12 सितंबर 2009

रिश्तों की उठापटक, ऐसे में पागल तो होना ही था

अमृतसर के पागलखाने में नया मरीज भर्ती किया गया। उसका चेकअप करते हुऐ एक डाक्टर ने कहा कि आप मानसिक रूप से तौ ठीक ठाक लग रहे हैं..... फिर यहां कैसे आ गये?
मरीज बोला डाक्टर मैं ठीक हूं पर बात यह है कि कुछ समय पहले मैंने एक विधवा से शादी की...... उसके एक जवान बेटी थी..... मेरे पिता जी ने उससे शादी कर ली और फिर मेरी पत्नी मेरे पिता जी की सास बन गई।
कुछ समय बाद मेरे पिता जी के घर बेटी पैदा हुई और वह मेरी सौतेली बहन बन गई।
इसके अलावा वह मेरी नवासी भी थी। क्योंकि मैं उसकी नानी का पति था।
अब मेरे घर बेटा हुआ। एक तरफ मेरी सौतेली मां मेरे बेटे की बहन लगती थी क्योंकि वह उसकी मां का बेटा था।
दूसरी तरफ वह उसकी दादी लगती थी क्योंकि वह मेरी मां भी थी। इस तरह मेरा बेटा मेरी मां का भाई बन गया।
डाक्टर साहब आप सोचो मेरे पिताजी मेरे दामाद और मैं उनका ससुर....
इतना ही नहीं मेरी सौतेली मां मेरे बेटे की बहन यानि मेरा बेटा मेरा मामा और मैं अपने बेटे का भांजा......
तभी अचानक डाक्टर जोर-जोर से रोने लगा और उसने मरीज से पूछा कि मेरे बाप मैं कौन हूं?

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ये पोस्ट हमारी नहीं है, इसे हमारे एक मित्र श्री भगीरथ जी ने मेल से हमें भेजा था। उन्हीं की अनुमति से आप सभी के लिए इसे यहाँ लगाया है। अब आप इसे चाहे चुटकुला कहें या फ़िर कुछ और हमें तो पढ़ के बड़ा मजा आया। आप भी मजा लें।

4 टिप्‍पणियां:

  1. भाई जी बडी़ मुश्किल से समझ पया हूँ इस रचना को। और समझते-समझते मेरा भी दिमाग ठनक गया।

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  2. लगता है आप ने आज ठान ली कि सब पाठकों को एक बार तो क्लिनिक दिखा ही दिया जाए।

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  3. पढने वाला भी पागल होने से कहाँ बच पायेगा..!!

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  4. आपकी लेखनी को मेरा नमन स्वीकार करें.

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