आज कल बहुत कुछ बहस श्लीलता और अश्लीलता को लेकर छिड़ जाती है. इस बारे में सभी के अपने-अपने मत हैं. सभी की अपनी-अपनी सोच है. इस विषय पर आजकल बड़ी ही बेबाकी से लोगों को बोलते सुना है. यदि अब देखा जाए तो बात करने में, हाव-भाव दिखने में, पहनावे में (ये लड़कियों के लिए नहीं है क्योंकि हमें नारी-विरोधी बात नहीं करनी-कहनी है) प्रदर्शन में अब शालीनता जैसी स्थिति कम ही दिखती है.
अब टीवी पर दिखाए जाते हास्य-व्यंग्य के कार्यक्रम देखिये. उनके चुटकुले, हाव-भाव आदि अत्यन्त ही अश्लील होते हैं. यहाँ कुछ चुटकुलों को तो बताया भी नहीं जा सकता. माँ-पिता के रिश्ते, पति-पत्नी के संबंधों को लेकर, लड़कियों को लेकर गिरी हद तक टिप्पणी चुटकुलों के रूप में की जाती है. क्या यही हास्य है? इस तरह के कार्यक्रम एक साथ बैठ कर देखने में भी शर्म आती है. पर क्या करें.........हास्य है......कभी-कभी अश्लीलता को मासूमियत का जामा पहनाया जाता है। ऐसा हमने सुना है कि "सरस्वती चन्द्र" फ़िल्म का गाना "चंदन सा बदन, चंचल चितवन, धीरे से तेरा ये मुस्काना............" अपने समय में अश्लील-प्रस्तुति के लिए जाना गया था और अब यही गाना मधुर तरानों में शामिल है.
इसी तरह आज जो अश्लीलता है कल को वो श्लीलता हो जायेगी पर आज की अश्लीलता को तो घर में आने से रोकना होगा. आज की मासूमियत भारी अश्लीलता को आप लोग यहाँ आकर देख सकते हैं. एक चुटकुला है उसे किसी कारणवश खुले रूप में यहाँ नहीं दिखा रहे हैं. जो पढ़ना चाहे वो यहाँ क्लिक कर उसको पढ़ सकता है. कुछ ऎसी ही है आजकी शालीन अश्लीलता......
आजकल थोड़ा व्यस्त हैं......कुछ देर से मिलना हुआ करेगा........पर मिलते रहेंगे..........तब तक आप लोग अश्लीलता-श्लीलता की बारीक सीमा-रेखा को समझने-देखने-विचारने का प्रयास करियेगा.
बिल्कुल सही कहा आपने. लेकिन श्लीलता और अश्लीलता के मायने हमारे और आपके लिए अलग अलग हो सकते हैं. लेकिन सीमारेखा खींचने के लिए आत्ममंथन जरुरी है.
जवाब देंहटाएंsach likha aapney
जवाब देंहटाएंलाफ्टर प्रोग्राम में जो दिखाया जा रहा है या बिग बास आदि में..उसका इस बारिक सीमा के इर्द गिर्द विचलन नहीं है..वो आज के माप दंडों पर भी छूट छूट अश्लील ही कहलायेगा..
जवाब देंहटाएंशायद भविष्य में स्वीकार्य हो...यह बदलाव तो होता ही है समय के साथ साथ..किन्तु अभी तो परिवार के साथ बैठ यह सब नहीं ही देखा जा सकता.
चंदन सा बदन-गीत, उस वक्त अश्लील गीतों की श्रेणी में था, यह एक नई जानकारी मिली..आभार.
हम जिस जमाने में रह रहे हैं माध्यमों ने श्लीलता की सभी सीमा रेखाओं को छिन्न भिन्न कर दिया है। अब बचाने को बचा क्या है?
जवाब देंहटाएंअब टीवी पर दिखाए जाते हास्य-व्यंग्य के कार्यक्रम देखिये. उनके चुटकुले, हाव-भाव आदि अत्यन्त ही अश्लील होते हैं.
जवाब देंहटाएंmae indian airlines/air india sae dilli sae japan gayee aur aayee aur bahut afsos hua ki inflight tv program mae yahii prog hindi mae dikhyae jaatey haen
kehaa virodh darj karaaye samjh nahin aata
mujeh lagtaa haen ki aatam sayam hee nahin haen ab
मुझे लगता है कि यह व्यक्तिगत "संस्कारों" और पसन्द का मामला भी है, जब कोई महिला लो वेस्ट जींस और शॉर्ट टी-शर्ट पहनकर नाभि दिखाती हुई अपने पति के साथ भी आती है तब भी मैं अश्लीलता के बारे में सोचकर बेचैन हो जाता हूं, लेकिन जब उसका पति सहमत है तो मैं कौन होता हूँ आपत्ति करने वाला। इसी प्रकार रेडियो/टीवी पर आ रहे कण्डोम के विज्ञापन पर मैं बेचैन हो जाता हूँ खासकर यदि कोई महिला सामने हो, हो सकता है कि मैं "पुरातनपंथी" माना जाऊँ, लेकिन जैसा कि मैंने कहा कि यह व्यक्तिगत मामला है, जो मुझे अश्लील लगे वह जरूरी नहीं कि दूसरे को लगे… सो जो चल रहा है चलने दो…
जवाब देंहटाएंbikul sahi saheb
जवाब देंहटाएंregards
सुरेश की बात से सहमत हूँ.....अब आप देखिये आपका ब्लॉग खोलते ही एक गाना सुनाई दिया "मुझे तेरे जैसा यार कहाँ "शायद सबको उचित न लगे ....हाँ ये जरूर है की जिन टी वि कर्यकर्मो का आपने उल्लेख किया वे जरूर कही न कही सीमा रेखा तय कने के हकदार है
जवाब देंहटाएंयह सच है कि श्लीलता और अश्लीलता सभी के लिए अलग अलग है। इस लिए इसमें सीमारेखा खीचना बहुत मुश्किल है। बस सीमारेखा घर के भीतर तक ही खीची जा सकती है।
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