मुझे ब्लॉग बनाये चार माह होने को आ रहे हैं. जानकारी के अभाव में या कहिये कि ब्लॉग की सुनिया में नया होने के कारण कुछ बातो को जान नहीं सका और कुछ कुछ अजीब सी स्थिति से गुजरना पडा. हालाँकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिसे ग़लत या अपने लिए बुरा कहा जाए पर कुछ ऐसा जरूर रहा जिससे लगा कि जितना मतभेद हमारे समाज में है जहाँ हम एक-दूसरे से मलते-जुलते हैं, सीधे-सीधे आमना सामना करते हैं ठीक उतना ही मतभेद ब्लॉग की दुनिया में है. देखा जाए तो ब्लॉग की दुनिया में ये कुछ ज्यादा ही है. पिछले दिनों मुझे कुछ ई-मेल मिली कि वे लोग मेरे ब्लॉग से जुड़ना चाहते हैं. इस कारण एक अलग ब्लॉग बनाया और सोचा चलो इसी बहाने मिलना-जुलना होता रहेगा पर वही ढाक के तीन पात, आमंत्रण भेजा पर आज तक उनके जवाब का इंतजार है.
इसी तरह ब्लॉग की दुनिया में टहलते हुए कुछ पसंद के ब्लोग्स को अपनी लिंक-लिस्ट में शामिल कर लिया, कुछ ब्लॉग को अपने साथ जोड़ा, कुछ के साथ ख़ुद जुड़ गया. जुड़ने-जोड़ने के क्रम में एक ब्लॉग से जुड़ने की अभिलाषा जताई. ब्लॉग से आमंत्रण भी आया फ़िर अगले ही पल उसकी अस्वीकृति भी आ गई कि आप फलां-फलां ब्लॉग से जुड़े हैं इस कारण हम आपको सदस्यता नहीं दे सकते. और इस तरह एक ब्लॉग से जुड़ने के बाद भी जुड़ना नहीं हो सका. यहाँ बात ये नहीं कि किस्से जुड़े किस्से नहीं पर सवाल ये है कि क्या ब्लॉग से जुड़ने से भी आपकी अपनी व्यक्तिगत छवि प्रभावित होती है?
हालाँकि मेरे लिए ये कुछ अजीब नहीं था पर इसके बाद ब्लॉग दुनिया में विचरण ही करता रहा। लगभग हजार की संख्या में ब्लॉग देख मारे और अपना ख़ुद का निष्कर्ष निकला कि ब्लॉग के भीतर भी अपनी छोटी सी दुनिया है. जैसे समाज में जातिगत, दलगत, क्षेत्रगत सोच है वैसे ही यहाँ भी हैं. कुछ खास ब्लॉग के अपने ही सदस्य हैं उसके सदस्य किसी दूसरे खास ब्लॉग के सदस्य नहीं हैं. इसके बाद मैंने कुछ परिक्षण भी किए, कुछ दूसरे ख़ास ब्लोग्स को भी अपना अनुरोध भेजा. परीक्षण सफल रहा, न तो उनका जवाब आया न ही आमंत्रण.
ये तो वही बात हो गई कि आप किस दल के हैं, कांग्रेस के, बीजेपी के सपा के, बसपा के या किसी दूसरी पार्टी के. यदि किसी एक पार्टी में हैं तो दूसरे के सदस्य नहीं बन सकते...........वह ब्लॉग पर भी राजनीती के अवसर हैं. अब कोई ब्लॉग आयोग बन जाए और चुनाव भी शुरू करे जायें. ये भी लोकतंत्र की पहचान है।
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अभी तक ओलम्पिक चलने के कारण ओलम्पिक यात्रा को स्थगित कर दिया था. अब फ़िर से ओलम्पिक यात्रा दस्तावेज़ पर शुरू होगी. आइये उसका भी मजा लीजियेगा.
आपके साथ जो हुआ वह बहुत गलत है...
जवाब देंहटाएंकम से कम ब्लॉग में लोकतंत्र का ये फार्मूला मुझे नहीं जँचता, जहॉ दलबंदी और जातिगत राजनीति होती है। यह तो एक ऐसा कॉफी हाउस की तरह होना चाहिए जहॉ सब तरह के लोग आ सके और प्याला टकराऍं, सर नहीं।
जवाब देंहटाएंkhud likhiye bandhu ..chal padenge to sab ki taraf se aamantran aa jayega..bhul jaiye aise logon ko.
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