14 सितंबर 2009

भ्रष्टाचार रोकना है तो भ्रष्ट बनो


प्रधानमंत्री जी परेशान हैं कि देश में भ्रष्टाचार नहीं रुक रहा है। रोकने के उपाय खोजे जा रहे हैं पर नाकाम। सवाल है कि किसे भ्रष्ट कहेंगे और किसे नहीं?
एक छोटा सा उदाहरण कि आपका कोई काम है और वह मात्र इस कारण से टल रहा है कि आपने उसको करने वाले को मात्र 500 रुपये नहीं दिये। अब आप परेशान हैं कि काम नहीं हो रहा है और दूसरे आपको टोकेगे कि आप बड़े मूर्ख हैं जो मात्र 500 रुपये में अपने काम को लटकाये पड़े हैं।
इसी तरह कोई अपना बड़े से बड़ा काम भी कुछ पैसों की दम पर करवा लेता है तो ऐसे ताल ठोंकता है जैसे उसने बहुत बड़ा तीर मार लिया हो। वैसे आज के जमाने में पैसे देकर भी अपना काम करवा लेना तीर मारने से कम नहीं है।
आप भ्रष्टाचार को कहाँ और कैसे रोकेगे? कभी-कभी समाचार सुनने को मिलता है कि फलां व्यक्ति रिश्वत लेते पकड़ गया। इस पर एक पल को सभी की राय बनती है कि अपने अधिकारियों को नहीं खिला रहा होगा।
आज हालत ये है कि पग-पग पर भ्रष्टाचार है। समस्या इसके समाप्त करने को लेकर है। इसके बाद भी देखा जाये तो हम लोग ही इसको रोकने के लिए काम नहीं कर रहे हैं। हमारा जहाँ जैसा हाथ चलता है हम भी भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं।
भ्रष्टाचार-इसका सीधा सा तात्पर्य है कि भ्रष्ट आचरण करने वाला। हम छोटे स्तर पर सक्षम होते हैं तो वहाँ भ्रष्टाचार कर लेते हैं। रेलवे का साधारण श्रेणी का टिकट लिया और जा बैठे स्लीपर में। अब टिकट चेकर के आने पर कुछ छोटी सा मुद्रा उसके हाथ में थमा दी, और आराम से पैर फैला कर यात्रा शुरू। क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है?
इसको समाप्त करने में सबसे बड़ी बाधा है समाज के कुछ लोगों का पूरी तरह से भ्रष्ट न हो पाना। जी हाँ, आपको ये बात बड़ी अजीब लग रही होगी पर सत्य यही है। जब तक समाज में एक आदमी भी भ्रष्टाचार से मुक्त है तब तक भ्रष्टाचार को रोक पाना सम्भव नहीं।
यह एक प्रक्रिया है और इसमें सभी का शामिल होना जरूरी है। मान लीजिए कि सभी लोग भ्रष्ट हो गये हैं तब....। आपने कोई करवाने का कुछ पैसा लिया, अब आप किसी काम को करवान गये और उसने भी पैसा लिया। वह अपने किसी काम से कहीं जाये और उसे भी पैसा देना पड़े। यह क्रम सभी के साथ चलता रहे। सब पैसा कमा भी पा रहे हैं किन्तु देना भी पड़ रहा है। कहीं कम कहीं ज्यादा, परिणामतः किसी के भ्रष्ट होने से मात्र उसे ही लाभी नहीं हो पा रहा है। इससे सम्भावना है कि भ्रष्टाचार रुके।
वैसे भी यह सब आपसी सहमति का मामला बनता है तो इसे भी समलैंगिकता की तरह से कानूनी स्वरूप दे दिया जाये? आपसी सहमति????
जब तक नहीं रुक रहा तब तक इसे भी राष्ट्रीय सम्पदा मान कर पोषित, पल्लवित करते रहिये। खुद भी नांचिए और दूसरों को भी नोचते रहिये। साथ में बोलिये ‘‘जय भ्रष्टाचार’’

5 टिप्‍पणियां:

  1. नाचते नाचते कह रहे हैं-जय भ्रष्टाचार.

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  2. दरअसल हमारी मानसिकता ही भ्रष्ट हो चुकी तो भ्रष्टाचार रुके कैसे !

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  3. पता नहीं ये भ्रष्टाचार का दानव कब जायेगा हमारे दिलो दिमाग से ।

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  4. मड़ा मुश्किल है इसे रोकना। यहाँ बात यह है कि आप बदलेंगे किसे और बदलेगा कौन, कोई एक हो तो बदलने की कोशिश की जाये और कोई भ्रष्ट ना हो तो वह बदले। वर्तमान समय में दोनो मुश्किल है।

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  5. देश में सर्वाधिक लोकप्रिय आचार - भ्रष्टाचार .....सही प्रहार किया है

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