (हमारे भी) अब 50 समर्थक--इन्हें समर्थक नहीं हमारे अपने कहिए--तो हमारे अपने लोगों की संख्या 50 हो गई है। सभी अपनों का, नहीं-नहीं, अपनों का धन्यवाद नहीं करते, अपनो को यह विश्वास कि किसी भी पोस्ट के द्वारा कभी किसी का दिल न दुखे, यही प्रयास हमेशा रहेगा। अपनों से निवेदन कि वे भी किसी गलत पोस्ट या भटकाव की स्थिति में सँभालते रहें।
अब ५१ हो गई। बधाई।
जवाब देंहटाएं५१ हो गये...बधाई.. :)
जवाब देंहटाएं’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
मत हो भ्रमित
जवाब देंहटाएंन हों ऐंगर
भाई कुमार सेंगर
दिल मिल गए हैं
और हाथ तो सदा
से जुड़े हुए हैं हमारे
वैसे हम नेता नहीं हैं
जब आप कह रहे हैं
दोनों सही हैं
तो राह दोनों ही सही होंगी
अब देखा जाएगा
जो होगा अच्छा होगा
और होनी को कौन टाल सका है
मेरी शुभकामनायें संपूर्ण ब्लॉगजगत को।