आज लगभग दस दिनों के बाद उपचार के द्वारा ठीक होकर काम करने लायक हो सके हैं। इस अवधि में न तो अपनी मेल देखी जा सकीं और न ही किसी तरह की पोस्ट लिखी गई। शब्दकार का भी संचालन भी नहीं किया जा सका। आखिर समस्या ही काफी बड़ी समझ में आ रही थी। हमारी तो समझ के बाहर थी, विशेषज्ञों की समझ में भी नहीं आ रही थी। कैसे भी करते न करते समस्या कुछ हद तक पकड़ में आई और निदान के बाद दोबारा काम चलाने का प्रयास किया जा रहा है।
समस्या हमें लेकर नहीं, हमारे कम्प्यूटर को लेकर थी। पता नहीं किस बात पर नाराज हो गये कि शुरुआत ही नहीं करना चाहते थे। कम्प्यूटर सुधारने वाले को दिखाया तो वह सीपीयू को अपने साथ क्लीनिक ले गया पर वह भी कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं था। हम भी बड़े चिन्तित थे कि पता नहीं कौन सी बीमारी लग गई?
इधर आश्वासन पर आश्वासन मिलने के बाद कल देर शाम (रात कह दें तो ठीक रहेगा) हमारे कम्प्यूटर ने मुस्कराना शुरू किया।
आज अब अपनी शुरुआत फिर से हो रही है। यह तो तय बात है कि हमारा इन्तजार तो कोई भी नहीं कर रहा होगा फिर भी अपनी खुशफहमी के लिए ही...............आप सबको अपनी बातों से परेशान नहीं कर सके, आप सब हमारे इन्तजार में सूखकर काँटा हो गये, हमारे लिए आपने पलक-पाँवड़े बिछा रखे हैं और देखो हम आ गये। (खुश रहने को गालिब ये ख्याल अच्छा है)
इस अवकाश की अवधि में देश में भी बदलाव आया है सम्भवतः ब्लाग देश में भी बदलाव आया हो? महिला लोकसभा अध्यक्ष देश को मिली, महिलाओं के विकास की बात सोची जा सकती है। लेकिन इसके साथ ही देश के दूसरे नागरिकों पर हमले, मारपीट की घटनायें भी बढ़ीं हैं (आस्टेलिया में) इस पर भी विचार किया जाना चाहिए। क्या मात्र भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए किसी दूसरे देश के लिए काम करना, मार भी खाते रहना जायज है? (इस पर बहुत कुछ है कहने को, कभी बाद में)
आज की शुरुआत के लिए बस इतना ही..............अभी बहुत कुछ शेष पड़ा है असे निपटा लें फिर आते हैं। (वैसे भी कौन सा कोई इन्तजार कर रहा है।)
सुस्वागतम...
जवाब देंहटाएंदेर लगी आने में तुमको, शुक्र है फिर भी आये तो
आस ने दिल का साथ न छोडा वैसे हम घबराए तो
नीरज
swagat hai ji.......................
जवाब देंहटाएंखुश रहो।
जवाब देंहटाएंभगवान आपका भला करें।