वर्तमान में समाज में कन्या भ्रूण हत्या जैसा जघन्य अपराध लगातार हो रहा है. सरकार, समाजसेवी संस्थाएं आदि अपने-अपने स्तर पर इस बुराई को दूर करने का प्रयास कर रहे है. इसके बाद भी भ्रूण लिंग की जाँच हो रही है, लड़की के होने पर उसकी गर्भ में ह्त्या हो रही है। बचाव के इन प्रयासों के बीच कुछ नारियों ने एक नया सवाल खड़ा कर पूरे मुद्दे को अलग दिशा में ले जाने का काम किया.
इन महिलाओं का सवाल है की वे लड़की नहीं चाहतीं क्योंकि उनके परिवार में पहले से दो या तीन लड़कियां हैं। ऐसे में या तो सरकार उनको लिंग परीक्षण एवं चयन की आजादी दे. यदि सरकार चाहती है कि भ्रूण में कन्या की हत्या न हो तो वो उस लड़की के पैदा होने के बाद उस बच्ची की देखभाल की जिम्मेवारी ले.
इन महिलाओं का तर्क है कि कितने और किन बच्चों को जन्मना है इस बात की आज़ादी महिलाओं को होनी चाहिए। आख़िर वे ही गर्भ में बच्चे को पालती हैं.
बहस का मुद्दा ये है कि क्या वास्तव में उन परिवारों को लिंग जाँच या लिंग चयन की आज़ादी होनी चाहिए जिनके पहिले से एक से अधिक लड़कियां हैं?
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क्या महिलाओं को गर्भ धारण करने की शक्ति के कारण इस बात की आज़ादी होनी चाहिए कि वे किसे जन्म देना चाहती हैं?
ये सवाल कपोल-कल्पित नहीं, फील्ड में काम करने के बाद मिले हैं। ऐसे एक नहीं अनेक सवाल हैं बस बहस इस बात पर है कि क्या पारिवारिक स्थिति हमें भ्रूण लिंग जांच, लिंग चयन या भ्रूण हत्या (गर्भपात) की आज़ादी देती है या इस बात पर आज़ादी मिलनी चाहिए?
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आइये बनिए समाज का अहम् हिस्सा, साथ में इस बहस का हिस्सा. भेजिए अपने विचार dr.kumarendra@gmail.com
ये तो बहस की शरुआत है.............कहाँ तक जायेगी पता नहीं.
मेरा विचार है कि यह सवाल बहुत ही गंभीर है। मुझे लगता है कि पुरुष होने के नाते मैं इस सवाल का सही जवाब देने की स्थिति में नहीं हूं। जवाब के बजाय एक सलाह ही दे सकता हूं - क्यूं न इस सवाल का जवाब मांगा जाये महिलाओं से? भतेरे चिट्ठे हैं महिलाओं के, ये सवाल वहां भी उछाला जाये, फिर जवाब अपने आप ही आयेंगे।
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