यदि
प्रेम में डूबी हुई कविताओं, रसीदी टिकट, साहिर और इमरोज की
बात की जाये तो स्वतः ही एक नाम सामने आता है, अमृता प्रीतम का. उनका
जन्म आज, 31 अगस्त 1929 को गुंजरावाला पंजाब (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. बंटवारे
के बाद उनका परिवार हिन्दुस्तान आ गया. ग्यारह वर्ष की उम्र में उनकी मां का
देहांत हो गया. देश छोड़ने के दर्द और माँ के देहांत ने उनको तन्हाई में पहुंचा
दिया. वे कागज-कलम के सहारे अपनी तन्हाई दूर करने लगीं. सन 1936 उनका पहला कविता संग्रह अमृत लहरें प्रकाशित हुआ. इसी वर्ष उनका विवाह
प्रीतम सिंह से हो गया और वे अमृता कौर से अमृता प्रीतम
हो गईं. कालांतर में इस रिश्ते में दरारें आती रही और अंततः सन 1960 में उनका तलाक
हो गया.
उन्हें पंजाबी की पहली और सर्वश्रेष्ठ कवयित्री माना जाता है.
अमृता जी ने पंजाबी के साथ-साथ हिन्दी में भी लेखन किया. उनकी किताबों का प्रकाशन पंजाबी,
हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी,
स्पेनिश, रशियन, इटालियन आदि भाषाओं में हो चुका है. उन्होंने लगभग 100 पुस्तकें
लिखीं. अपनी बात को बेबाकी से, बिना डरे कह देना उनकी खासियत थी. उनकी चर्चित आत्मकथा
रसीदी टिकट में उन्होंने साहिर के साथ अपनी मोहब्बत के किस्से बिना किसी झिझक
के कहे हैं. एक उपन्यासकार के रूप में उनकी पहचान पिंजर नामक उपन्यास से बनी.
उन्होंने छः उपन्यास, छः कहानी संग्रह, दो संस्मरण, अनेक कविता संग्रह तथा अक्षरों के साये
और रसीदी टिकट नामक दो आत्मकथायें लिखीं. वे पहली महिला साहित्यकार थीं जिन्हें
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. साहित्य में उनके योगदान के
लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी
सम्मानित किया गया.
अमृता
प्रीतम को उनकी रचनाओं के साथ-साथ उनके प्रेम-संबंधों के लिए भी जाना जाता है. जब
भी उनका नाम लिया जाता है तो साहिर लुधियानवी और इमरोज का नाम स्वतः
साथ में जुड़ जाता है. अमृता और साहिर एकदूसरे से बेपनाह मोहब्बत करते थे मगर कभी
इस रिश्ते को आगे नहीं बढ़ा पाए. बाद में साहिर के मुंबई आने और अमृता के दिल्ली आ बसने
के कारण दोनों में दूरी आ गई. साहिर के बाद
अमृता इमरोज के संपर्क में आईं और दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे. दोनों एक ही छत
के नीचे वर्षों तक साथ रहे. उन्होंने कभी एक-दूसरे से नहीं कहा कि वो प्यार करते हैं.
अमृता के आखिरी समय में उनकी तकलीफों में इमरोज उनके साथ रहे. बाथरूम में गिर जाने
की वजह से अमृता जी की हड्डी टूट गई थी जो कभी ठीक नहीं हुई. इस दर्द ने उनका दामन
कभी नहीं छोड़ा और न ही इमरोज़ ने उनका साथ छोड़ा. उन्होंने अमृता के इस दर्द को भी अपने
प्यार से खूबसूरत बना दिया था. 31 अक्टूबर 2005 में अमृता जी ने आख़िरी सांस ली और अपनी रचनाएँ, अपना प्रेम, अपनी बेबाकी
इस दुनिया को याद करने के लिए छोड़ गईं.
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