14 जुलाई 2009

टिप्पणी के लिए तपस्या

सुबह-सुबह उठकर टहलने के लिए घर से बाहर निकले। सब तरफ वही रोज जैसा माहौल था। कुछ भी खास नहीं लगा बस एक चीज को छोड़ कर। सामने के पेड़ (पेड़ कहना बेकार है पर मन बहलाना है) के नीचे एक महात्मा टाइप के व्यक्ति बैठे दिखे। पहले सोचा कि कोई सुबह का टहलुआ होगा जो थक कर पेड़ की छाया में (अभी धूप ही कहाँ है) बैठ गया होगा।
पर नहीं....वे महाशय थक कर नहीं बैठे थे। वे तो आसन जमाये बाबाजी के बताये करतबों को करने में जुटे थे। हम अपनी यात्रा पर निकल गये। बापस लौटे तो महाशय जमे थे। ध्यान नहीं दिया सोचा लम्बी कलाबाजी करने का विचार है। बाद में कालेज के लिए लगभग 10 बजे निकले तो भी वे साहब अपने स्थान पर डटे थे।
अब हम थोड़ा सकते में आये। लगा कहीं कोई चार सौ बीस तो नहीं जो मोहल्ले के आदमियों के अपने-अपने काम पर जाने का इन्तजार कर रहा हो और बाद में महिलाओं को बेवकूफ बना दे। (क्षमा करियेगा, इस दौर में महिलाओं को बेवकूफ बनाना आसान नहीं) हमने उनके पास जाकर उनका शरीर खटखटाया। उन्होने अपने द्विनेत्रों में से एक नेत्र को कष्ट देकर हमें निहारा और अपना सिर हिलाया।
हमने कहा कैसे?
बोले साधना कर रहे हैं।
हम फिर बोले किस बात की?
वे बोले बच्चा सवाल ज्यादा नहीं।
हमें खिसियाहट छूटी। कहा अभी तो दूसरा ही सवाल था, इतने में ही थक गये। सच-सच बताओ कि चक्कर क्या है, नहीं तो पुलिस को बुलाते हैं।
अबकी बार दोनों नेत्रों को पूरी तरह से खोलकर वे बोले अपने आप से परेशान हैं। ब्लागिंग की दुकान चलाते हैं। चाहे जैसा माल बेचो कोई आता ही नहीं।
हम समझ गये कि टिप्पणी का मामला है। लगता है नया-नया व्यापार में उतरा है। शायद हमारे कुछ पुराने मठाधीशों को व्यापार करते देख लिया होगा।
हमने कहा कि इससे क्या होगा?
बोला किसी ने बताया है कि इस पेड़ के नीचे बैठ कर अच्छे-अच्छों को ज्ञान प्राप्त हुआ है। शायद हमें भी हो जाये।
हमने कहा यार हम तो पिछले दस-बारह साल से यहाँ रह रहे हैं, हमें तो ऐसा कुछ नहीं लगा।
वो बोला तभी तुम कितनी पा जाते हो। अरे उन्हें देखो....।
हम मतलब समझ गये। हमने कहा तुम तपस्या में लगे रहो। टिप्पणी पा सको या नहीं पर एक रोजगार जरूर पा लोगे।
वो फिर अपनी तपस्या में लग गया और हम आपके लिए पोस्ट करने लायक कुछ सामग्री की खोज में निकल पड़े।
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(आज किसी तरह के गम्भीर मसले पर लिखने का मन नहीं हो रहा था और पिछले कुछ दिनों से ब्लाग पर टिप्पणियों को लेकर खूब लिखा गया। सोचा हम भी कुछ हल्का सा इस पर लिख दें। अब अपनी छोटी सी बुद्धि में इतना ही हल्का आ पाया। आपको बताने की जरूरत नहीं एक हल्का-फुल्का सा मजाकिया लहजा है। कोई दिल से न लगाये, आजकल वैसे भी दिल बड़ा कमजोर है। आशा है कि इतना हल्का तो आप लोग उठा लेंगे।)

11 टिप्‍पणियां:

  1. स्वामी जी का क्या नाम बताया था आपने??

    बहुत पहुँचे संत लगते हैं :)

    कुछ आशीष जरुर ले लेना जब वो मंत्र सिद्ध कर लें.

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  2. गुरू समीरानन्द की जय बोल कर,
    आशीष से आशीष लेना मत भूलना।

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  3. इनको बाबा समीरानंद और बाबा ताऊ आनंद के आश्रम में जाने की सलाह दे आते | टिप्पणी पाने के गुर वहीँ सीखे जा सकते है |

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  4. आखिर बाबाओं ने टी०वी० धाम के साथ साथ ब्लागधाम में भी जगह बना ली।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  5. जय हो बाबा डाक्टरानंद की।र

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  6. इतनी घोर तपस्या करने की बजाय यदि किसी पुराने मठाधीश के ही चरण पकड लेते तो अब तक सफल ब्लागर बन गए होते:)

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  7. दुखी होने के लिए स्वामी बनने की जरूरत नहीं...टिपण्णी तो मौज की तरह है जब मन करता है चली आती है...उस पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं चल पाती...रोचक पोस्ट लिखी है आपने...बधाई...
    नीरज

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  8. अच्छा, ऐसा क्या ?
    उ पेड़ का एड्रेस बताइयेगा जरा, हमहूँ ट्राई करेंगे...

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