मानव के धरती पर आने के पहिले पर्यावरण ने अपनी सहज, सुंदर उपस्थिति दर्ज करवाई थी। धीरे-धीरे मानव विकास करता गया एवं पर्यावरण को विनाश की तरफ़ ले जाता गया। धरती के वस्त्रों के रूप में प्रसिद्ध जंगल काट डाले गए, जीवन-दायनी नदियाँ कचरे के रूप में परिवर्तित कर दी गईं, हरे-भरे बाग़-बगीचे रेगिस्तान बना दिए गए। हरियाली को मिटा कर आदमी ने ख़ुद अपने लिए संकट पैदा किया है। आज मानसून, बारिश को तरसता आदमी, सूखे की समस्या, खाद्य संकट से जूझता आदमी ख़ुद ही अपनी हालत का जिम्मेवार है।
एक तरफ़ जहाँ आदमी ने हरियाली को मिटाया है वहीं दूसरी तरफ़ उसने अपने ऐसो-आराम के समान जुटा कर पर्यावरण संकट को ही बढाया है। सुख-सुविधाओं के इन उपकरणों के कारण आज सारा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के दौर से गुजर रहा है । पूरे विश्व-ब्रह्माण्ड का तापमान विगत वर्षों में बढ़ गया है । ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं। हिमालय नग्न होता जा रहा है। बेमौसम की वारिश, ओलों की मार एवं मौसम की अनियमितता-ने सारी प्रकृति को विनाश के आसपास ला खड़ा कर दिया। हिम ग्लेशियर्स पिघलने से सारा जल समुद्र में और समुद्रों का स्तर ऊँचा होने की संभावना है । जैसे-जैसे यह स्तर बढ़ेगा, किनारे के शहर पूरे विश्व में डूबने की कगार पर आने लगेंगे। रेगिस्तान में पिछले वर्ष हुई वर्फबारी, समतल मैदानों मे आती सूखे की आपदा, सब कुछ मानव जनित है।
उत्तर-प्रदेश के बुन्देलखण्ड में विगत चार वर्षों से पड़ते सूखे ने भी लोगों की आंखों से पट्टी नहीं उतर पाई। अभी भी पानी का दोहन बुरी तरह से किया जा रहा है। पेड़-पौधों को लगाया नहीं जा रहा है, नदियों में लगातार कचरा बहाया जा रहा है, तब कैसे अपेक्षा की जाए कि बारिश होगी, सूखा दूर होगा, हरियाली आएगी, पर्यावरण सुरक्षित रहेगा?
अब करने होंगे प्रयास
पहली बात तो हम सभी को इस बात को स्वीकारना होगा कि पर्यावरण के संकट हेतु हम लोग ही जिम्मेवार हैं। अब एक-दूसरे को दोष देने के स्थान पर हम ख़ुद पहल करते हुए पौधे लगाना शुरू करें, जो भी पौध लगाएं यह ध्यान रखें कि वह दिखावटी न हो बल्कि फलदार हो।
पौधा लगा कर ही अपनी जिम्मेवारी से मुक्त न समझें, पूरी तरह से उस पौधे के बड़े होने तक उसकी देखभाल करें।
हम ख़ुद इस तरफ़ बढें तथा अन्य लोगों को भी इस कार्य के लिए प्रोत्साहित करें।
मात्र एक-दो पौधों के सहारे नहीं हजारों-हजार पौधों से ये संकट मिटेगा, इसलिए एक-दो नहीं कई-कई पौधे लगाएं।
गंदगी-कचरा यदि हमें परेशां करता है तो सोचो क्या ये धरती को परेशानी, नुकसान नहीं देता होगा? गंदगी को जहाँ तक सम्भव हो उपयुक्त स्थान पर ही डालें, इधर-उधर न फेंकें।
नदियों से हमें पानी के साथ-साथ तमाम तरह के पदार्थ भी प्राप्त होते हैं, अतः नदियों को भी प्रदूषण से बचने का प्रयास करें।
चलिए अब बंद कर रहे हैं, आप सब ख़ुद समझदार हैं, इतने से ही समझ लेंगे। वैसे भी एक-दो दिन तो धूम रहेगी पर्यावरण बचाने वालों की क्यों कि पर्यावरण-दिवस जो आ रहा है। अरे हम भी तो इसी कारण लिख रहे हैं, पर आप अमल कितना कर रहे हैं?
एक तरफ़ जहाँ आदमी ने हरियाली को मिटाया है वहीं दूसरी तरफ़ उसने अपने ऐसो-आराम के समान जुटा कर पर्यावरण संकट को ही बढाया है। सुख-सुविधाओं के इन उपकरणों के कारण आज सारा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के दौर से गुजर रहा है । पूरे विश्व-ब्रह्माण्ड का तापमान विगत वर्षों में बढ़ गया है । ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं। हिमालय नग्न होता जा रहा है। बेमौसम की वारिश, ओलों की मार एवं मौसम की अनियमितता-ने सारी प्रकृति को विनाश के आसपास ला खड़ा कर दिया। हिम ग्लेशियर्स पिघलने से सारा जल समुद्र में और समुद्रों का स्तर ऊँचा होने की संभावना है । जैसे-जैसे यह स्तर बढ़ेगा, किनारे के शहर पूरे विश्व में डूबने की कगार पर आने लगेंगे। रेगिस्तान में पिछले वर्ष हुई वर्फबारी, समतल मैदानों मे आती सूखे की आपदा, सब कुछ मानव जनित है।
उत्तर-प्रदेश के बुन्देलखण्ड में विगत चार वर्षों से पड़ते सूखे ने भी लोगों की आंखों से पट्टी नहीं उतर पाई। अभी भी पानी का दोहन बुरी तरह से किया जा रहा है। पेड़-पौधों को लगाया नहीं जा रहा है, नदियों में लगातार कचरा बहाया जा रहा है, तब कैसे अपेक्षा की जाए कि बारिश होगी, सूखा दूर होगा, हरियाली आएगी, पर्यावरण सुरक्षित रहेगा?
अब करने होंगे प्रयास
पहली बात तो हम सभी को इस बात को स्वीकारना होगा कि पर्यावरण के संकट हेतु हम लोग ही जिम्मेवार हैं। अब एक-दूसरे को दोष देने के स्थान पर हम ख़ुद पहल करते हुए पौधे लगाना शुरू करें, जो भी पौध लगाएं यह ध्यान रखें कि वह दिखावटी न हो बल्कि फलदार हो।
पौधा लगा कर ही अपनी जिम्मेवारी से मुक्त न समझें, पूरी तरह से उस पौधे के बड़े होने तक उसकी देखभाल करें।
हम ख़ुद इस तरफ़ बढें तथा अन्य लोगों को भी इस कार्य के लिए प्रोत्साहित करें।
मात्र एक-दो पौधों के सहारे नहीं हजारों-हजार पौधों से ये संकट मिटेगा, इसलिए एक-दो नहीं कई-कई पौधे लगाएं।
गंदगी-कचरा यदि हमें परेशां करता है तो सोचो क्या ये धरती को परेशानी, नुकसान नहीं देता होगा? गंदगी को जहाँ तक सम्भव हो उपयुक्त स्थान पर ही डालें, इधर-उधर न फेंकें।
नदियों से हमें पानी के साथ-साथ तमाम तरह के पदार्थ भी प्राप्त होते हैं, अतः नदियों को भी प्रदूषण से बचने का प्रयास करें।
चलिए अब बंद कर रहे हैं, आप सब ख़ुद समझदार हैं, इतने से ही समझ लेंगे। वैसे भी एक-दो दिन तो धूम रहेगी पर्यावरण बचाने वालों की क्यों कि पर्यावरण-दिवस जो आ रहा है। अरे हम भी तो इसी कारण लिख रहे हैं, पर आप अमल कितना कर रहे हैं?
पर्यावरण चेतना पर विचारोत्तेजक आलेख. बधाई.
जवाब देंहटाएं