अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग प्रारम्भ होने वाला है। सब कमर कस रहे हैं कि कैसे पब्लिक को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा किया जाये। पब्लिक भी अपने आपको इसके लिए तैयार किये बैठी है कि कब मदारी आयें और कब उनको नचाने का काम शुरू हो।
प्रत्येक पाँच वर्ष में होने वाले इस महोत्सव का आयोजन कुछ ही देर में होने वाला है। सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश में इस प्रकार के आयोजन का अपना ही महत्व है। सारा तन्त्र इसी काम में लग जाता है और कई दिनों तक के लिए सारा काम-काज भी जैसे ठप्प सा हो जाता है। अधिसूचना लगी और सारी सरकारी मशीनरी काम करना (जनता का) बन्द करके चुनाव सम्पन्न करवाने में लग जाती है।
इस भव्य आयोजन में हर कोई अपने-अपने तरीके से दाँव लगाने को प्रयत्नशील रहता है। नेता जनता का वोट किसी भी तरह से खींचने को तैयार रहता है तो जनता अपने क्षेत्र के प्रत्याशी के पक्ष-विपक्ष में आंकड़े फिट करता है। इसी तरह मीडिया भी अपने पोल, सर्वे आदि के माध्यम से किसी भी दल को, किसी भी प्रत्याशी को विजय अथवा पराजय की ओर ले जाते हैं।
आम जनता इस गुमान में कि वह किसी भी प्रत्याशी के, किसी भी दल के भाग्य का निर्माता है प्रसन्न होती रहती है। जनता के पास लोकतन्त्र के नाम पर कुछ पल (शायद एक या दो मिनट) ही आते हैं जब वह वोटिंग मशीन का बटन दबाता है। बटन दबा, मत पड़ा और उसके बाद लोकतन्त्र समाप्त। अब कौन जीतेगा, कौन सरकार बनायेगा, कौन प्रधानमंत्री, मंत्री बनेगा, यह बात जनता तय नहीं कर सकती। (चल रही लोकसभा का प्रधानमंत्री बनने न बनने का नाटक याद है?) कहाँ रह गया लोकतन्त्र?
क्या इसे लोकतन्त्र कहेंगे, जहाँ गुनाहगार राजनेता शान से टहलता है और किसी बेगुनाह हो सजा मिल जाती है। (अभी हाल का ही उदाहरण, प्रतापगढ़ के एक गाँव में जहाँ बिजली नहीं, बिजली के खम्बे तक नहीं उस गाँव के एक सत्तर वर्ष के अंधे बुजुर्ग को पुलिस ने पकड़ कर बन्द कर दिया क्योंकि उसका जुर्म यह था कि वह कटिया डाल कर बिजली चोरी करता था।)
चलिए ................................... एक सूत्रवाक्य-‘किस-किस को गाइये, किस-किस को रोइये, आराम बड़ी चीज है, बिस्तर तानकर सोइये।’ चलिए इन्तजार करिये और मजा लीजिए क्योंकि अब सबकुछ मजा लेने के लिए ही तो होता है।
02 मार्च 2009
लोकतान्त्रिक व्यवस्था का आयोजन
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
किस-किस को गाइये, किस-किस को रोइये, आराम बड़ी चीज है, बिस्तर तानकर सोइये।’
जवाब देंहटाएंहमारे यहाँ कहते हैं:
किस-किस को गाइये, किस-किस को रोइये, आराम बड़ी चीज है, मूँह ढक कर सोइये।’
-असर वही है. :)