जी हाँ, यही सत्य है। आज की पोस्ट का पहला वाक्य वही है जो हमारा आज का शीर्षक है ‘‘यदि मसला टिप्पणियों के लेनदेन का न हो तो।’’
आज जरूरत इसलिए लिखने की पड़ी क्योंकि पिछले कई दिनों से एक न एक ब्लाग पर टिप्पणियों को लेकर लिखी गई पोस्ट पढ़ने को मिल रही है। पढ़ने के बाद लोगों का बड़ी ही मासूमियत और आदर्शवादी ढंग से यही कहना है कि नहीं टिप्पणियों के लेन-देन जैसी कोई बात नहीं है। विचार अच्छे हों और पोस्ट उम्दा हो तो टिप्पणी स्वयं ही मिलती है।
हो सकता है कि यह सत्य हो पर पूर्ण सत्य नहीं है। इसका उदाहरण इस बात से लगाया जा सकता है कि कोई-कोई तो ऐसा लिख रहा है कि बस समझो कि लिख ही रहा है। इसके बाद भी टिप्पणी पाये जा रहा है क्योंकि वह भी लगातार देता रहता है।
बहरहाल हमारा यह मुद्दा नहीं है कि क्या करा जा रहा है और क्या नहीं किया जा रहा है। हमने जब ब्लाग पर लिखना शुरू किया था तो कहीं पढ़ रखा था कि पोस्ट छोटी हो, विचारों से भरी हो, किसी उद्देश्य को लेकर लिखी गई हो आदि-आदि।
यह भी पढ़ा था कि नये ब्लागर को प्रोत्साहित करने के लिए भी टिप्पणी करने जरूर जायें। सोचा था कि शायद ब्लाग संसार में आने/बसने का यह भी एक दस्तूर है सो आज भी निभाये जा रहे हैं। नये ब्लागर को टिपियाते हैं भले ही प्रतिष्ठित ब्लागर के ब्लाग पर न टिपिया पायें।
अब काम की बात जिसके कारण यह पोस्ट लिखी। हमारे एक अंकल है - डा0 आदित्य कुमार, स्थानीय महाविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में अध्यक्ष हैं। विचारों से जागरूक और समकालीन मुद्दों पर खुली सोच रखने वाले।
हाल ही में उन्होंने एक ब्लाग (Pearls of Thoughts) बना कर अपने विचार लिखने शुरू किये। कई विद्वान ब्लागर की तरह ही उनका भी मानना है कि पोस्ट छोटी हो तो ज्यादा पढ़ी जायेगी। इसी सोच में उन्होंने छोटी-छोटी पोस्ट लिखना शुरू किया। अभी तक की सारी पोस्ट समसामयिक मुद्दों पर, वर्तमान विषयों पर, समाज-देश की समस्याओं पर आधारित रहीं।
इसके बाद भी उनकी पोस्ट पर टिप्पणियों की संख्या एक-दो ही रही। कारण....??? एक कारण तो हमे स्पष्ट है कि वे अभी ब्लाग के मामले में नये-नये हैं और इस कारण ब्लाग के गुरुओं को, मठाधीशों को पहचान नहीं सके हैं। नये होने के कारण टिप्पणी देने के मामले में भी कई बार अनजाने ही गलतियों का शिकार हो जाते हैं। हालांकि हमें भली-भांति पता है कि उनके लिए टिप्पणियों को पाने का उतना महत्व नहीं है जितना कि इस बात का है कि वे अपने विचारों को किस तरह से सामने रखते हैं।
हमारा और उनका सम्बन्ध ठीक उसी तरह से है जैसे कि एक बाप-बेटे का होता है। इस कारण से हमें और भी शिद्दत से महसूस हुआ कि ब्लाग पर कोई कुछ भी कहे टिप्पणियों का भी अपना एक अलग व्यापार है। वही पुराने समय की वस्तु विनिमय वाली स्थिति। अपना सामान हमें दो, हमसे अपने काम का सामान खरीदो।
इस पोस्ट का मतलब कतई ये नहीं था कि आप सब दिखावे के लिए टिप्पणी करने जायें। हाँ आपको लगे कि पोस्ट पर कुछ सार्थक लिखा है तो अवश्य ही अपनी बात रखें। इससे उनको भी अच्छा लगेगा।
आश्चर्य तो इस बात का है कि ब्लाग संसार में सबको प्रोत्साहित करने वाले समीर भाई भी यहाँ से अनजान हैं। क्या आप सब भी इस ब्लाग से अनजान हैं?
फिर वही बात कि ‘‘यदि मसला टिप्पणियों के लेन-देन का न हो तो’’ यहाँ भी जायें और.....
‘‘यदि मसला टिप्पणियों के लेनदेन का न हो तो।’’
जवाब देंहटाएंआपका माल नहीं बिकेगा डॉक्टर साब ! उसके दो कारण है
१. इस जगत पर विक्रेता अधिक खरीददार कम है !
२.सभी विक्रेता प्रवंधन में डिग्री हासिल किये है अतः उनकी सीधा तर्क यह है की जब आप हमारे माल में इंटेरेस्ट नहीं ले रहे तो हम क्यों आपके माल में दिलचस्पी ले ?
हां यह भी सत्य है की अगर आपने बहुत उम्दा लिखा है तो निश्चित तौर पर कुछ खरीददार माल की गुणवत्ता के आधार पर खुद व खुद चले आते है, लेकिन customer volume कम होता है, यह मानकर चलिए !
संदर्भित ब्लाग पर कुल 15 आलेख हैं। अभी पहचान बनने दीजिए। टिप्पणियाँ भी आने लगेंगी। 31 माह में 2000 पोस्टों वाले ब्लाग अदालत पर एक या दो ही टिप्पणियाँ आज भी होती हैं। मेरा मानना है कि ब्लाग का उद्देश्य अंतर्जाल पर सूचना योग्य ज्ञानवर्धक सामग्री में वृद्धि करना होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंहम तो इस पर पहले ही बतया चुके हैं और यह एक कडवा सच है की यह लेन देन का ही खेल है..अपने फ़ोलोअर बनाओ और किसी के फ़ोलोअर बनो... फ़िर बस टिप्पणियां ही टिप्पणियां बटोरो..
जवाब देंहटाएंलेखन का टिप्पणी से कोई सरोकार नहीं है.
हमने ब्लोगर बिरादरी के लिये एक पोल लगाया था मगर सिर्फ़ २७ लोगों ने ही वोट डाला.. बाकी सब दर्शक रहे.. ;)
क्या जरूरी है यह तो टिप्पणी कर्ता ही बता सकते हैं
बहुत बढ़िया पोस्ट है डॉ.साहिब!
जवाब देंहटाएंमगर आप तो केवल टिप्पणियों के लेने में माहिर हैं।
ब्लॉग की दुनिया के एक कुशल रणनीतिकार -आपको मान गए.
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