देश में मंहगाई इस समय अपनी रफ्तार का जलवा दिखा रही है। इस रफ्तार के वशीभूत सरकार भी अपना जलवा दिखा रही है। रोज़ ही किसी न किसी मंत्री, सरकारी प्रवक्ता का बयान आ जाता है कि मंहगाई पर काबू करने के प्रयास किए जा रहे हैं और शीघ्र ही इससे निजात,राहत मिलने की सम्भावना है। सरकार की ऐसी बयान वाजियाँ देख कर बहुत पुरानी पर ऐसे हालातों पर सटीक बैठती एक कहानी याद आ जाती है।
कहानी एक जंगल की है, एक बन्दर की है। होता ऐसा है कि जंगल में सालों-साल से शेर का ही शासन चला आ रहा होता है। लोकतंत्र की खुशबु सूंघ कर जंगल के तमाम सरे जानवरों ने फ़ैसला किया कि अब जंगल में भी चुनाव होना चाहिए। हमारे बीच के किसी जानवर को भी राजा बनने का अवसर मिलना चाहिए। जानवरों के एक प्रतिनिधिमंडल ने शेर से मुलाकात की और अपनी बात उसके सामने रखी। शेर को बुरा तो लगा किंतु राजशाही के सामने सिर उठाते लोगों की ताकत देख कर वह भी चुनाव करवाने को तैयार हो गया।
जानवरों ने सर्वसम्मति से अपना एक नेता चुनने का मन बनाया जिससे शेर को आसानी से हराया जा सके। लम्बी मंत्रणा और बैठक के बाद तय किया गया कि बन्दर को चुनाव में प्रत्याशी बनाया जाए। (बन्दर की विशेषताओं की चर्चा यहाँ नहीं करते हैं) सरे जानवरों ने पूरी ताकत प्रचार में लगा दी। मतदान का दिन आया, सरे जानवरों ने मन से बन्दर के पक्ष में वोट डाले। परिणाम जैसा कि तय था राजा शेर हार गया।
बन्दर ने पूरे ताम-झाम के साथ सत्ता संभाली और जंगल पर शासन करने लगा। एक दिन शेर ने आम जानवर की तरह टहलते हुए अपने भोजन के लिए बकरी के बच्चे का शिकार कर डाला। बकरी बड़ी परेशां, उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, क्या न करे? बकरी हर कोशिश के बाद जब परेशान हो गई तो उसने अपने राजा बन्दर के सामने मदद की गुहार लगाई। जब बन्दर ने सुना कि बकरी के बच्चे को शेर उठा कर ले गया है तो उसके हाथ-पैर फूल गए। चूँकि वह सारे जानवरों के वोट से चुना गया था, सत्ता का मजा भी नहीं खोना चाहता था इस कारण मरता क्या न करता बकरी के बच्चे को शेर से छुडाने के लिए चल पड़ा।
बन्दर डर भी रहा था और बकरी को दिखाना भी चाहता था कि वह बिना डरे उसके बच्चे को शेर से छुडा लाएगा। बन्दर कभी इस पेड़ पर कभी उस पेड़ पर। कभी उछल कर एक पेड़ पर कभी उछल कर दुसरे पेड़ पर चढ़ जाता। कई घंटों तक बन्दर इधर से उधर पेड़ पर छलांग लगते हुए सारे जंगल में कूदता रहा। जहाँ शेर होता वहाँ नहीं जाकर यहाँ वहाँ उछलता रहा। नीचे बकरी अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर परेशान बन्दर के साथ-साथ दौड़ती रही। आख़िर जब उसने देखा कि बन्दर बस इधर से उधर छलांग ही लगा रहा है तो बकरी ने मिमियाते हुए कहा "राजा साहब, हमारे बच्चे को बचा लो, नहीं तो शेर उसको मार डालेगा।"
बन्दर डर भी रहा था और कुछ न कर पाने की झेंप भी थी, उसने बकरी पर रोब झाड़ते हुए डांट कर कहा- "क्यों बेकार में शोर कर रही हो? क्या मैं कोशिश नहीं कर रहा हूँ? तुम्हारे बच्चे को छुडाने के लिए सारे जंगल में कूदता घूम रहा हूँ। कोशिश में तो कोई कमी नहीं है, मौका मिलते ही छुडा लूंगा। तुमको लगता है जैसे ये आसान काम है।" बन्दर की डांट के बाद बकरी खामोश हो गई। चुपचाप अपने घर लौट कर अपने बन्दर राजा और अपने भाग्य को कोसने लगी। उधर बकरी का बच्चा मदद के आभाव में शेर के जबडों में फंसा दम तोड़ गया।
सरकार का यही रवैया है, जनता जबडों फंसी पिस रही है, सरकार, मंत्री इधर से उधर उछल-कूद कर रहे हैं। प्रयास कुछ भी नही हो रहे हैं और दिखाया ऐसे जा रहा है जैसे बहुत मेहनत हो रही है। आम जनता का बकरी के बच्चे सा हाल है।
बन्दर के प्रयास में तो कोई कमी नहीं दिखती-सहानभूति सी हुई जा रही है उससे. हाहा!!
जवाब देंहटाएंसच में, यही हाल है सरकार का. यहाँ कूद और वहाँ कूद. जनता बनीं है निरिह बकरी.
अच्छा लगा आपका यह स्टाईल. जारी रखिये.