‘1 विकल’, उरई आप अकसर ऐसा ही कुछ लिखा देखते होंगे तो चौंकते तो होंगे ही कि ये कौन है? क्या कोई धर्म है? क्या कोई आदमी है? क्या कोई संस्था है? आपको बताते चलें कि यह हमारी और आपकी तरह ही एक आम इंसान है और यह व्यक्ति अपनी अन्तरात्मा के कारण समाज को जागृत करने का कार्य कर रहा है।
जागेश्वर दयाल के नाम वाले इस शख्स ने स्नातक की शिक्षा के बाद कुछ अलग करने की सोची और अपने विचारों के द्वारा समाज को जागरूक करने का बीड़ा उठाया। स्वान्तः सुखाय वाली स्थिति के चलते 1 विकल के नाम से प्रसिद्ध इस शख्स ने किसी से आर्थिक मदद की अपेक्षा नहीं की।
सामाजिक सुधार देते, नई-नई शिक्षा देते स्लोगनों को आप ज्यादातर पुलों की कोठियों और दुर्गम स्थानों पर लिखा देख सकते हैं। इनको लिखने के लिए 1 विकल स्वयं ही मेहनत करते हैं। बिना किसी संस्था अथवा धनपति की मदद के समूचे देश में सामाजिक संदेशों का प्रचार-प्रसार करना वाकई प्रशंसनीय है।
कानपुर को अपनी कर्मस्थली बताने वाले 1 विकल ने जनपद जालौन में जन्म लिया। अपने जन्म स्थान और कर्मस्थल के आसपास के क्षेत्रों में लेखन के अतिरिक्त इन्होंने समूचे प्रदेश में तो स्लोगन लेखन का कार्य किया है। इसके साथ ही साथ इनके स्लोगन को देश के अन्य प्रदेशों में बड़ी ही आसानी से देखा जा सकता है।
समाज लगता है कि सुधरने से रहा किन्तु घर फूँक तमाशा देखने वालों की आज भी कमी नहीं है जो समाज के सुधरने का सपना लिए हुए आज भी निरन्तर प्रयासरत हैं। सबसे बड़ी बात है कि उनका यह प्रयास बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी आर्थिक मदद के सुचारू रूप से, अनवरत चल रहा है।
1 विकल जी के प्रयास को बधाई और नमन।
(इस बारे में आप विस्तार से यहाँ पर क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं। डा0 आदित्य कुमार जी और 1 विकल के मध्य सम्पन्न हुई वार्तालाप के आधार पर)
यह राष्ट्रीय धर्म चिन्ह के रूप में उनकी कल्पना के बाद सामने आया है। इसे 1 विकल ने महामहिम राष्ट्रपति जी को स्वीकारता हेतु विनम्र निवेदन सहित प्रेषित किया है। इनकी मान्यता है कि सभी धर्मों को एक सामान रूप से एक साथ जुड़ जाना चाहिए।
जागेश्वर दयाल के नाम वाले इस शख्स ने स्नातक की शिक्षा के बाद कुछ अलग करने की सोची और अपने विचारों के द्वारा समाज को जागरूक करने का बीड़ा उठाया। स्वान्तः सुखाय वाली स्थिति के चलते 1 विकल के नाम से प्रसिद्ध इस शख्स ने किसी से आर्थिक मदद की अपेक्षा नहीं की।
सामाजिक सुधार देते, नई-नई शिक्षा देते स्लोगनों को आप ज्यादातर पुलों की कोठियों और दुर्गम स्थानों पर लिखा देख सकते हैं। इनको लिखने के लिए 1 विकल स्वयं ही मेहनत करते हैं। बिना किसी संस्था अथवा धनपति की मदद के समूचे देश में सामाजिक संदेशों का प्रचार-प्रसार करना वाकई प्रशंसनीय है।
कानपुर को अपनी कर्मस्थली बताने वाले 1 विकल ने जनपद जालौन में जन्म लिया। अपने जन्म स्थान और कर्मस्थल के आसपास के क्षेत्रों में लेखन के अतिरिक्त इन्होंने समूचे प्रदेश में तो स्लोगन लेखन का कार्य किया है। इसके साथ ही साथ इनके स्लोगन को देश के अन्य प्रदेशों में बड़ी ही आसानी से देखा जा सकता है।
समाज लगता है कि सुधरने से रहा किन्तु घर फूँक तमाशा देखने वालों की आज भी कमी नहीं है जो समाज के सुधरने का सपना लिए हुए आज भी निरन्तर प्रयासरत हैं। सबसे बड़ी बात है कि उनका यह प्रयास बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी आर्थिक मदद के सुचारू रूप से, अनवरत चल रहा है।
1 विकल जी के प्रयास को बधाई और नमन।
(इस बारे में आप विस्तार से यहाँ पर क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं। डा0 आदित्य कुमार जी और 1 विकल के मध्य सम्पन्न हुई वार्तालाप के आधार पर)
यह राष्ट्रीय धर्म चिन्ह के रूप में उनकी कल्पना के बाद सामने आया है। इसे 1 विकल ने महामहिम राष्ट्रपति जी को स्वीकारता हेतु विनम्र निवेदन सहित प्रेषित किया है। इनकी मान्यता है कि सभी धर्मों को एक सामान रूप से एक साथ जुड़ जाना चाहिए।
विकल जी के प्रयास को बधाई और नमन।
जवाब देंहटाएंविकल जी के प्रयास को बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई..
जवाब देंहटाएं’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
विकल जी को बधाई !
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