दिल्ली में एक बच्ची की मौत, स्कूल में मिली सजा से।
यह कोई एक घटना नहीं है, लगभग हर राज्य में हर दूसरे तीसरे माह इस प्रकार के समाचार सुनाई पड़ जाते हैं।
- क्या हम बच्चों को मारपीट से सुशिक्षित कर सकते हैं?
- क्या अध्यापक पिटाई और कठोर सजा के द्वारा बच्चों में शिक्षा के प्रति गम्भीरता पैदा कर सकते हैं?
- क्या बच्चों द्वारा की गई गलतियाँ इतनी गम्भीर होतीं हैं कि उनके साथ एक अपराधी की तरह से व्यवहार किया जाये?
- क्या आजकल के बच्चे इतने उद्दण्ड हो गये हैं कि बिना कठोर सजा के मानते ही नहीं?
- क्या आज के अध्यापकों में ज्ञान का अभाव हो गया है, जिसको वे कड़ी सजा के द्वारा छिपा लेना चाहते हैं?
- और भी बहुत सारे सवाल आपके मन में भी होंगे, सवाल बस सवाल बनकर न रह जायें, कुछ ऐसा प्रयास करें।
- बच्चों के भविष्य के प्रति जरा जागरूक भी बनें, बच्चे की जिन्दगी के लिए भी जागरूक बनें।
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आज चुनावी चकल्लस नहीं-----
इस तरह की सजाएँ तो अब कानून अपराधियों को भी नहीं देता।
जवाब देंहटाएंइतना ज्यादा दंड तो कभी उचित नहीं...प्यार से भी समझाया जा सकता है.
जवाब देंहटाएंSachmuch is vishay par gahan vimarsh ki aawashyakta hai.
जवाब देंहटाएंइस अधय्पिका को भी यही तालिबानी सज़ा दी जानी चाहिए, सार्वजनिक रूप से.
जवाब देंहटाएंऐसे सरकारी स्कूलों में जहां बिन माई-बाप गरीब परिवारों के बच्चे पढ़ने आते हैं, ऐसी कठोर सजायें आम बात हैं क्योंकि मास्टरों को पता है कि कोई उनका कुछ नहीं उखाड़ सकता.
देख लेना...इस मास्टरनी का भी कुछ नहीं बिगडेगा....सज़ा तो छोडो, ये फिर बहाल हो जायेगी...शर्त लगा लो.