20 दिसंबर 2009

करते रहो ब्लोगिंग पर कोई मतलब भी तो निकले..


आज फिर मन व्याकुल हुआ, ब्लाग पर लेखन किसके लिए और किस तरह का? इधर जब से ब्लाग पर आना हुआ लगातार इसी प्रश्न से दो-चार होना पड़ रहा है। समझ नहीं आता कि कौन सा विषय, कौन सा मुद्दा ब्लाग के अनुरूप है? यह चिन्ता ही कहीं जा सकती है जो चिन्तन पर भारी पड़ रही है।
चिन्तन इस बात का कि क्या सही है और क्या गलत और चिन्ता इस बात की कि ब्लाग के अनुरूप क्या सही, क्या गलत? चिन्तन और चिन्ता में एक प्रकार का शाब्दिक अन्तर मात्र है परन्तु उसके अर्थ में भारी अन्तर सा महसूस होता है।

कहा जाता है कि चिन्ता चिता समान है और चिन्तन व्यक्ति को गम्भीरता प्रदान करता है। इसी चिन्तन में समय व्यतीत करते-करते ब्लाग पर आ गये किन्तु लगा कि विषय को गम्भीरता नहीं दे सके। देश की समस्याओं की चर्चा करना, आतंकवादियों की चर्चा करना, अल्पसंख्यकों की चर्चा करना, महिलाओं के मुद्दों की चर्चा करना, दलितों की चर्चा करना आदि-आदि ब्लाग के स्वभाव के अनुरूप नहीं हैं।
चिन्ता इसी बात की है कि हम जा कहाँ रहे हैं, क्या चाह रहे हैं, माँग क्या रहे हैं? यह चिन्ता सिर्फ हमारी अकेले नहीं होनी चाहिए, हर उस व्यक्ति की होनी चाहिए जो अपने को भारतवासी कहता है। ब्लाग, हमें लगता है कि वह सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा हम अपनी बात को बहुत से लोगों के पास एक बार में पहुँचा सकते हैं। इस माध्यम का उपयोग सिर्फ चुटकुलों के लिए, चित्रों के प्रदर्शन के लिए, कुछ हँसी-हंगामे के लिए न होकर गम्भीर मुद्दों पर देश का ध्यान आकर्षित करने के लिए भी होना चाहिए।
फिलहाल तो ऐसा हमारा ख्याल है और ब्लाग पर आये हुए हमें अभी एक वर्ष और कुछ माह ही बीते हैं। ऐसी अल्पावधि में किसी तरह की राय देना उन लोगों के लिए बुरा व्यवहार होगा जो ब्लाग में मठाधीश की हैसियत से जमे बैठे हैं। एक जिम्मेवार ब्लागर होने की दृष्टि में क्या यह आवश्यक नहीं होना चाहिए कि कुछ ऐसा भी लिखा जाये जो समाज के हित में हो, देश के हित में हो? पर नहीं, मात्र टिप्पणियों की संख्या बढ़ाते रहना ही ब्लागिंग नहीं (हमारी दृष्टि में)
बहरहाल, देख जाये तो ब्लाग एक प्रकार की डायरी की तरह काम कर रहा है। इसमें व्यक्ति जो चाहे वह लिखे, जैसा चाहे वो लिखे। हम नहीं होते हैं किसी को राय देने वाले क्योंकि बिना माँगे मिलने वाली राय हमें भी मंजूर नहीं। इसके बाद भी यह ध्यान रखना होगा कि ब्लाग मात्र अपने विचारों के प्रदर्शन का माध्यम न बने, इसके द्वारा समाज हित की, देश हित की बात भी कर लिया जाया करे तो बेहतर होगा। चिन्तन और चिन्ता में यही अन्तर बहुत है।

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चित्र गूगल से साभार

10 टिप्‍पणियां:

  1. विचारणीय पोस्ट लिखी है।वैसे अभी तो हिन्दी ब्लोगरों ने अपने पाँव जमाने की कोशिश शुरू की है......इस लिए अभी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी...

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  2. सहीं कह रहे हैं चिंतन लाजमी है. हिन्‍दी ब्‍लागिंग के संबंध में एवं उसके विषय के संबंध में मेरा मानना है कि हम धीशों-ईशों-बाबा-नाना-ताउ-काकाओं को अपने ब्‍लाग की ओर आकर्षित नहीं भी कर पा रहे हों तब भी यदि हमें लगता है कि हमारे पोस्‍टों की उपादेयता वर्तमान में न सहीं भविष्‍य में रहेगी तो हमें निरंतर लिखना चाहिए, बिना किसी अपेक्षा के जैसे हम अपनी डायरी लिख रहे हों या कुछ ऐसी जानकारी अपने ब्‍लाग पर डाल रहे हों जो सर्च इंजन के द्वारा खोजे जाने पर भविष्‍य में लोगों के काम आये.
    मन रंजन और ब्‍लाग में जमें रहने के लिए हमें धीशों-ईशों-बाबा-नाना-ताउ-काकाओं से भी दुआ-सलाम करते हुए बोली-ठिठोली भी करना चाहिए ताकि संवाद बना रहे और हमारे आत्‍मा में पैठा ब्‍लागिंग कीडा कुलबुलाता रहे.

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  3. देश में चिंतन की काफी कमी चल रही है .. गंभीर चिंतन और उसके प्रचार प्रसार कर .. और उपयोगी प्रयोग से ही देश का विकास किया जा सकता है !!

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  4. चिंतन करें, चिंता न करें

    बी एस पाबला

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  5. kumarendra, tumhara likhna ab is disha men ho ki kuchh sarthak padhne ko mile.
    ek din tumne VYAKTITVA jaise ya fir SHAKHSIYAT jaise kisii blog ko banaane ka jikra kiya tha. use chalu karo. aaj hindi men achchhi samgri nahin mil rahi hai NET par.
    tum avashya hi is kami ko door karoge aisa vishwas hai.....
    LAGE RAHO kumarendra BHAI

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  6. हताश न हों आपकी चिंता स्वाभाविक है लेकिन भविष्य उज्जवल है

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  7. विचारणीय पोस्ट लिखी है. चिंतन करें,

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  8. "ऐसा भी लिखा जाये जो समाज के हित में हो, देश के हित में हो? पर नहीं, मात्र टिप्पणियों की संख्या बढ़ाते रहना ही ब्लागिंग नहीं (हमारी दृष्टि में)"

    बिल्कुल सही नजरिया है आपकी!

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