05 सितंबर 2008

शिक्षा, शिक्षक दिवस

इस देश की कितनी बड़ी विडम्बना है कि हम अपनी संस्कृति को भुला कर पश्चिमी संस्कृति का अनुसरण करते जा रहे हैं. विभिन्न भारतीय पर्वों, त्योहारों को मनाने के स्थान पर "डे" मनाने लगे हैं. अपनी परम्परा को त्याग कर पाश्चात्य परम्परा का अनुकरण करने लगे हैं. किस बात को कहा जाए किसे नहीं ये बात भी अब समझ से परे हो गई है. हम ख़ुद तय नहीं कर पा रहे हैं कि हमें चाहिए क्या है? हर बात में सबके अपने-अपने तर्क, अपने-अपने मशविरे हैं.
आज का दिन है जिसे हम लोग शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं। ये आयोजन इसलिए नहीं कि हम अपनी संस्कृति को भूल कर पाश्चात्य संस्कृति की तरफ़ जा रहे हैं, ये आयोजन तो याद दिलाता है उस महान व्यक्तित्व की जिसने अपने अभावों को दरकिनार कर शिक्षा के चरम को छुआ. अनेक तर्कों से अपने ज्ञान से भारतीय दर्शन की एक नई इबारत लिखी. भरतीय दर्शन को एक पहचान दी, देश की शिक्षा व्यवस्था को सुधरने के उपाय दिए.
कभी-कभी शर्म तो इस बात पर आती है कि ये वो देश है जहाँ अच्छी बातों का समर्थन करने वाले कम, बाल की खाल निकलने वाले बहुत मिल जायेंगे। ब्लॉग के मारों का क्या कहना, वे तो बाल की खाल निकालते हैं उस खाल में फ़िर एक बाल पैदा करते हैं और फ़िर उसमें से खाल निकालते हैं. जहाँ हम शिक्षक दिवस को टीचर्स डे कहने लगे हों, सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को पाश्चात्य सभ्यता से रंगा मानने लगे हों वहां सेक्स एजुकेशन को लेकर क्या समझाया जाए?
टीचर बहुत हैं जो सेक्स की सिक्षा दे रहे हैं पर उचित दंग से नहीं, प्रोग्शालायें बहुत हैं पर फैला रहीं हैं एड्स और तमाम यौन संक्रामक बीमारियाँ. बहरहाल भटकाईए अपने बच्चों को चोरी-छिपे रहस्यों को समझने की दुनिया में और बना दीजिये यौन रोगी. पुराने लोग अपनी बात न करें जो सालों बिता देते थे खिड़की और छत पर ताका-झांकी करने में, ये नै जेनरेशन है जो कच्ची उमर में पके फल खा रही है. क्या सर्वे रिपोर्ट्स नहीं पढ़ते? चलिए कौन किसे समझाए....जब टीचर उपलब्ध हैं......प्रयोगशालाएं उपलब्ध हैं तो कमी कहाँ है? जानकारी की बुराई करने वाले ही परदे के पीछे बैठ कर रंगीन किताबों के रंगीन चित्रों में अपनी तृप्ति करते हैं, इन्टरनेट कैफे की आड़ वाली सीट पर बैठ कर रंगीन फिल्मों का मजा लेते हैं, इन्टरनेट पर गिने चुने शब्दों के सहारे, गिने चुने ब्लॉग के सहारे अपनी तृप्ति का साधन खोजते हैं और कहते हैं कि क्या जरूरत है सेक्स एजुकेशन की? वाह री सिक्षा व्यवस्था.....वाह रे उसके ऐसे हर जगह उपलब्ध शिक्षक.

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