सुबह-सुबह मोबाइल ने बजना शुरू किया। गुस्सा बहुत आया। रात को सोच कर सोये थे कि देर तक सोयेंगे पर कमबख्त मोबाइल। मन मार कर आने वाले को हाय-हैलो बोला गया। हैलो बोलते ही हमें और तेज गुस्सा आया। दूसरी तरफ वाले ने जो नाम बताया वह हमारे घर में तो क्या दूर-दूर तक न तो रिश्तेदारी-नातेदारी में था और न ही पास-पड़ोस में।
यह सोच कर कि गलत नम्बर है, पूछा किस नम्बर को लगाया है? जवाब में हमारा ही नम्बर बताया गया। फिर पूछा किसने दिया? अबकी जो जवाब मिला उससे लगा कि बात तो हम ही से करनी है।
दरअसल हम कुछ दोस्त मिल कर एक एसोसिएशन बनाये हैं और लोगों को उससे जोड़ने का काम चल रहा है। ‘पी-एच0डी0 होल्डर्स एसोसिएशन’ नाम से इस एसोसिएशन में विशेष रूप से पी-एच0डी0 वालों को ही जोड़ा जा रहा है। उसी से जुड़ने के लिए उस तरफ से फोन था।
सामने वाली महिला थी, फिर उससे शालीनता से पूछा कि नम्बर तो हमारा है पर इस नाम का यहाँ कोई नहीं है। जब उसने हमारे दोस्त का नाम बताया कि फलां श्रीमान ने कहा था कि इस नाम वालों से बात कर लें तो पूरी स्थिति पता चल जायेगी। यदि आप कहते हैं कि इस नम्बर का यहाँ कोई नहीं है तो सारी।
अब हमारी समझ में पूरी बात आ गई। जोर की हँसी आई किन्तु अपनी हँसी को रोक कर कहा बताइये क्या जानकारी चाहिए? हम वही बोल रहे हैं जिनका नाम आपको फलां श्रीमान ने बताया है। उस तरफ एक पल को खामोशी छा गई। हम समझ गये कि नाम को लेकर संशय कायम है। हमने तब उनको समझाया कि हमारा ही नाम कुमारेन्द्र है और आप सही व्यक्ति से बात कर रहीं हैं।
आपको पता कि वो मैडम किससे बात करना चाहतीं थीं? वो बात करना चाहतीं थीं ‘कुमारी इन्दिरा’ से। उनके यह बताते ही हम समझ गये कि बेचारे कुमारेन्द्र को संधि-विच्छेद करके कुमारी इन्दिरा बना दिया गया है।
ऐसा अकसर हमारे नाम को लेकर होता रहा है। कभी नादानी में तो कभी प्यार में तो कभी चुहल में। हमारा एक मित्र है संदीप। वैसे तो वह हमें कुमारेन्द्र ही बुलाता है पर जब कभी अपने मूड में होता है तो कुम्मू ही बुलाता है।
हमारे इन्हीं दोस्त के रिश्ते के एक भाई हैं। उनको मालूम है कि हमारा नाम कुमारेन्द्र है पर वे आज भी हमें रामेन्द्र बुलाते हैं और सुनने वाला भी समझ जाता है कि बात हमारी हो रही है।
कालेज के दौरान हमारा एक साथी था, उसने भी हमारे नाम के अलग-अलग हिस्से करके एक अलग ही नाम बना दिया था। यहाँ उस समय कालेज के समय का लड़कपन, चुहलबाजी ही काम करती थी। उसने हमारे नाम को चार हिस्सों में बाँट दिया था - कुमार, इन्द्र, सिंह, सेंगर। इसके बाद इसको अंग्रेजी के शार्टफार्म में बनाकर पुकारता था। ‘किस’ (KISS) - कुमार का K, इन्द्र का I, सिंह का S, सेंगर का S।
इसी तरह और भी कई तरह से लोग उच्चारण में गलती करके नाम के कई रूप बनाते रहे हैं पर मोबाइल से बात करने वाली महिला ने जो नाम दिया उसने तो हमें भी घुमा दिया।
वाह! कैसे हो (कैसी हो) कुमारी इन्दिरा?
हमारे यहाँ बहुत पहले से अर्द्ध नारीश्वर की परिकल्पना है. फोन पर गलती से ही सही वह पुनः प्रयोग में आ गयी
जवाब देंहटाएंहम भी घूम गये. :)
जवाब देंहटाएंयह संधि-विच्छेद अच्छा रहा. कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा. साथ ही आपकी टिप्पणी के लिए शुक्रिया
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