08 जून 2009

हम अब वाकई आधुनिक बन चुके हैं

एक पुत्री द्वारा अपनी माँ का कत्ल; कारण था अपने प्यार में बाधक बनना। यहाँ थोड़ा सा खटकना होता है कि लड़की के प्यार में माँ का बाधक होना? प्यार में बाधक होना तो तब होता जबकि लड़की किसी एक ही लड़के से प्यार करती। समाचार के अनुसार तो लड़की के घर पर उसके परिवारीजनों की अनुपस्थिति में कई लड़के आते थे।
अब देखिए इस समाचार का एक और पेंच; कई लड़के आने की बात समाचार वालों को कहाँ से ज्ञात हुई? या तो परिवार के लोगों ने बताया या फिर मुहल्ले वालों ने बताया। अब यदि घर वालों ने बताया तो वे अभी तक अपनी लड़की पर लगाम क्यों नहीं लगा पाये? और यदि मोहल्ले वालों ने इस बात को बताया है तो क्या यह सम्भव है कि घर वालों तक इसकी खबर न पहुँची हो?
अब सोचिए कि इन दोनों ही स्थितियों में घर वालों को अपनी बेटी की करतूत तो पता ही थी।
इस घटना पर कई ब्लाग पर सवाल उठाये गये। सामाजिक कारण, चिन्तन के आधार तलाशने के प्रयास किये गये। क्या वाकई अभी भी हम चिन्तन के लिए ही बैठे हैं? इस पूरे मामले पर कुछ भी कहना अपने आपको सामंतवादी सिद्ध करवाने के समान होगा। फिर भी.......
इस पूरे प्रकरण को बिना इस पूर्वाग्रह के कि घटना के परिदृश्य में एक लड़की है देखा जाये तो आसानी हो सकेगी नहीं तो वही ढाक के तीन पात।
पहली बात कि लड़की के रंग-ढंग एकाएक तो बदले ही नहीं होगे। होता है घरों में अक्सर कि हम कुछ ज्यादा ही आधुनिक बनने का प्रयास करते हैं और फिर अचानक ही ऐसी ठोकर खाते हैं। पहनावा यहीं आकर सवाल खड़े करता है, चाहे वह लड़के का हो या फिर किसी लड़की का।
अकसर देखा गया है कि आधुनिक कहलाने के चक्कर में हमारे घरों के बच्चों के कपड़ों में एक प्रकार की फूहड़ता आती जाती है। धीरे-धीरे इस प्रकार की फूहड़ता उनके व्यवहार में शामिल होने लगती है। अपने बच्चों के विपरीत लिंगी मित्रों के प्रति ज्यादा जानकारी न रखने का भाव, इस बात पर प्रसन्न होना कि हमारे लड़के की बहुत सी महिला मित्र हैं या फिर कि हमारी लड़की के बहुत से पुरुष मित्र हैं, समानता का नाटक करते हुए, आधुनिकता का दम्भ भरते हुए अपने बच्चों का रात-रात भर घर से बाहर रहने को स्वीकार करना भी हमें परेशानी में डालता है।
महिला-पुरुष के भेदभाव के कारण भी इस प्रकार की विसंगतियाँ मिलना आम हो गईं हैं। अब आप चाह कर भी अपने बच्चों के विपरीत लिंगी रिश्तों को रोक नहीं पा रहे हैं। एक ओर खुद के फूहड़ कहलाने का खतरा, दूसरी ओर अपने ही बच्चें का विरोध सहने का डर। इसी डर में हम अपने बच्चों के मित्रों की जाँच-पड़ताल करना भी उचित नहीं समझते हैं। (यहाँ बच्चों की मदद करना या फिर उनको सलाह देना कुछ लोगों को सामंतवाद का पोषण करना दिखता है, ब्लाग पर भी बहुत से लोग इस प्रवृत्ति के हैं)
इसके अलावा आधुनिक जीवन-शैली ने हमें और भी विकृत किया है। घर में महिलाओं का आपस में तालमेल ज्यादा होता है। यह देखने में आता है कि उम्र में व्यापक अन्तर के बाद भी दो महिलाओं में ज्यादा घुलमिल कर बातचीत होती है। इसी के साथ-साथ अपने आपको ज्यादा आधुनि बनाने के प्रयास में माँ-बाप अपने बच्चों के माँ-बाप न बन कर उनके मित्र बनना पसंद करने लगे हैं। आपस में महिला-पुरुष मित्रों को लेकर किया जाता हँसी-मजाक, साथ के लड़के-लड़कियों को लेकर की जाती चुहल के कारण भी इस तरह के संदेह बच्चों के मन में आते हैं कि अपने माता-पिता ही इस प्रकार के सम्बन्धों के हिमायती हैं।
अभी भी हमारे भारतीय समाज को फिल्मों के माता-पिता बनने में बहुत समय लगेगा, जहाँ लड़के को उसका बाप ही अपनी प्रेमिका को पाने के लिए उकसाता है, गुंडों से लड़वाता है। लड़की को उसकी ही माँ प्रोत्साहित करती है कि वह रातों को अपने प्रेमी से मिलने जाया करे। (हर दूसरी-तीसरी फिल्म इसी तरह के दृश्यों से भरी रहती है।)
कुल मिला कर इस पुराण में इतना कुछ है कि जितना कहा जाये उतना कम है। समाज में अभी तक जो बोया गया हम अब उसे काटने को तैयार रहें। सम्बन्धों के खुलेपन के हम ही हिमायती रहे हैं। खुले सेक्स जीवन को हमने ही अपनाया है। एक से अधिक सेक्स सम्बन्धों पर हम ही गर्व करते हैं। बिन ब्याही माओं को हमने ही प्रोत्साहन दिया है। नारी शक्ति के नाम पर हमने ही रिश्तों को तोड़ने को बल दिया है। वासना के लिए हम ही रिश्तों की गरिमा को नष्ट करते आये हैं। क्या-क्या नहीं किया हमने समाज में खुद को एक शक्ति बनाने के लिए? खुद को आधुनिक कहलवाने के लिए?
अब फसल लहलहा रही है तो दुख क्यों? खुशी मनाओ हमारे सपूत अब सक्षम सेक्स जीवन जीने लायक हो गये हैं। हमारी बच्चियाँ बहु-सेक्स सम्बन्धों का निर्वाह करने के लिए किसी अन्य पर निर्भर नहीं रह गईं हैं। अब वे स्वतन्त्र हैं और हम सब खुश हैं....चलो अब नये और बहु-संक्स समृद्ध भारत का निर्माण होने लगा है।

5 टिप्‍पणियां:

  1. mandir soona soona hoga bhari rahegi madhushaala
    pita k sang sang bhari sabha me naachegi
    ghar ki bala
    KAHNE WALON NE GALAT NAHIN KAHA THA...............
    aapki post umda hai
    badhaai!

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  2. आपने इस जवलंत विषय का बहुत अच्छा विश्लेषण किया है | हम जो बोयंगे वही तो काटेंगे |

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  3. we dont talk to our children when we should talk to them
    we dont give them proper sex education
    we creat divide between what is right for our daughter and what i sright for our son
    WE DONT ALLOW OUR CHILDREN TO BECOME ADULTS .
    we want to make all descions for our children
    after the boy or girl starts earning and if they want to be independent then let them go and find a place of their own and live the life they want

    over protection after the age of 25 years is also intrusion in
    privacy

    Rachna

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  4. ड़ाक्टर सब अफ़्सोस की बात तो ये है कि फ़ल कड़ुवा निकलने के बाद भी हम भी वही बोये जा रहे हैम्।सही विश्लेषण है आपका।

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