कल एक कार्यक्रम में जाने के लिए निकले. कानपूर से आगे की यात्रा शुरू करनी थी, जाना बिजनौर तक था. एक वर्कशॉप का आयोजन था. पूरी तैयारी, ट्रेन में रिजर्वेशन के सहारे यात्रा करने का पूरा मजा उठाने की तैयारी भी थी. विगत कुछ दिनों से यहाँ उत्तर-भारत में कडाके की ठण्ड भी पड़ रही है तो घर में और हमारे दोस्तों का कहना था कि कहाँ ठण्ड में परेशान होते घूमोगे? फिलहाल जाना था तो जाना था, पहुंचे कानपुर. ट्रेन रात को 09:25 पर रवाना होनी थी. चूँकि ट्रेन में रिजर्वेशन वेटिंग में था और बराबर मालूमात करते-करते पता चला कि एक सीट कन्फर्म हो गई है और दो सीट में RAC मिल गया है.
ऐसा पता चलने पर बड़ी राहत की साँस ली. मन में खुशी हुई कि अब ठण्ड में परेशान नहीं होना पड़ेगा पर शायद हमारा जाना सम्भव नहीं था. कानपुर-दिल्ली ट्रेक पर कानपुर के पास ही दो मालगाडियों की टक्कर हो जाने के कारण पूरा ट्रेक ध्वस्त हो गया था. बहुत सी ट्रेनों को रद्द कर दिया गया था, बहुतों का रास्ता बदल दिया गया था. हमारी ट्रेन को इलाहबाद से ही आना था, पता चला कि उसको वहीँ रोक दिया गया है. अब परेशान कि क्या किया जाए? जाना भी जरूरी था और ट्रेन का कोई भी भरोसा नहीं. इधर-उधर फोन करने पर पता चला कि अभी पूरी रात ट्रेक शुरू नहीं किया जायेगा और इलाहबाद से आने वाली ट्रेन को भी रद्द कर दिया गया है। बिजनौर जाने की और बड़ी ही जद्दोजहद के बाद कन्फर्म हुई सीट का मजा भी जाता रहा.
चूँकि जाना चाह रहे थे इस कारण ट्रेन के बारे में लखनऊ से भी पता किया पर वही हालत. दुर्घटना के कारण सभी ट्रेन्स के या तो रास्ते बदले थे या फ़िर उनको रद्द किया गया था या फ़िर बहुत लेट चल रहीं थीं. ऊपर से मौसम की हालत ये कि कोहरे के कारण दस-बीस मीटर का देख पाना मुश्किल लग रहा था. यात्रा की सम्भावना शून्य दिख रही थी इधर हम सब मना रहे थे कि चलो टक्कर मालगाडियों में ही हुई है, यदि यात्री गाड़ी होतीं तो कितना बड़ा हादसा होता पता नहीं? कल पूरी रात वहीँ कानपुर में अपने एक अंकल के घर रुके।
आज सुबह इस कार्यक्रम के साथ कि यदि कानपुर-दिल्ली ट्रेक चालू हो या फ़िर लखनऊ से कोई गाड़ी मिले तो जाया जाए, कई मित्रों को फोन किया। हालत ज्यों के त्यों रहे. अखबार देखा तो दुर्घटना की भयावहता के बारे में मालूम हुआ. एक ट्रेन ने खड़ी ट्रेन में पीछे से टक्कर मार दी. ये सब कोहरे के कारण हुआ. ट्रेन का ड्राइवर बेहोश होकर पूरे तीन घंटे तक इंजन में फंसा रहा. बताया गया कि एक लोहे का सरिया इंजन में घुस कर उससे बस 6 इंच दूरी पर रुक गया. ये सोचकर कि यदि यात्री गाड़ियों में टक्कर हुई होती तो नए साल में क्या तोहफा मिलता कुछ परिवारों को। (भले ही लोग फ़िर भी जश्न मनाते रहते) हादसा टल गया, ड्राइवर भी सुरक्षित रहा. हम लोगों को दोपहर 12 बजे तक किसी तरह से जाने लायक साधन नहीं मिल सका तो अपने आयोजक मित्र से माफ़ी मांग कर बापस उरई चल दिए.
पूरे उत्साह के साथ जाने और बड़ी ही मायूसी से आने की घटना ने इतना थका दिया जितना शायद बिजनौर जाने के बाद लौटने पर भी नहीं थकते. थोड़ा आराम करने के बाद सोचते रहे कि हमारे 21 वीं सदी में पहुंच जाने का कोई भी सबूत अभी नहीं मिलता. यात्रा अभी भी सुरक्षित नहीं है, लोग अभी भी सुरक्षित नहीं हैं, भूखे को रोटी अभी भी नहीं है, रहने को मकान अभी भी नहीं है, घोटाले अभी भी बंद नहीं हैं.................. क्या क्या है जो अभी भी सुखद नहीं है. हाँ 21 वीं सदी में जाने का सबूत है............... मोबाइल हर हाथ में है, कपडों की कमी बदन से है, विवाह-पूर्व और अनैतिक सम्बन्ध बन रहे हैं, कन्या भ्रूण ह्त्या हो रही है, महिलाओं को बेइज्जत किया जा रहा है............और भी बहुत कुछ है जो आधुनिकता के नाम पर हो रहा है।
चलिए दुर्घटना के कारण लौटना हुआ और आपको हमारी समस्या से भी जूझना पडा। समय लेने के लिए क्षमा। (यदि वर्कशॉप में जाते तो वहाँ के हालत सुनाते..............परेशान तो आपको होना ही था।)
डॉक्टर साहब
जवाब देंहटाएंनववर्ष की मंगलकामनाऐं.
बस एक जिज्ञासा है कि यदि ट्रेन ट्रेक में दिक्कत आ गई तो क्या बिजनौर जाने का कानपुर से और कोई माध्यम नहीं है-मसलन बस इत्यादि??