03 सितंबर 2017

हिन्दी ग़ज़ल सम्राट दुष्यंत कुमार को याद करते हुए

हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में जो लोकप्रियता दुष्यंत कुमार को मिली वो किसी विरले कवि को प्राप्त होती है. वे हिन्दी के कवि और ग़ज़लकार थे. उनके लेखन का स्वर सड़क से संसद तक गूँजता रहा है. यूँ तो उन्होंने अनेक विधाओं में लेखनी चलाई किन्तु ग़ज़लों की अपार लोकप्रियता ने उनकी अन्य विधाओं को पीछे धकेल दिया. दुष्यंत कुमार का जन्म बिजनौर (उत्तर प्रदेश) के ग्राम राजपुर नवादा में 1 सितम्बर 1933 को हुआ था. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे कुछ दिन आकाशवाणी भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर भी रहे. अपने जीवन में वे बहुत, सहज और मनमौजी व्यक्ति थे. उनका पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था. उन्होंने प्रारम्भ में दुष्यंत कुमार परदेशी नाम से रचनाएँ करनी शुरू की.



जिस समय उन्होंने साहित्य की दुनिया में पदार्पण किया उस समय प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था. इसी तरह हिन्दी में अज्ञेय और मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था. ऐसे समय में दुष्यंत कुमार ने सहज हिन्दी में ग़ज़ल लिखकर उसे कठिनता से निकाला और प्रसिद्धि प्राप्त की. दुष्यंत कुमार ने देश के आम आदमी का दर्द ही नहीं लिखा बल्कि उसकी भाषा को भी अपनाया. उनका एकमात्र ग़ज़ल संग्रह साये में धूप आज भी साहित्य-प्रेमियों के बीच बहुत सराहा जाता है. उनकी अन्य कृतियों में सूर्य का स्वागत, आवाज़ों के घेरे, जलते हुए वन का वसन्त (काव्य-संग्रह) और छोटे-छोटे सवाल, आँगन में एक वृक्ष, दुहरी ज़िंदगी (उपन्यास) प्रमुख हैं. उनका निधन 30 दिसम्बर सन 1975 में सिर्फ़ 42 वर्ष की अवस्था में हो गया.

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