अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव के बीच हिन्दी अपनी उपस्थिति बराबर बनाये हुए है. ये उपस्थिति उसके चाहने वालों के कारण बनी हुई है. हम अपने आसपास निगाह डालते हैं तो पता चलता है कि हम लोग आपस में बातचीत करते समय हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी के शब्दों का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं. इन सबके बाद भी अंग्रेजी से होड़ लेने की पुरजोर कोशिश हिन्दी करती दिख रही है. खुशी और उम्मीद उस समय मिलती है जब कहीं ब्लॉग से सम्बंधित ख़बर सुनने को मिलती है. संतोष इस बात का है कि ब्लॉग की इन ख़बरों में हिन्दी ब्लोगिंग की चर्चा अधिक होती है. ये सब वाकई खुशी देने वाली स्थिति होती है। हिन्दी के लिए जिस रूप में जहाँ भी किया जाए कम है बस करते रहा जाए यही बहुत है.
इस संतोष की स्थिति के मध्य कुछ खबरें मन को सशंकित भी करतीं नजर आतीं हैं. अभी एक लेख हिन्दी ब्लोगिंग के उत्थान के बारे में पढ़ रहे थे उसी के साथ दूसरी तरफ़ स्थानीय ख़बर ये थी कि एक पब्लिक स्कूल में एक बच्चे को सिर्फ़ इसलिए मारा गया क्योंकि वह अपने एक साथी के साथ हिन्दी में बात कर रहा था. ये घटना और इसी तरह की दूसरी घटनाएं बतातीं हैं कि इस देश में हिन्दी को लेकर कितने भी प्रयास किए जाएँ पर उसके साथ सौतेला व्यवहार अवश्य होता है।
हो सकता है कि आज के इस व्यावसायिकता भरे दौर में हिन्दी की महत्ता को कम करके आँका जा रहा हो, बहु-राष्ट्रीय कंपनियों के विभीशक दौर में अंग्रेजी को ही महत्ता दी जा रही हो पर हमें ये बात याद रखनी होगी कि अंग्रेजी के मोह में हम हिन्दी को न भुला बैठें. स्कूलों में हिन्दी कितनी बोली जाए कितनी नहीं ये दण्डित करने की स्थिति में नहीं होना चाहिए. बहरहाल ब्लोगिंग के द्वारा हिन्दी का भविष्य उज्जवल दिख रहा है पर दो-चार घटनाओं के कारण जो कालिख लगाई जा रही है उसको तो किसी न किसी रूप में रोकना होगा.
हिन्दी तो अपनी मात्री भाषा है ये कैसे जायेगी ....
जवाब देंहटाएंएक शे'र अर्ज करता हूँ जनाब कैफी आजमी साहब का है..
के चाहे जीतनी भी तराश दूँ अपनी उन्गलिओं को ये आदतन आपका नाम लिखना नही छोडेंगी...
तो साहब कहने का मतलब ये है के जो रगों में जहन में है वो तो जाने से रही.........
अर्श
हिन्दी के साथ ही साथ यदि लोग दो चार भाषा और बोल लें , तो क्या गडबड है....गडबड तो तब होती है , जब हिन्दी को छोडकर लोग दूसरी भाषाओं को बोलना आरंभ कर देते हैं।
जवाब देंहटाएं