वर्तमान समय में हम स्वतन्त्रता, संविधान के नाम पर अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने लगे हैं। देखा जाये तो समाज समस्याओं से हमेशा से ग्रस्त रहा है और हम किसी न किसी रूप में समस्याओं का समाधान करने के स्थान पर अपनी व्यवस्था को कोसते दिखते हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हमें इस बात का ध्याान रखना होगा कि हम खुद व्यवस्थाओं के सुचारू रूप से चलने में अपना योगदान दे रहे हैं। गणतन्त्र दिवस के इस अवसर पर वजाय इस बात के कि किसने क्या किया किसने क्या नहीं किया हम इस बात पर विचार करें कि हमने क्या किया? यदि देखा जाये तो आजादी की आधी से अधिक सदी बीत जाने के बाद भी हमने अपने देश के वीर शहीदों का सम्मान करना नहीं सीखा है।
हम आज जितने अधिक साक्षर, जितने अधिक शक्तिशाली होते जा रहे हैं उतने ही अधिक हमने वर्ग अपने आसपास बना लिए हैं। इस बात में कोई दोराय नहीं कि आधुनिकता भरे इस युग में व्यक्ति देश प्रेम जैसी बातों को मात्र ढपोलशंखी करार देता है और महापुरुषों को भी जाति, क्षेत्र, धर्म के खाँचे में फिट करने का कुत्सित प्रयास करता रहता है। बाबा अम्बेडकर के नाम पर अब संविधान का ‘पोस्टमार्टम’ किया जा रहा है। यह सत्य है कि संविधान निर्माण में एकमात्र डा0 अम्बेडकर का ही योगदान नहीं था पर जब तक भारत देश में राजनीति में जातिगत विद्वेष का चरम नहीं था तब तक तो अम्बेडकर को संविधान का निर्माता स्वीकार किया जाता था किन्तु जबसे राजनीति ने महापुरुषों को अपने-अपने खाँचे में शामिल करना शुरू कर दिया तबसे उनके नाम को लेकर भी तमाम तरह के वाद-विवाद इस देश में शुरू कर दिए गये हैं। ऐसा एकमात्र अम्बेडकर के साथ नहीं है। कोई गांधी के नाम पर गाली देता दिखता है तो कोई नेहरू को आरोप लगाता दिखता है। किसी के लिए हेडगेवार देश तोडने वाले हैं तो किसी को सरदार पटेल की देश भक्ति पर संदेह दिखता है। कोई अपने मत औ सिद्धान्तों के कारण सरदार भगत सिंह को अपने पाले में शामिल करने की फिराक में दिखता है तो कोई अशफाक को अपने ग्रुप का बताता है।
क्या इस स्थिति में वाकई हम संविधान का सम्मान करने की दशा में दिखते हैं? क्या ये स्थितियाँ हमें गणतन्त्र दिवस मनाने की अनुमति देतीं हैं? क्या इस तरह से हम अपनी आजादी दिलाने वाले शहीदों के प्रति सच्ची श्रृद्धांजलि अर्पित कर पाने के अधिकारी हैं? सवाल बहुत से हैं पर क्या इनके जबाव हमारे पास है? आइये निरुत्तर होकर हम सब वर्ग, जाति, धर्म के तमाम खाँचे खींच कर कम से कम आज तो एकजुट होकर गणतन्त्र दिवस मनायें, कल तो हम फिर उसी वर्ग की वकालत करते दिखेंगे जिसके पक्षधर हम होंगे।
जय गणतन्त्र, जय भारत।
आखिर आप सबको, किसी को न कोसने की नसीहत देकर खुद ही निंदा पुराण बांचने लगे
जवाब देंहटाएंसहमति असहमति ....का गठजोड़
जवाब देंहटाएंअनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
आप सबों को गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसटीक
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस के पुनीत पर्व के अवसर पर आपको हार्दिक शुभकामना और बधाई .
सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!
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60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!
वोटो की राजनीती है जो यह सब करारही है.
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