बहुत सोच-विचार के बाद आज इस विषय पर लिखने जा रहा हूँ। पेट्रो एक ऐसा शब्द हो गया है जिसके नाम सा आज सरकार भी घबडा रही है ऐसे विषय पर लिखना पेट्रो पदार्थों की तरह ही ज्वलनशील है। मंहगाई, सब्सिडी के नाम पर, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार का दवाब दिखा कर सरकार ने पेट्रो पदार्थों के दाम बेतहाशा बढ़ा दिए। मूल्यों में वृद्धि कितनी सही है कितनी ग़लत ये तो सरकार ही अच्छी तरह से बता सकती है पर समाचारों के माध्यम से, मीडिया के द्वारा जो खबरें छन-छन कर सामने आ रहीं हैं उनसे तो लगता है की मूल्यों में बढोत्तरी ज्यादती ही है।
हमारे देश के आसपास यदि नज़रों को दौडाया जाए तो पता चलेगा की हम लोग पेट्रोल, डीजल के दाम अपने पड़ोसी देशों की तुलना में अधिक चुका रहे हैं। हमारी सरकार के प्रतिनिधि इस बात पर बयानवाजी करते हैं की हमारे यहाँ टेक्स अधिक है, इस कारण से पेट्रो पदार्थों के दाम अधिक हैं। आगे और कुछ कहने के पहले आप लोग भी एक निगाह अन्य पड़ोसी देशों के पेट्रो पदार्थों की कीमतों पर भी डाल लें।
कोलम्बो-------------- पेट्रोल- रु० 49.20 डीजल - रु० 30.20
काठमांडू ------------- पेट्रोल-रु० 49.20 डीजल - रु० 35.13
कराची --------------- पेट्रोल- रु० 42.38 डीजल - रु० 30.99
ढाका ---------------- पेट्रोल - रु० 38.74 डीजल - रु० 23.84
इन स्थानों के अनुपात में हमारे देश में पेट्रोल पचास रुपये से अधिक तथा डीजल चालीस रुपये से अधिक चल रहा है। दाम की ये ऊहापोह अभी भी सरकारी ऊहापोह का नतीजा है। लेफ्ट की धमकी, नजदीक आते लोकसभा चुनाव की आहट, वोट बैंक के खिसकने का डर सरकार को भी दाम निर्धारण करने में स्थिर नहीं होने दे रहा है। कभी पचास पैसा घटने की ख़बर आती है तो कभी एक रुपया तो कभी लगता है की दाम कम नहीं होंगे।
अब ये तो थी पेट्रो पदार्थ बिकने की स्थिति, दूसरा पहलू है पेट्रो कंपनियों के लाभ का। देश में काम कर रहीं पेट्रो कंपनियों ने गत वर्ष सारे टेक्स चुकाने के बाद भी इतना मुनाफा कमाया कि आंकडे देख कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। आप लोग भी थोड़ा अपनी आंखों को मेरी तरह कष्ट दीजियेगा।
ओ एन जी सी (ONGC)-------------------- 15642 करोड़ रुपये
आई ओ सी एल (IOCL)-------------------- 7499 करोड़ रुपये
गेल (GAIL)------------------------------- 2387 करोड़ रुपये
बी पी सी एल (BPCL)---------------------- 1805 करोड़ रुपये
ओ आई ऐ एल (OIAL)--------------------- 1640 करोड़ रुपये
एच पी सी एल (HPCL) ---------------------1511 करोड़ रुपये
ये सारे लाभ सभी तरह के टेक्स निकल देने के बाद हैं। अब ऐसे में कोई बताये कि अंतर्राष्ट्रीय दवाब कहाँ और किस तरह का है? पेट्रो कंपनियों को लाभ चाहिए और वो उसे प्राप्त कर ले रहीं हैं। नेताओं को चुनावों में पैसा चाहिए जो बड़े-बड़े व्यापारियों, उद्योगपतियों से मिलता है तो जाहिर सी बात है सरकार उनकी मदद करेगी कि जनता की? जनता को यदि अपनी जेब पर वजन नहीं देना है तो उसे ख़ुद अपनी बचत का तरीका निकालना होगा। अपने खर्चों में कटौती करना होगा, सरकार की, मंत्रियों की, नेताओं की, शासन-प्रशासन की गाडियां तो दौड़ती ही रहेंगी।
शोधपरक आलेख. मगर यह तो अंतर्राष्ट्रिय स्तर पर बढ़ रहा है.
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