हमारे शहर में पिछले तीन दिनों से अकादमिक और सांस्कृतिक माहौल बना हुआ था, जो आज रात समाप्त हुआ। यहाँ स्थानीय महाविद्यालय-दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय-में बी0 एड0 विभाग में एक सेमीनार था और इसी महाविद्यालय में तीन दिनों तक फिल्म महोत्सव का भी आयोजन किया गया था। फिल्म महोत्सव का शुभारम्भ 27 फरवरी को हुआ था और उसी दिन आस्कर पुरस्कारों से लदी-फदी फिल्म स्लम डाग मिलेनियम को दर्शकों की बेहद जबरदस्त मांग पर चलाया गया था। साथ में स्थानीय स्तर पर बनाई गयी लघु फिल्म का भी प्रदर्शन किया गया था। इस लघु फिल्म में उरई शहर के इतिहास और कालपी शहर के एतिहासिक महत्व के अतिरिक्त डा0 हरिमोहन पुरवार द्वारा अपनी मेहनत और लगन से तैयार किया गया ‘बुन्देलखण्ड संग्रहालय’ का सौन्दर्यपरक चित्रण किया गया था। अगले दो दिनों में कुछ पुरानी फिल्मों के साथ-साथ वृत्त चित्र एवं लघु फिल्मों को भी दिखाया गया।
इस मौके पर दर्शकों की प्रतिक्रिया स्लमडाग को लेकर जानने की उत्सुकता अधिक रही। हमें तो फिल्म में कुछ इस तरह का नहीं दिखा कि उसे इतने सारे आस्कर पुरस्कारों से लाद दिया गया (परिणाम तय करने वाले हमसे अधिक जानकार हैं)। कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया अन्य दर्शकों की भी रही। कहानी कुल मिला कर वही पर एक नये कलेवर में लिपटी दिखी। हाँ एक बात ये खास दिखी कि पूरी फिल्म को कौन बनेगा करोडपति के सवालों के साथ में गूँथ कर दिखाया गया। बस इसके अलावा हमें तो कुछ खास नहीं दिखा।
दो भाइयों के बीच एक लड़की की कहानी, एक अच्छे और एक बुरे की कहानी, प्यार की जीत की कहानी, अच्छे की विजय और बुरे की पराजय की कहानी। सब कुछ उसी भारतीय स्टाइल में जिसके लिए भारतीय निर्माता निर्देशकों को, कलाकारों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लताड़ा जाता रहा है। फिल्म का खास हिस्सा (भारतीयों के लिए) ‘जय हो’ गाना पूरी फिल्म समाप्त हो जाने के बाद दिखाया जाता है। फिल्म समाप्त हो जाती है, कास्टिंग चालू है, अब यदि प्यार उमड़ रहा है ‘जय हो’ के लिए तो रुको वरना जाओ अपने-अपने घर। पुरस्कार न मिलता तो शायद कोई भी इस गाने को सुनने के लिए नहीं रुकता, पर अब रुकेंगे। (याद हो आपको भारत सरकार ने राष्ट्रीयता जगाने के लिए फिल्मों के अन्त में राष्ट्रगान दिखाना अनिवार्य कर दिया था, कितने लोग खड़े होकर उसका सम्मान करते थे? जब फिल्म के बाद अपने राष्ट्रगान का सम्मान नहीं हो सका तो साधारण से गीत का क्या करते?)
बहरहाल, हम लोगों द्वारा आयोजित करवाया गया सेमीनार और फिल्म महोत्सव बहुत ही खुशगवार मौसम में समाप्त हुआ और आने वाले दिनों के लिए एक नई चेतना का सूत्रपात कर गया।
01 मार्च 2009
फ़िल्म महोत्सव, स्लम डॉग और हमारी फिल्में
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सबसे पहले इस सफल आयोजन के लिए बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंफिल्म के बारे में आपके विचारों से मैं सहमत हूँ. फिल्म में इस बात के अलावा कुछ भी नया नहीं था की इसे एक विदेशी डायरेक्टर ने बनाया था.
आपके विचारों से मैं सहमत नहीं हूँ । फिल्म में कहानी का अहम योगदान होता है और संगीत भी । रहमान का संगीत पहले भी हिट रहा है ।। रही बात पुरस्कार की तो इसका फैसला सभी की पसंद से ही होता हे । ऐसा नहीं कि इस तरह कि फिल्में नहीं बनी पर क्या उन्हे इतनी कामयाबी मिली । हां आपकी ये बात सही है कि विदेशी लोगों के हाथ लगी मिट्टी भी सोना नजर आती है ।
जवाब देंहटाएंसही में इस फिल्म को इतना महत्त्व विदेशी निर्माताओं और भारत की सलाम छवि के लिए ही दिया गया है...बाकी इससे ज्यादा अछि फिल्म तो और भी बहुत बनी है....आज पुरूस्कार की चकाचोंध में हमे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है....अछे लेख के लिए धन्यवाद....
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