07 अप्रैल 2009

सवाल-जवाब करना है तो वोट करें

हम तो इस चुनाव में वोट नहीं डालेंगे। क्या करेंगे वोट डाल कर? किसे दें सब तो एक जैसे हैं? डल गया वोट, कोई एक हमारे वोट से ही तो कोई मंत्री या सरकार तो बननी नहीं है? ये जुमले आजकल चुनावों में आम हों गये हैं। चुनाव की सरगर्मियाँ पूरे जोरों पर हैं और लोगों में मतदान को लेकर अभी से विभिन्न प्रकार के विचार बन-बिगड़ रहे हैं।
यह बात तो सत्य है कि वर्तमान परिदृश्य में राजनीति का माहौल बद से बदतर होता जा रहा है। आम आदमी और भला आदमी तो चुनावों से कोसों दूर होता जा रहा है। इसी राजनैतिक दूरी का परिणाम है कि बुरे लोगों का राजनीति में पदार्पण हो रहा है। यह तो सीधा सा सिद्धान्त है कि किसी भी खाली कुर्सी को कोई न कोई भरेगा, यदि भले लोग नहीं भरेंगे तो उस कुर्सी पर बुरे लोगों का कब्जा हो जायेगा।
एक बात तो सौ फीसदी सत्य है कि संसद हो या विधानसभा (यदि कार्यकाल सही ढंग से चलता रहे तो प्रति पाँच वर्ष में इनकी सभी सीटों को भरा जायेगा) अपनी सीटों को भरने के लिए विवश है। अब भले लोगों का इस ओर रुझाान नहीं है तो ये सदन किससे अपनी सीटों को भरें?
इस बार हर ओर मतदान करने को लेकर जागरूकता कार्यक्रम और अन्य फुटकर साधन अपनाये जा रहे हैं। यह सही भी है कि यदि किसी तरह की अनिवार्यता नहीं सामने आ रही है तो मतदान अवश्य ही करना चाहिए। यह भी सत्य है कि ‘एक नागनाथ, एक साँपनाथ, डसेंगे दोनों ही’ की तर्ज पर आज प्रत्याशी सामने दिखायी देते हैं। इस अनिश्चय वाली भीड़ में शायद एक चेहरा तो ऐसा होता ही होगा जो अपने व्यक्तित्व से प्रभावी रहता होगा? चलिए उसी को दे डालिए वोट।
वोट डालना इस कारण भी आवश्यक है क्योंकि हम बिना वोट किये कैसे अपने प्रतिनिधि या सरकार से सवाल-जवाब कर सकते हैं? जब हमने वोट ही नहीं दिया तो क्यों हम उनकी कार्यप्रणाली पर, उनके कुकृत्यों पर उँगली उठाते हैं। वोट इसलिए भी डालना है क्योंकि हमारे देश में औसत मतदान 46 से 48 प्रतिशत के बीच रह रहा है। अब एक पल को विचार करिए कि यदि मतदान पूरे पचास प्रतिशत हो जाये और पचास प्रतिशत लोग मत न दें तब क्या स्थिति बनेगी?
वोट देने वाले पचास प्रतिशत और उनमें भी माना कि दो ही प्रत्याशियों के बीच मुकाबला हो जाये। पचास प्रतिशत मत में से जीतने वाले को 26 प्रतिशत और हारने वाले को 24 प्रतिशत वोट मिलें। अब कुछ समझ में आया? जो व्यक्ति सत्ता पायेगा यानि की जीतेगा, उसे मिले केवल 26 प्रतिशत वोट और जो लोग मतदान से बाहर रहे वे थे 50 प्रतिशत। इसमें हारे वाले के 24 प्रतिशत भी मिला दें तो आँकड़ा क्या निकलेगा? 26 प्रतिशत वाला व्यक्ति शेष 74 प्रतिशत के ऊपर राज कर रहा है।
यह बात भी सत्य है कि लोकतन्त्र उस एक पल को ही आता है जब हम मतदान करने के लिए बूथ में खड़े होते हैं। मतदान करने के बाद किसकी सरकार बनवानी है, हमारा प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री कौन होगा, गठबंधन में कौन-कौन दल शामिल रहेंगे आदि तथ्य हमारी पहुच से दूर हो जाते हैं। लगातार अधिक से अधिक मतदान कर हम लोकतन्त्र को एक पल से भी अधिक देर के लिए बचा कर रख सकते हैं। गठबंधन की राजनीति, कम से कमतर होता मतदान प्रतिशत, भले लोगों का राजनीति से लगातार दूर होते जाना ही राजनैतिक हास का कारण है। यही कारण है कि इस देश में चालीस सांसदों का नेता प्रधानमंत्री बन जाता है, एक निर्दलीय विधायक मुख्यमंत्री बन जाता है, राज्यसभा सदस्य प्रधानमंत्री बनकर पाँच साल शासन करता है। क्या यह राजनैतिक विद्रूपता नहीं?
इसलिए कम प्रतिशत वाले को राज करने से रोकने के लिए, भले लोगों को पुनः राजनीति में स्थापित करने के लिए, अपना वोट देकर राजनेताओं से सवाल-जवाब करने के लिए मतदान अवश्य करें। अपने आपको प्रोत्साहित करिए तथा अन्य लोगों को भी प्रोत्साहित करिए।


चुनावी चकल्लस-

उनको गुमान है कि वो जीत लेंगे हमें,
हम लें शपथ कि सबक उन्हें सिखा देंगे,
धोखा कब तक खायेंगे हम, सोचो तो,
वोट की एक चोट से ताकत हम दर्शा देंगे।

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