भावनाओं की जब-जब बात होती है, तब-तब हम भारतीयों को सबसे ऊपर रखा जाता है. हमने अपने देश के लोगों की ही नहीं परदेशियों की भावनाओं का भी हमेशा ख्याल रखा है. यदि हम अपने इतिहास को देखें तो आसानी से पता चलता है कि जितना आदर हमने अपने देश से बाहर के लोगों को दिया है उतना हम अपने देश के लोगों को देते तो शायद हम कभी गुलाम नहीं होते. इतिहास गवाह है कि हमने अपनी दुश्मनी, अपने प्रतिशोध के लिए दुश्मन देशों के शासकों को देश में बुलाया और किसी न किसी रूप में उनके यहाँ शासन करने में सहयोगी बने.
बहुत पुरानी बात को न दोहरा कर यदि अपने आजाद होने के समय को ही ध्यान में रखें तो पता चलता है कि हम आजाद तो हुए परन्तु हमने अपने नेताओं, अपनी प्रतिभा, अपनी मेधा के ऊपर भरोसा करना उचित नहीं समझा. यही कारण रहा होगा कि हमने आजाद होने के बाद भी अपने देश की बागडोर अंग्रेज व्यक्ति के हाथ में ही रखी रहने में भलाई समझी. देश में उस समय एक-दो नहीं बहुत से नेता ऐसे थे जो प्रतिभा, मेधा में किसी से कम नहीं थे पर............. बहरहाल तब की बात को छोड़ कर आज की बात करें तो भी हम परदेश के प्रशंसक हैं।
खान-पान, पहनावा, बोलचाल, भाषा, पढ़ाई, चिकित्सा, तकनीकी......बहुत कुछ है ऐसा जिसमें हम विदेश की तरफ़ मुंह ताकते हैं. अपनी भाषा, अपना रहन-सहन, अपनी संस्कृति होने के बाद भी हम दूसरी तरफ़ ताकते हैं. हमारी अर्थव्यवस्था भी दूसरे देश की अर्थव्यवस्था पर निर्भर करती है. शेयरों का उतार-चदाव, हमारी विदेश नीति, हमारा शासन-प्रशासन आदि भी दूसरे देश की नीतियों पर चलता है. यही कारण है कि हम सब तरह के सबूत होने के बाद भी पाकिस्तान के ख़िलाफ़ किसी तरह की कार्यवाही नहीं कर पा रहे हैं। युद्ध की बात तो बहुत दूर है हम पकिस्तान के मंत्रियों के बयानों का भी सही तरीके से जवाब नहीं दे पा रहे हैं. (शायद भावनाओं के कारण.............)
आतंकवादी पकड़े जाते हैं और जेल में किसी दामाद की तरह खातिरदारी करवाते हैं, बाद में जब किसी को छूटना होता है तो किसी को बंधक बना लिया जाता है, किसी को मारने की धमकी दे दी जाती है....... अब भावनाओं के कारण हम लोग बड़े ही प्रेम से उन सब ताकतों को भी गले लगाते हैं जो हमें कष्ट देतीं हैं. हमारा तो धर्म है सबको प्रेम-स्नेह देना. इसी धर्म और भावना के तहत हम भले ही अपने देशवासियों की भावनाओं का गला घोंट दें पर परदेशियों की भावनाओं का सम्मान करना परम कर्तव्य है................... जयहिंद......
हम भले ही अपने देशवासियों की भावनाओं का गला घोंट दें पर परदेशियों की भावनाओं का सम्मान करना परम कर्तव्य है.....
जवाब देंहटाएंआपके विचारो से शतप्रतिशत सहमत हूँ . हम भारतीय लोगो का यह दुर्भाग्य है कि हम सभी भावनाओ में जल्दी बह जाते है . धन्यवाद.
jai hind
जवाब देंहटाएंtakur saheb
regards
बिल्कुल सही कहा...अति अफसोसजनक!!!
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