11 जून 2009

मदद करो नहीं तो हमें कहना पड़ेगा "भिक्षाम देहि"

एक बहुत ही गम्भीर समस्या आन खड़ी हुई है, आप सबके सामने इसके समाधान के लिए खड़े हैं। आप सबको जैसा कि ज्ञात होगा कि शब्दकार का संचालन मार्च में शुरू किया गया था। आप सबके सहयोग से ही इस ब्लाग का संचालन किया जाना सुनिश्चित किया था। सहयोग भी मिला। अपनी ओर से भी आप सबके पास तक पहुँचने का प्रयास किया। बस समस्या यहीं आकर खड़ी हो गई।
हुआ यह कि यह समझ में नहीं आ रहा था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को शब्दकार में प्रकाशन के बारे में कैसे बताया जाये? चूँकि शब्दकार में आलेखों, कहानियों, कविताओं आदि का प्रकाशन किया जाना तय किया गया था। जैसा कि किसी भी नई-नई चीज के बारे में होता है हमने भी इस ब्लाग का प्रचार करना शुरू किया।
प्रचार के तरीके में हमें सबसे सरल और सहज तरीका आप तक पहुँचने का लगा टिप्पणी। बस यही सोच कर हमने आप सबक ब्लाग पर जाकर टिप्पणी के माध्यम से शब्दकार के बारे में प्रचार करना शुरू कर दिया। हमें लग रहा था कि हम अपने व्यक्तिगत ब्लाग का प्रचार तो कर नहीं रहे हैं इस कारण सभी का पर्याप्त सहयोग प्राप्त होगा। किन्तु ऐसा नहीं हुआ। बहुत से लोगों को हमारा यह तरीका नागवार गुजरा। कई लोगों ने तो अपना सहयोग भी प्रेषित किया किन्तु अधिसंख्यक लोगों ने तो ई-मेल के द्वारा इसका विरोध किया। कई लोगों ने तो टिप्पणी को प्रकाशित करना तक उचित नहीं समझा।
इसके बाद लगा कि हो सकता है कि लोग टिप्पणी के द्वारा सिर्फ और सिर्फ अपने ब्लाग पर पोस्ट की गई सामग्री के बारे में ही बात करना पसंद करते हों। और हमारा इस प्रकार से शब्दकार का प्रचार करना उन्हें अच्छा न लग रहा हो। बस यही सोच कर हमने इस रचनात्मक ब्लाग का प्रचार ई-मेल के माध्यम से करने का मन बनाया।
बड़ी ही संयत भाषा में लोगों के लिए एक संदेश बनाया और मेल के माध्यम से इस ब्लाग का प्रचार करना शुरू किया। एक व्यक्ति को एक बार ही मेल किया। यह नहीं कि मेल कर-करके परेशान कर डाला हो किन्तु नतीजा वही ढाक के तीन पात! रचनायें तो प्राप्त हुईं नहीं लोगों ने इस तरीके का भी विरोध करना शुरू कर दिया। दो-तीन लोगों ने तो साइबर क्राइम में मामला ले जाने जैसी धमकी भी दे डाली।
तब लगा कि हम कोई अपराध कर रहे हैं इस तरह के ब्लाग का संचालन करके। हमारी तो सोच थी कि इसी बहाने हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य के लिए कुछ करने का एक छोटा सा प्रयास हो जायेगा। पर.................
बहरहाल अब समस्या यह है कि हम क्या करें जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शब्दकार के प्रकाशन की सूचना पहुँचा सकें? प्रचार का क्या माध्यम अपनायें कि लोगों की रचनायें अधिक से अधिक प्राप्त हो सकें? आप लोग भी समस्या के समाधान में हमारी मदद करें अन्यथा कि स्थिति में कहीं हमें इस ब्लाग की खातिर, हिन्दी भाषा की खातिर, हिन्दी साहित्य की खातिर यह न कहते घूमना पड़े (ब्लाग दर ब्लाग)
‘‘भिक्षाम देहि, भिक्षाम देहि’’
‘‘या खुदा ब्लाग के नाम पर एक रचना दे दे’’
"जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला’’ वगैरह-वगैरह।

2 टिप्‍पणियां:

  1. डा.साहब इन तरीको से बहुत कम लोग ब्लॉग पर आते है | हिंदी एग्रीगेटर्स से भी कुछ विजिटर ही आते है वो भी सिर्फ उसी दिन जिस दिन आपने पोस्ट लिखी हो | जहाँ तक मैंने अपने ब्लोग्स पर देखा है सबसे ज्यादा विजिटर गूगल सर्च से ही आते है हालाँकि हिंदी में सर्च करने वाले अभी काफी कम है लेकिन आजकल हिंदी सर्च करने वालों की संख्या बढ़ रही है | और इसी कारण ब्लोग्स पर भी गूगल सबसे ज्यादा विजिटर भेजती है | गूगल से ज्यादा विजिटर पाने के लिए आपको अपने ब्लॉग के टेम्पलेट में कुछ थोडा सा फेर बदल करना पड़ेगा | उसके महीने भर बाद आप अपने ब्लॉग पर आने वालों की संख्या देखना खुद समझ जायेंगे | विजिटर संख्या देखने के लिए आप http://my.statcounter.com/register.php इस वेब साईट से काउंटर का कोड लेकर लगाये व टेम्पलेट में क्या फेरबदल करना है उसके लिए यहाँ लिखा है | http://easyvirus.blogspot.com/2009/04/customizing-blogger-meta-tag-title.html इसी सम्बन्ध में एक और पोस्ट यहाँ भी लिखी है http://www.blogspottutorial.com/2009/04/optimizing-meta-tag-for-blogger.html

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