01 अक्तूबर 2008

देवी की भक्ति, मन की शक्ति

मन्दिर में भगदड़ मची और कई सारे लोग घायल हो गए कुछ तो इस दुनिया से ही विदा हो गए. अपने पीछे अपने परिवार, मित्रों को रोता-बिलखता छोड़ कर चले गए. दुःख इसका भी है कि इस घटना में मारे और घायलों में बच्चे भी हैं. क्या मंदिरों, देवी-देवताओं में अब शक्ति नहीं रही कि वे अपने भक्तों को बचा सकें या फ़िर भक्तों में पहले जैसी भक्ति नहीं रही कि भगवान् स्वयं आकर उनके कष्ट हर सके? फिलहाल ये प्रश्न तो बड़े ही ज्ञानी महात्मा ही हल कर सकते हैं, हम ठहरे अदना से आम आदमी. अब आम आदमी किसी भी घटना के दुःख से थोड़ी देर ही दुखी होता है और किसी घटना के सुख से थोड़ी ही देर सुखी होता है. कुछ ऐसा ही सबके साथ होता है, हमारे साथ भी हुआ. तो इस बात का जवाब खोजे बिना कि क्या किसके कारण हो रहा है अपने आम अंदाज़ में जो भक्ति देख रहे हैं उसी को बताते हैं.
शारदीय नवरात्रि का पर्व शुरू हो गया है. जगह-जगह देवी दुर्गा की झांकियां लगीं हैं (यहाँ माँ नहीं कहा है क्योंकि अब दुर्गाजी में माँ का रूप न देख कर लोग देवी का रूप देख रहे हैं). झांकियां बड़े ही सुंदर ढंग से सजाईं जा रहीं हैं. यदि गौर किया हो तो विगत चार-पाँच वर्षों से इस तरह के आयोजनों की बाढ़ सी आ गई है. किसी भी शहर के गली मुहल्ले में, चौराहों, नुक्कडों पर झांकियां लगीं दिखाई देंगी. इसमें सबसे ख़ास बात यदि आपने देखी हो तो वो है युवा वर्ग के लोगों का ज्यादा से ज्यादा भाग लेना. कभी-कभी बड़ा आश्चर्य लगता है ये देख कर कि जिस उमर में लड़कों को अपने भविष्य की चिंता होनी चाहिए, अधिक से अधिक समय अपनी पढाई में देना चाहिए वो समय वे झांकियों में भजन गाते दिखते हैं, देवी का श्रृंगार करते दिखते हैं. क्या हो गया है इन युवाओं को? क्या वाकई ये भक्ति है या फ़िर अपनी असफलता से भागने का एक धार्मिक रास्ता?
ये सवाल किसी ज्ञानी-महात्मा के स्तर के नहीं वरन किसी भी आम भारतीय के स्तर के हैं. इसी वजह से हमें भी इनके जवाब आसानी से मिल गए. आज का युवा इन दस दिनों में किसी न किसी रूप में देवियों के रूप से जुडा रहना चाहता है. इस कारण कोई पूजा के लिए, कोई आराधना के लिए आता है. कोई आरती के होने पर वहां होता है तो कोई अर्चना के समय आता है. किसी को श्रद्धा, किसी को आस्था यहाँ लाती है. सबके अपने-अपने तरीके हैं, सबकी अपनी-अपनी भक्ति है, सबकी अपनी-अपनी देवी है। अब इस तरह की भक्ति, इस तरह के भक्त के लिए देवी या देवता क्यों आने लगे?
(जो अपनी भक्ति, अपनी पूजा-आराधना में लगे हैं लगे रहें, किसी को व्यवधान पहुँचाने का हमारा इरादा नहीं है. जय माँ दुर्गा या जय देवी?)

1 टिप्पणी:

  1. इस तरह श्रद्धा और भक्ति के स्थान पर दिखावा ? चिन्ता और खोज का विषय है।

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