हमारे शहर के मध्य में एक ऐतिहासिक तालाब स्थित है। प्रशासन द्वारा कई वर्ष पहले उसकी सुध लेते हुए कुछ सुन्दरीकरण का कार्य वहाँ करवा दिया था। इसके अन्तर्गत वहाँ वृक्षारोपण हो गया तथा पक्की सड़क का निर्माण भी किया गया। अब लोग इस तालाब के क्षेत्र में सुबह, शाम को सैर के लिए जाते हैं।
आजकल हम भी इन घूमने वालों में शामिल हैं। कल यहीं हमारी मुलाकात शहर के एक कवि श्री योगेश्वरी प्रसाद ‘अलि’ जी से हो गई। कुछ इधर-उधर के विषयों पर बहुत थोड़ी सी चर्चा हुई। इसी के दौरान उन्होंने कहा कि हमने भगवान के सामने एक छोटी सी अर्जी लगा दी है कि
‘‘इतना बताइयेगा,
और कितना सताइयेगा?’’
हमने कल वहीं घूमते-टहलते इस पर पूरी कविता बना डाली। (कविता कभी बाद में)
आज जब से समाचार-पत्र के माध्यम से पढ़ा कि हिन्दी में शपथ लेने पर थप्पड़ मिला तबसे यही दो पंक्ति दिमाग में घूम रहीं हैं।
राज ठाकरे के लिए तथा हिन्दी का अपमान करने वाले सभी भारतीयों-विदेशियों से एक यही गुहार -
‘‘इतना बताइयेगा,
और कितना सताइयेगा?’’
बड़ा शर्मनाक रहा घटनाक्रम!
जवाब देंहटाएंDar hai ki in gunde badmashon ki wajah se log Shivaji se nafrat karna na shuru kar den, joki Maharaj Chhatrasaal ke abhinn mitra aur Hindi ke prashansak the...
जवाब देंहटाएंJai Hind...
कविता भी ब्लॉग पर डालिए . अलि जी और आप जब दोनों मिले इओ किसने किसको सताया?
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