पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के आज इस्तीफा देते ही पाकिस्तान में प्रतिक्रियाओं का आना स्वाभाविक था किंतु भारत देश में उससे ज्यादा मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रहीं हैं. मीडिया में तमाम स्वयम्भू जानकार जो ख़ुद को मीडिया के द्वारा भारत-पाक संबंधों का जानकार घोषित करवा रहे हैं, मुशर्रफ़ के इस्तीफे पर अपनी राय प्रकट कर रहे हैं. मीडिया में लोगों की चिंता अब पाकिस्तान में स्थिर सरकार, स्थिर लोकतंत्र की स्थापना को लेकर दिख रही थी. कितनी हास्यास्पद स्थिति है की जिस देश में अपना लोकतंत्र, अपनी सरकारें स्थिर नहीं दिख रहीं हैं, जहाँ के हालात ख़ुद बेकाबू हैं (जी हाँ मैं अपने भारत देश की ही चर्चा कर रहा हूँ) वो अपने पड़ोसी के लोकतंत्र के लिए चिंता कर रहा है.
ये बात एकदम सही है कि कोई भी स्थिति हो देश हो, समाज हो, मोहल्ला हो, सफर हो, मनोरंजन हो सभी में पड़ोसी का विशेष महत्त्व है। यहाँ देश के पड़ोसी की अपनी महत्ता है क्योंकि उसको किसी भी स्थिति में बदला नहीं जा सकता है किंतु इसका तात्पर्य यह भी नहीं कि अपनी स्थिति की चिंता किए बगैर अपने पड़ोसी की चिंता में लग जाया जाए.
बहरहाल अपने देश के हालातों पर एक नज़र भर क्योंकि वास्तविकता से आप सब भी परिचित हैं।
1- केन्द्र सरकार मंहगाई को रोक नहीं पा रही है।
2- जम्मू में स्थिति अभी भी शांत नहीं हैं। वैसे शांत रहे ही कब?
3- झारखण्ड का राजनैतिक संकट बरकरार है। मुम्बई में उत्तर वालों पर अभी भी हमले हो रहे हैं.
4- बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली आदि अनेक राज्यों में आपराधिक घटनाएँ लगातार घटने के स्थान पर बढ़ ही रहीं हैं।
5- बमों के धमाके हमेशा होते रहने की नियति बन चुकी है। आदि-आदि-आदि-आदि....................
ये उदहारण कुछ एक हैं। इन्हें निपटाने का कोई हल नहीं निकाला जा रहा है और चिंता की जा रही है पाकिस्तान की. ठीक है पड़ोसी की भी चिंता की जाए पर क्या उस पड़ोसी की जिसने हमेशा सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत को खून के आंसू दिए हैं? हो सकता है जो आजादी के पूर्व पाकिस्तान में रह रहे थे और हालातों के चलते यहाँ आ गए उनका पाकिस्तान से मोह तो समझा जा सकता है पर क्या हालत कुछ सीखने को नहीं कहती? फ़िर भी आए दिन पाकिस्तान-पाकिस्तान की रट लगाई जाती रहती है. अब हालातों को समझ कर वोट बैंक का मोह छोड़ कर वास्तविकता को समझना होगा. पाकिस्तान में शासक कोई भी आए उसकी सत्ता तब तक फलीभूत है जब तक वह भारत विरोध करता है. इसके ठीक उलट यहाँ उसी को वोट मिलने की अधिक उम्मीद रहती है जो पाकिस्तान प्रेम की बात करता है. वाह रे देश, वाह रे सरकारें, वाह रे जानकार, वाह रे नेताओं, वाह रे वोट बैंक लोलुप, वाह से शान्ति समर्थक........... वाह-वाह....... एक तरफ़ विरोध, एक तरफ़ प्रेम.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें