21 नवंबर 2009

ये राजनीति है भैये, यहाँ सब चलता है......

ये हैं हमारे नये दोस्त................दिन गुजरे...............ये नहीं हैं हमारे दोस्त!!!! क्या हो गया ये? अरे भई ये समाज की हकीकत कम भारतीय राजनीति की हकीकत ज्यादा है। आज चर्चा गलियारों में चर्चा है मुलायम-कल्याण की। मुलायम का कल्याण तो उसी दिन हो गया था जिस दिन चुनाव आयोग ने सख्ती कर दी थी। इस ‘कल्याण’ को लेने का भी प्रयास किया किन्तु चारो खाने चित्त।
अब वास्तविकता का अध्ययन किये वगैर किसी और के सिर पर ठीकरा फोड़ देना अच्छी बात नहीं। मुलायम ने इस बात पर गौर नहीं किया कि जिस व्यक्ति ने अपनी आधारभूमि को आसानी से छोड़ दिया वह किसी और जमीन में कैसे पनप सकता है? भाजपा पहली बार छोड़ी गई तो कहा गया कि भाजपा के ताबूत में आखिरी कील कल्याण ही ठोकेंगे। बाद में कुछ भी नहीं हो सका (शायद ताबूत न मिला या कहें कि कील भी नहीं मिली) बहरहाल लौट के बुद्धू घर को आये। अब कैसे सफाई दें तो कहा कि अटल को एक उँगली दिखाई थी अब चारों उँगली से लड्डू खिला देंगे।
लड्डू खिलाया और जब तक वह अटल के मुँह में रहा तब तक तो भाजपा में रहे फिर कहना शुरू कि भाजपा पाँच सीट जीत कर दिखा दे तो मान जायें। मान गये जनाब............। अब मुलायम कठोर हुए तो कहने लगे कि हम भाजपा में भले ही नहीं हैं पर कोई भाजपा को मिटाकर दिखाये।
अब कोई राजनीतिक विश्लेषक बताये (सुभाष कश्यप जी, डी0डी0 बसु साहब कुछ मदद करिये) कि इस बात का क्या अर्थ निकाला जाये? मुलायम हों या फिर दूसरी पार्टियाँ, किसी न किसी रूप में मुस्लिम कार्ड खेल लेतीं हैं। कल्याण के आने से मुलायम का यह बँधा-बँधाया वोट-बैंक तो खिसका ही, साथ में साख भी खिसकी। चलो भैये क्या फर्क पड़ता है एक और बार जीभ ही तो लपलपानी है। लपलपाई और निकला कि कल्याण न कभी सपा में थे और न कभी रहेंगे।
लो जी, हो गया निर्धारण। अब बस, चुप बैठो और देखो कि आगे क्या होना है? यही तो राजनीति है, कौन कह गया कि राजनीति, सरकार, सत्ता जनता के लिए है। अरे भाई जनता के लिए है तो पर जनता के साथ खिलवाड़ करने के लिए।
खेलो...खेलो और जोर से खेलो, बिना रिकार्ड बनाये न मानना।
मुलायम अपना परिवार प्रेम नहीं देख पा रहे हैं और दोष किसी और को दे रहे हैं। थोड़ा सा महाभारत का समय याद करलें महाशय और अपने दल की हालत का भी जायजा ले लें, पता चल जायेगा।
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नोट विशेष क्षमायाचना सहित-ये सब पता नहीं किस झौंक में लिख गये। हमें ये सब तो लिखना ही नहीं था, क्षमा करना। (लिखना पड़ता है यह सब भी क्योंकि हमारे सांसद साहब भी सपा के हैं)
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चित्र साभार गूगल से लिया है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. शर्म की बात है की आज भी राजनीति, जबकि अब तो लोकनीति होनी चाहिए... अब किस पे करें भरोसा सभी दल तो चोर हैं... एक सांपनाथ तो दूजा नागनाथ...
    जय हिंद...

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  2. आज मिलन कल जुदाई!
    यह राजनीति का चक्र है भाई!

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  3. हर कोई ढूढे नित नई गैल ,
    राजनीति का देखो खेल.

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