24 अप्रैल 2009

नदी की तरह


नदी की तरह
बहते रहे तो
सागर से मिलेंगे,
थम कर रहे तो
जलाशय बनेंगे,
हो सकता है कि
आबो-हवा का
लेकर साथ,
खिले किसी दिन
जलाशय में कमल,
हो जायेगा
जलाशय का रूप
सुहावन, विमल,
पर कब तक?
गर्म तपती धूप जैसे
हालातों से
उड़ जायेगी
कमल की
गुलाबी रंगत,
वीरान हो जायेगा
तब फिर
जलाशय,
मगर.....
नदिया बह रही है,
बहती रहेगी,
हरा-भरा
करती रहेगी
और एकाकार हो जायेगी
सागर के संग।

12 टिप्‍पणियां:

  1. berang to duniya ki har cheez ek din ho jayegee.yeh soch ke kamal bhi khilna chhod de to mushkil hogi.....boht achha likha aapne..

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  2. इस रचना के मूल में आशा का संचार।
    पूरी चाहत हो सके करते सभी विचार।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. मगर.....
    नदिया बह रही है,
    बहती रहेगी,
    हरा-भरा
    करती रहेगी
    और एकाकार हो जायेगी
    सागर के संग।


    -एक सशक्त रचना. बहुत पसंद आई.

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  4. बहुत बढिया रचना .. बहुत अच्‍छी लगी।

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  5. सुंदर भाव...सुंदर रचना...अच्छी लगी।

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  6. बहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।

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  7. नदी की तरह
    बहते रहे तो
    सागर से मिलेंगे,
    थम कर रहे तो
    जलाशय बनेंगे,


    bhut sundar
    aap achchhe geetkar ho skte hain .
    mukt chhnd se bahr aaiye .ly me udan bhriye .

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  8. देश हमे देता है सब कुछ
    हम भी तो कुछ देना सीखे

    फिलहाल लोकसभा चुनाव में अपने वोट का प्रयोग अवश्य करिये
    आंधी आए या तूफ़ान धूप तपे या बारिश हो
    अपना अपनों का वोट पडे लोकतंत्र की रक्छा हो

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  9. 'शब्दकार' के रूप में अच्छा प्रयास शुरू किया है आपने. बधाई.

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  10. awdet waat ka adbhoot udaharan...

    और एकाकार हो जायेगी
    सागर के संग।

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